रामरक्षा प्रवचन -२७ | लक्ष्मणजी के प्रेम से खिलनेवाला रामधर्म का सौम्य प्रकाश
सद्गुरु बापू हमें बिलकुल आसान शब्दों में समझाकर बताते हैं - धर्म यानी वास्तविक रूप से क्या है? हमारा मूल धर्म कौनसा है? ‘धर्म और भगवान के बीच निश्चित रूप से क्या नाता है?

सद्गुरु बापू हमें बिलकुल आसान शब्दों में समझाकर बताते हैं - धर्म यानी वास्तविक रूप से क्या है? हमारा मूल धर्म कौनसा है? ‘धर्म और भगवान के बीच निश्चित रूप से क्या नाता है?

सद्गुरु अनिरुद्ध बापू - ‘मुख’ की रक्षा ये ‘सौमित्रिवत्सल’ राम करते हैं, यानी क्या? यह रक्षा हमारे लिए किस तरह महत्त्वपूर्ण है और यह रक्षा अधिक से अधिक मात्रा में होने के लिए हमें कौनसा भ्यास करना चाहिए वह सद्गुरु बापू यहाँ समझाकर बताते हैं |

सद्गुरु अनिरुद्धजी हमें बताते हैं - लक्ष्मणजी को सबसे प्रिय हैं श्रीराम के चरण, इमलिए हमें भी वे सर्वाधिक प्रिय होने चाहिए|

सद्गुरु अनिरुद्ध बापू ‘मुखं सौमित्रिवत्सल:’ इस पंक्ति पर विवेचन जारी रखते हुए, उसके और कुछ सुंदर पहलुओं को उजागर करते हैं, जिनका हमारे जीवन से ठेंठ संबंध है।

सद्गुरु अनिरुद्ध बापू हमें जीवन में सबकुछ ‘श्रेयस’ (आध्यात्मिक अच्छी बातें) और ‘प्रेयस’ (व्यावहारिक अच्छी बातें) प्राप्त होने में सुमित्राजी की भूमिका किस प्रकार अहम है, यह स्पष्ट करते हैं।

अध्यात्म में ‘१ से ९९ के बीच जितना फ़ासला है, उससे बहुत ज़्यादा फ़ासला ९९ से १०० के बीच है’ इस महत्त्वपूर्ण सत्य का एहसास करा देते समय सद्गुरु अनिरुद्धजी - विश्वामित्र ऋषि, दुर्वास मुनि और शतानिक मुनि (अश्वत्थामा) इन बहुत ही उच्चपद को प्राप्त हुए ऋषियों के उदाहरण देते हैं।