रामरक्षा प्रवचन - 3 । 'अनुष्टुप् छंदः' - एक विलक्षण भक्तिरहस्य, व्याकरण से परे जाकर
रामरक्षा के प्रारंभिक चरण की चौथी पंक्ति है - 'अनुष्टुप् छंद:'। २८ अक्तूबर २००४ को सद्गुरु अनिरुद्ध बापुजी ने किये रामरक्षा पर आधारित प्रवचन का यही विषय था : 'अनुष्टुप् छंद:'।
व्याकरण में ‘छंद’ कहें, तो हमें याद आते हैं काव्यरचनाप्रकार तथा उनके वर्ग। रामरक्षा यह अनुष्टुप् छंद में लिखी गई है। लेकिन व्याकरण के इस अर्थ जितना ‘अनुष्टुप् छंद’ सीमित नहीं है, यह समझाकर बताते हुए बापुजी, इस पारंपरिक व्याख्या से परे जाकर, ‘अनुष्टुप् छंद’ के पीछे का रहस्य क्या है, यह सर्वश्रेष्ठ छंद कैसे है, साथ ही उसका आध्यात्मिक सामर्थ्य और श्रीराम के साथ रहनेवाला उसका अद्भुत नाता भी उजागर करते हैं।
उसीके साथ, अनुष्टुप् छंद में रचे गये रामरक्षा जैसे स्तोत्रमंत्र का पठन करने से साधक को निश्चित रूप से क्या लाभ होता है, यह भी सद्गुरु बापुजी समझाकर बताते हैं।
परमेश्वर की प्राप्ति करा देने की ताकत रहनेवाले इस अनुष्टुप छंद की महिमा समझने के लिए, बापुजी आगे चलकर संत ज्ञानेश्वरजी और संत चोखामेळाजी इन महान संतों की सुंदर कथा भी बताते हैं।