रामरक्षा २३ - त्यागमूर्ति लक्ष्मण - लक्ष्मणरेखा,त्याग एवं रामप्रेम का अन्योन्य संबंध | Aniruddha Bapu
सद्गुरु अनिरुद्धजी हमें बताते हैं - लक्ष्मणजी को सबसे प्रिय हैं श्रीराम के चरण, इमलिए हमें भी वे सर्वाधिक प्रिय होने चाहिए|
सद्गुरु अनिरुद्धजी हमें बताते हैं - लक्ष्मणजी को सबसे प्रिय हैं श्रीराम के चरण, इमलिए हमें भी वे सर्वाधिक प्रिय होने चाहिए|
सद्गुरु अनिरुद्ध बापू ‘मुखं सौमित्रिवत्सल:’ इस पंक्ति पर विवेचन जारी रखते हुए, उसके और कुछ सुंदर पहलुओं को उजागर करते हैं, जिनका हमारे जीवन से ठेंठ संबंध है।
सद्गुरु अनिरुद्ध बापू हमें जीवन में सबकुछ ‘श्रेयस’ (आध्यात्मिक अच्छी बातें) और ‘प्रेयस’ (व्यावहारिक अच्छी बातें) प्राप्त होने में सुमित्राजी की भूमिका किस प्रकार अहम है, यह स्पष्ट करते हैं।
सद्गुरु अनिरुद्ध बापू - ‘अध्यात्म यह ज़रा भी कठिन नहीं है, हम बस्स् ग़लत संकल्पनाओं को मन में पकड़कर उस आसान अध्यात्म को ख़्वामख़्वाह कठिन बनाकर रखते हैं’ इसका एहसास हमें करा देते हैं।
सद्गुरु अनिरुद्ध बापूजी रहस्य को उजागर करते हैं कि प्रभु श्रीराम जब मानवी अवतार लेकर आते हैं, तब स्वयं भी नवविधा भक्ति का पालन कैसे करते हैं, और उसकी शुरुआत वे श्रवणभक्ति से कैसे करते हैं।
कौसल्या के पुत्र रहनेवाले श्रीराम ही हमारी दृष्टि की रक्षा करते होने के कारण हमारी दृष्टि भी माता कौसल्या की तरह होनी चाहिए, यानी कैसी, यह सद्गुरु अनिरुद्धजी यहाँ स्पष्ट करते हैं।