Sadguru Aniruddha Bapu

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रामरक्षा-२५ | भक्ति एवं बुद्धि का संबंध; मुख एवं जीभ का भक्तिमार्ग में महत्त्व

रामरक्षा-२५ | भक्ति एवं बुद्धि का संबंध; मुख एवं जीभ का भक्तिमार्ग में महत्त्व

सद्गुरु अनिरुद्ध बापू - रामरक्षा के इस प्रवचन में बताते हैं की भक्ति एवं बुद्धि का संबंध क्या है? और मुख एवं जीभ का भक्तिमार्ग में महत्त्व क्या है?

रामरक्षा प्रवचन-२४ | मुख, सत्य एवं वास्तव : गहन अर्थ और जीवन से संबंध

रामरक्षा प्रवचन-२४ | मुख, सत्य एवं वास्तव : गहन अर्थ और जीवन से संबंध

सद्गुरु अनिरुद्ध बापू - ‘मुख’ की रक्षा ये ‘सौमित्रिवत्सल’ राम करते हैं, यानी क्या? यह रक्षा हमारे लिए किस तरह महत्त्वपूर्ण है और यह रक्षा अधिक से अधिक मात्रा में होने के लिए हमें कौनसा भ्यास करना चाहिए वह सद्गुरु बापू यहाँ समझाकर बताते हैं |

A Mother’s Testimony of Sadguru Aniruddha Bapu’s Grace During Pregnancy Complications

A Mother’s Testimony of Sadguru Aniruddha Bapu’s Grace During Pregnancy Complications

A heartfelt experience of a mother who, amidst pregnancy complications and other child’s illness, witnessed the grace of Sadguru Aniruddha Bapu. A touching story of faith, surrender, and miraculous blessings.

रामरक्षा प्रवचन १९ - भक्ति प्रगल्भ करने की मास्टर-की | Aniruddha Bapu | Ram Raksha Pravachan

रामरक्षा प्रवचन १९ - भक्ति प्रगल्भ करने की मास्टर-की | Aniruddha Bapu | Ram Raksha Pravachan

सद्गुरु अनिरुद्ध बापूजी रहस्य को उजागर करते हैं कि प्रभु श्रीराम जब मानवी अवतार लेकर आते हैं, तब स्वयं भी नवविधा भक्ति का पालन कैसे करते हैं, और उसकी शुरुआत वे श्रवणभक्ति से कैसे करते हैं।

अनिरुद्ध बापूंच्या ‘रामरक्षा प्रवचन ३’मध्ये ‘अनुष्टुप छंद’चे कथेद्वारे उलगडलेले रहस्य आणि ‘सुन्दरकाण्डचे खरे सौदर्य कोणते?’ हे सोप्या शब्दांत सांगितले आहे.

अनिरुद्ध बापूंच्या ‘रामरक्षा प्रवचन ३’मध्ये ‘अनुष्टुप छंद’चे कथेद्वारे उलगडलेले रहस्य आणि ‘सुन्दरकाण्डचे खरे सौदर्य कोणते?’ हे सोप्या शब्दांत सांगितले आहे.

सुन्दरकाण्ड, अनुष्टुप छंद, वाल्मिकी ऋषी, हनुमंताची भक्ती आणि भक्तीने रामाशी एकरूप होण्याचा मार्ग – अनिरुद्ध बापूंच्या रामरक्षा प्रवचन ३ मधून सविस्तर जाणून घ्या.

रामरक्षा प्रवचन-१५ | अध्यात्म में ‘१ से ९९’ से भी ‘९९ से १००’ के बीच अधिक दूरी

रामरक्षा प्रवचन-१५ | अध्यात्म में ‘१ से ९९’ से भी ‘९९ से १००’ के बीच अधिक दूरी

अध्यात्म में ‘१ से ९९ के बीच जितना फ़ासला है, उससे बहुत ज़्यादा फ़ासला ९९ से १०० के बीच है’ इस महत्त्वपूर्ण सत्य का एहसास करा देते समय सद्गुरु अनिरुद्धजी - विश्वामित्र ऋषि, दुर्वास मुनि और शतानिक मुनि (अश्वत्थामा)  इन बहुत ही उच्चपद को प्राप्त हुए ऋषियों के उदाहरण देते हैं।

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