रामरक्षा प्रवचन-१४| श्रीराम समेत जानकीमाता तथा लक्ष्मणजी का एकत्रित ध्यान भी आवश्यक

‘ध्यात्वा नीलोत्पल: श्यामं। रामं राजीवलोचनम्॥
जानकी लक्ष्मणोपेतं। जटामुकुटमंडितम्॥
सासितूणधनुर्बाणपाणिं नक्तं चरान्तकम्।
स्वलीलया जगत्रातुं आविर्भूतं अजं विभुम्॥’
रामरक्षा के ध्यानमंत्र के बाद की ये पहलीं चार पंक्तियों पर पिछले प्रवचन में शुरू किया हुए विवेचन को ही सद्गुरु अनिरुद्ध बापू, दिनांक १७ फ़रवरी २००५ को किये रामरक्षा पर आधारित प्रवचन में अधिक गहराई से आगे ले जा रहे हैं।
सर्वप्रथम उसमें से ‘सासितूणधनुर्बाणपाणिं’ इस पंक्ति का सरलार्थ सद्गुरु बापू समझाकर बताते हैं। सासि = स+असि; ‘असि’ यानी तलवार। ‘जिसके हाथ में धनुष-बाण तथा तलवार और पीठ पर बाणों का तरकश है ऐसे श्रीराम’। अब प्रभु श्रीराम के किसी भी चित्र में, तस्वीर में अथवा मूर्ति में हमें कभी भी श्रीराम के हाथ में तलवार पकड़ी हुई दिखाई नहीं देती। फिर यह किस तलवार के बारे में बुधकौशिक ऋषि बता रहे हैं, ऐसा प्रश्न मन में उठता है। सद्गुरु बापूजी यहाँ हमें - ‘यह तलवार कौनसी है? प्रभु रामचंद्रजी को वह कैसे प्राप्त हुई और वे उसे कब चलाते हैं?’ इस रहस्य को उजागर करते हैं।
साथ ही, प्रभु श्रीराम का बाणों का अक्षय तरकश और सर्वश्रेष्ठ धनुष ये श्रीराम को कैसे प्राप्त होते हैं, वह भी सद्गुरु अनिरुद्धजी समझाकर बताते हैं।
आगे जनक राजा का श्रेष्ठत्व बताते समय - ‘जनक ये केवल सीतामैय्या के पिता हैं इसलिए श्रेष्ठ नहीं माने जाते, बल्कि वे ऋषि-महर्षियों को भी वंदनीय रहनेवाले महान ज्ञानी कैसे हैं और अपने ज्ञान का उपयोग वे जनता के कल्याण हेतु ही कैसे करते हैं, यह सद्गुरु बापूजी स्पष्ट करते हैं। उसी के साथ, ‘जानकीलक्ष्मणोपेतं’ इस पंक्ति पर विवेचन करते समय, ‘जानकी’ तथा ‘सीता’ इन नामों के बीच के फ़र्क़ को भी वे सरल शब्दों में समझाकर बताते हैं और अन्त में, श्रीराम समेत ही जानकीमाता एवं लक्ष्मणजी का एकत्रित ध्यान करने की आवश्यकता को भी समझाते हैं।