रामरक्षा प्रवचन-११ | ध्यान करते समय प्रभु श्रीराम का स्वागत हमें कैसे करना चाहिए?
‘ध्यान’ क्स् बाद आती है ‘धारणा’। रामरक्षा के ध्यानमंत्र के एक-एक पहलू को हल्के से उजागर करते हुए, ध्यान के बारे में सूतोवाच करने के बाद अब सद्गुरु अनिरुद्ध बापू इस ध्यानमंत्र में धारणा की पंक्तियों को समझाकर बता रहे हैं।
दिनांक २७ जनवरी २००५ को किये रामरक्षा पर आधारित प्रवचन में सद्गुरु अनिरुद्धजी हमें, ध्यानमंत्र की ‘नीरदाभं नानालंकारदीप्तं दधतमुरुजटां मंडनं रामचंद्रं’ इस पंक्ति के माध्यम से, ‘सगुण साकार परमात्मा का स्वागत हमें कैसे करना चाहिए’ यह स्पष्ट कर रहे हैं।
नीरदाभं - जल से बने मेघ (बादल) की तरह जिनकी प्रभा है, ऐसे। परमात्मा का स्वागत करने के लिए हमें इस हमारी वसुंधरा पृथ्वी का अनुकरण कैसे करना चाहिए, यह सद्गुरु बापू यहाँ समझाकर बताते हैं।
नानालंकारदीप्तं - विविध अलंकारों से सुशोभित। परमात्मा के अलंकार कौनसे हैं, यह सद्गुरु बापू यहाँ स्पष्ट करते हैं और उसी के साथ, इन मर्यादापुरुषोत्तम श्रीराम को प्राप्त करने के लिए श्रद्धावान ने कौनसी मर्यादा का पालन करना आवश्यक है, इसका भी एहसास कराते हैं।
दधतमुरुजटांमंडनं - जिसने मस्तक पर जटाएँ धारण की हैं और वे जटाएँ उसे जँच भी रही हैं ऐसा। प्रभू रामचंद्रजी के ‘राजा’ रूप से भी अधिक उनके ‘वनवासी’ रूप का ध्यान करना क्यों महत्त्वपूर्ण है, इसे सद्गुरु अनिरुद्धजी यहाँ समझाकर बताते हैं।
अन्त में, ध्यानमंत्र के विवेचन का समापन करते समय सद्गुरु बापू कहते हैं कि प्रभु श्रीराम का रावण को मारने का कार्य शुरू होने से पहले ‘सेतु’ का निर्माण किया जाना आवश्यक है। फिर हमारे जीवन का यह ‘सेतु’ कौनसा है, यह भी वे स्पष्ट करते हैं।