रामरक्षा २२ - मानवी जीवनयात्रा के अत्युच्च मार्गदर्शक - त्यागमूर्ति ‘सौमित्र’ लक्ष्मण | Aniruddha Bapu

रामरक्षा-कवच की ‘मुखं सौमित्रिवत्सल:’ पंक्ति का प्रवास आगे जारी ही है। दिनांक २१ अप्रैल २००५ को किये रामरक्षा पर आधारित प्रवचन में, सद्गुरु अनिरुद्ध बापू ‘मुखं सौमित्रिवत्सल:’ इस पंक्ति पर विवेचन जारी रखते हुए, उसके और कुछ सुंदर पहलुओं को उजागर करते हैं, जिनका हमारे जीवन से ठेंठ संबंध है।
भक्तिमार्ग में सर्वोच्च मार्गदर्शक होनेवाले ‘सुंदरकाण्ड’ में महज़ ४-५ श्लोक लक्ष्मणजी से संबंधित हैं, लेकिन उनमें इन सौमित्र ने - लक्ष्मणजी ने किया हुआ उपदेश कितना ज़बरदस्त है और हम श्रद्धावानों के समूचे जीवनविकास के लिए यह उपदेश कैसे समुचित मार्गदर्शक साबित होता है और श्रद्धावान को जीवन में कैसा आचरण करना चाहिए इसका मानो वस्तुपाठ ही ये लक्ष्मणजी के शब्द हमारे सामने कैसे रखते हैं, यह सद्गुरु अनिरुद्ध यहाँ समझाकर बताते हैं। ये लक्ष्मणजी हमारे जन्म से लेकर मृत्यु तक की यात्रा कैसे सुंदर बनाते हैं, उसे सद्गुरु बापू उदाहरणों के साथ उजागर करते हैं।
लक्ष्मणजी के पास मानव के लिए सर्वाधिक आवश्यक होनेवाली शक्ति है, वह कौनसी है और हमें उस शक्ति को उन्हीं से क्यों माँगना चाहिए, इस रहस्य को भी सद्गुरु अनिरुद्ध बापू यहाँ प्रकाशित करते हैं।
अन्त में, मानवी जीवन के सभी पहलुओं को स्पर्श करनेवाले इन लक्ष्मणजी के बारे में ऐसी पूर्वापार मान्यता है कि पेट से (प्रेग्नेंट) होनेवाली स्त्री जब प्रसव (डिलिवरी) के लिए निकलती है, तब वह लक्ष्मणजी को नमस्कार करके जायें, वह मान्यता क्यों है, यह भी सद्गुरु बापू यहाँ स्पष्ट करते हैं।