Sadguru Aniruddha Bapu

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रामरक्षा प्रवचन -२७ | लक्ष्मणजी के प्रेम से खिलनेवाला रामधर्म का सौम्य प्रकाश

रामरक्षा प्रवचन -२७ | लक्ष्मणजी के प्रेम से खिलनेवाला रामधर्म का सौम्य प्रकाश

सद्गुरु बापू हमें बिलकुल आसान शब्दों में समझाकर बताते हैं - धर्म यानी वास्तविक रूप से क्या है? हमारा मूल धर्म कौनसा है? ‘धर्म और भगवान के बीच निश्चित रूप से क्या नाता है?

रामरक्षा प्रवचन-२४ | मुख, सत्य एवं वास्तव : गहन अर्थ और जीवन से संबंध

रामरक्षा प्रवचन-२४ | मुख, सत्य एवं वास्तव : गहन अर्थ और जीवन से संबंध

सद्गुरु अनिरुद्ध बापू - ‘मुख’ की रक्षा ये ‘सौमित्रिवत्सल’ राम करते हैं, यानी क्या? यह रक्षा हमारे लिए किस तरह महत्त्वपूर्ण है और यह रक्षा अधिक से अधिक मात्रा में होने के लिए हमें कौनसा भ्यास करना चाहिए वह सद्गुरु बापू यहाँ समझाकर बताते हैं |

रामरक्षा २३ - त्यागमूर्ति लक्ष्मण - लक्ष्मणरेखा,त्याग एवं रामप्रेम का अन्योन्य संबंध | Aniruddha Bapu

रामरक्षा २३ - त्यागमूर्ति लक्ष्मण - लक्ष्मणरेखा,त्याग एवं रामप्रेम का अन्योन्य संबंध | Aniruddha Bapu

सद्गुरु अनिरुद्धजी हमें बताते हैं - लक्ष्मणजी को सबसे प्रिय हैं श्रीराम के चरण, इमलिए हमें भी वे सर्वाधिक प्रिय होने चाहिए|

रामरक्षा २२ - मानवी जीवनयात्रा के अत्युच्च मार्गदर्शक - त्यागमूर्ति ‘सौमित्र’ लक्ष्मण | Aniruddha Bapu

रामरक्षा २२ - मानवी जीवनयात्रा के अत्युच्च मार्गदर्शक - त्यागमूर्ति ‘सौमित्र’ लक्ष्मण | Aniruddha Bapu

सद्गुरु अनिरुद्ध बापू ‘मुखं सौमित्रिवत्सल:’ इस पंक्ति पर विवेचन जारी रखते हुए, उसके और कुछ सुंदर पहलुओं को उजागर करते हैं, जिनका हमारे जीवन से ठेंठ संबंध है।

रामरक्षा प्रवचन २१ - लक्ष्मणमाता सुमित्रा - श्रेयस तथा प्रेयस को चुनने की शक्तिदात्री | Aniruddha Bapu

रामरक्षा प्रवचन २१ - लक्ष्मणमाता सुमित्रा - श्रेयस तथा प्रेयस को चुनने की शक्तिदात्री | Aniruddha Bapu

सद्गुरु अनिरुद्ध बापू हमें जीवन में सबकुछ ‘श्रेयस’ (आध्यात्मिक अच्छी बातें) और ‘प्रेयस’ (व्यावहारिक अच्छी बातें) प्राप्त होने में सुमित्राजी की भूमिका किस प्रकार अहम है, यह स्पष्ट करते हैं।

रामरक्षा प्रवचन-१५ | अध्यात्म में ‘१ से ९९’ से भी ‘९९ से १००’ के बीच अधिक दूरी

रामरक्षा प्रवचन-१५ | अध्यात्म में ‘१ से ९९’ से भी ‘९९ से १००’ के बीच अधिक दूरी

अध्यात्म में ‘१ से ९९ के बीच जितना फ़ासला है, उससे बहुत ज़्यादा फ़ासला ९९ से १०० के बीच है’ इस महत्त्वपूर्ण सत्य का एहसास करा देते समय सद्गुरु अनिरुद्धजी - विश्वामित्र ऋषि, दुर्वास मुनि और शतानिक मुनि (अश्वत्थामा)  इन बहुत ही उच्चपद को प्राप्त हुए ऋषियों के उदाहरण देते हैं।

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