रामरक्षा प्रवचन - 2 । श्रीसीतारामचंद्रो देवता: महाविष्णुसहित लक्ष्मी उपासना आवश्यक

सद्गुरु अनिरुद्ध बापूजी ने ‘रामरक्षा’ स्तोत्रमंत्र पर आधारित प्रवचनों की शुरुआत रामरक्षा की पहली दो पंक्तियों का स्पष्टीकरण करके की। तत्पश्चात् सद्गुरु बापूजी ने, ‘रामरक्षा’ यह एक ही समय स्तोत्र और मंत्र भी कैसे है और इसीलिए वह केवल स्तोत्र न होकर वह ‘स्तोत्रमन्त्र’ कैसे है, यह अनोखापन बहुत ही सुस्पष्टता से समझाया।

उसके बाद, २१-अक्तूबर २००४ के इस दूसरे प्रवचन में बापूजी, ‘श्री सीतारामचंद्रो देवता’ इस रामरक्षा की पंक्ति का अर्थ उजागर कर रहे हैं।

इस प्रवचन में सद्गुरु बापूजी पहले, ‘मंत्र-देवता’ यानी क्या, वह कैसे निर्माण होते हैं, वे कैसे कार्य करते हैं और मंत्र का जाप करनेवाले साधक को वे क्या प्रदान करते हैं, यह स्पष्ट करते हैं।

आध्यात्मिक दृष्टि से बहुत ही महत्त्वपूर्ण ऐसी इस संकल्पना का स्पष्टीकरण करते समय, बापूजी ‘सांघिक उपासना’ का क्या महत्त्व है, यह भी अधोरेखांकित करते हैं और हर रोज़ की ‘नित्य उपासना’ करने से क्यों नहीं चूकना चाहिए, यह भी बताते हैं।

तत्पश्चात् बापूजी, ‘श्रीराम सूर्यकुलोत्पन्न होते हुए भी उन्हें ‘रामचंद्र’ क्यों कहते हैं’ यह विशद करते समय, महाविष्णु के एक भक्त की कथा सुनाते हैं; और मानव जो हमेशा केवल लक्ष्मीजी को प्रसन्न करा लेने के लिए हाथ-पैर मारता रहता है, वह सही न होकर, लक्ष्मीजी की उपासना महाविष्णु सहित ही क्यों आवश्यक है, इसका प्रतिपादन करते हैं।

आगे चलकर बापूजी, ‘मंत्र’ अथवा ‘स्तोत्र’ की अपेक्षा ‘स्तोत्रमंत्र’ कैसे अलग होता है और वह कैसे कार्य करता है, यह भी विस्तारपूर्वक एवं संदर्भ सहित स्पष्ट करते हैं।

उसके बाद, जीवन में ‘वास्तविक ख़ज़ाना’ कौन सा है, यह स्पष्ट करते हुए सद्गुरु बापूजी, संत सावता माळीजी की एक कथा सुनाते हैं और क्या करने से हमारे जीवन में यह ख़ज़ाना कभी भी अपर्याप्त नहीं होगा, इसे बहुत ही भावपूर्ण तरीक़े से उजागर करते हैं।