रामरक्षा प्रवचन-१३ | श्रीराम का संपूर्ण चरित्र यानी ‘मानव कैसे आचरण करें’ इसका आदर्श

श्रीराम का ‘चरित्र’ यानी क्या और वह कौनसे परदे पर हमें दिख सकता है, यह पिछले प्रवचन में समझाकर बताने के बाद सद्गुरु अनिरुद्ध बापू, दिनांक १० फ़रवरी २००५ को किये रामरक्षा पर आधारित प्रवचन में अगली पंक्तियों की ओर हमें ले जा रहे हैं -
‘ध्यात्वा नीलोत्पल: श्यामं। रामं राजीवलोचनम्॥
जानकी लक्ष्मणोपेतं। जटामुकुटमंडितम्॥
सासितूणधनुर्बाणपाणिं नक्तं चरान्तकम्।
स्वलीलया जगत्रातुं आविर्भूतं अजं विभुम्॥’
अब श्रीराम का गुणवर्णन शुरू हो चुका है। ध्यानमंत्र के बाद यहाँ फिर से श्रीराम की आँखों के बारे में ही बताया गया है और ‘राजीवलोचन’ यह भगवान का सबसे महत्त्वपूर्ण गुणवर्णन कैसे, यह सद्गुरु बापू समझाकर बता रहे हैं। हममें से हर कोई अपने जीवन में विकास साध्य करना चाहता है। सद्गुरु अनिरुद्ध यहाँ उदाहरणों के साथ स्पष्ट करते हैं कि श्रीराम की आँखें ही हमें, हमारा गुणात्मक जीवनविकास करा लेने के प्रयासों में अधिक से अधिक सहायता क्यों कर सकतीं हैं।
आगे सद्गुरु बापू अगलीं पंक्तियों का सरलार्थ पहले समझाकर बताते हैं और उसके बाद उनके पीछे का गूढार्थ भी स्पष्ट करते हैं - ‘जानकी लक्ष्मणोपेतं, जटामुकुटमंडितम्, सासितूणधनुर्बाणपाणिं, नक्तं चरान्तकम्, स्वलीलया, जगत्रातुं, आविर्भूतं, अजं, विभुम्’।
साथ ही, वे परमात्मा ‘राम , ‘कृष्ण’ आदि अवतारों में आते हैं, इसका अर्थ वे जन्म लेते ही हैं। फिर उन्हें ‘अज’ - ‘अ-ज’ (मनुष्यों की तरह पुन:-पुन: जन्म न लेनेवाले) क्यों कहा गया है, इस रहस्य को भी वे उजागर करते हैं।
उसी प्रकार, ‘लीला’ यानी क्या और यह संपूर्ण विश्व यह उन परमात्मा का ‘कर्म’ न होकर, वह परमात्मा की ‘लीला’ कैसे है, यह भी सद्गुरु बापू ‘स्वलीलया’ शब्द का अर्थ बताते हुए स्पष्ट करते हैं। उस अनुषंग से, ‘आस्तिक’ यानी क्या और ‘नास्तिक’ यानी क्या, यह भी वे समझाकर बताते हैं; और यह बताते समय ही, ‘आस्तिक मनुष्य कभी भी परास्त क्यों नहीं हो सकता’ इस रहस्य को भी वे प्रकाशित करते हैं।
हमारे व्यक्तिगत एवं सामाजिक स्तर पर भी भगवान का कार्य कैसे चलता है, यह स्पष्ट करते समय, इन ‘मायामनुष्यं हरि’ श्रीराम का संपूर्ण चरित्र यह ‘मानव ने कैसे आचरण करना चाहिए’ इसका आदर्श वस्तुपाठ होने का एहसास सद्गुरु अनिरुद्ध बापू अन्त में हमें करा देते हैं।