रामरक्षा प्रवचन-२४ | मुख, सत्य एवं वास्तव : गहन अर्थ और जीवन से संबंध

रामरक्षा प्रवचन-२४ | मुख, सत्य एवं वास्तव : गहन अर्थ और जीवन से संबंध

 

रामरक्षा-कवच की ‘मुखं सौमित्रिवत्सल:’ पंक्ति का रोचक एवं जानकारीपूर्ण प्रवास जारी ही है। दिनांक ०५ मई २००५ को किये रामरक्षा पर आधारित इस प्रवचन में, सद्गुरु अनिरुद्ध बापू ‘मुखं सौमित्रिवत्सल:’ इस पंक्ति के ‘मुख’ शब्द पर बात कर रहे हैं।

 

हम जब ‘मुख’ शब्द बोलते हैं, तब हमें निश्चित रूप से क्या अभिप्रेत रहता है? - जिसके द्वारा हम बात करते हैं या खाते हैं वह मुँह? या चेहरा? या और कुछ? ऐसा प्रश्न पूछकर सद्गुरु अनिरुद्ध प्रवचन की शुरुआत करते हैं। ‘मुख’ शब्द के ये दो अर्थ तो हैं ही, लेकिन साथ ही, ‘मुख’ शब्द के एक अलग ही सुंदर अर्थ के बारे में वे बताते हैं, जिसका इस पंक्ति के साथ क़रिबी संबंध है।

 

ऐसे इस मुख की रक्षा ये ‘सौमित्रिवत्सल’ राम करते हैं, यानी क्या? यह रक्षा हमारे लिए किस तरह महत्त्वपूर्ण है और यह रक्षा अधिक से अधिक मात्रा में होने के लिए हमें कौनसा भ्यास करना चाहिए और उसके लिए किस तरह सीतामैय्या, बंधु लक्ष्मणजी, रामभक्त हनुमानजी और रामभक्त भरतजी का अनुकरण करना चाहिए, वह सद्गुरु बापू यहाँ समझाकर बताते हैं।

 

साथ ही, हमें हमेशा ‘सत्य’ और ‘वास्तव’ ये समानार्थी शब्द प्रतीत होते हैं। लेकिन वे अलग हैं। ‘सत्य’ और ‘वास्तव’ के बीच क्या फ़र्क होता है, यह सद्गुरु बापू यहाँ, रोजमर्रा के दैनंदिन व्यवहार के उदाहरण देकर ही समझाते हैं और उसीके साथ, हम मानव इस दुनिया में विचरण करते समय जैसा बर्ताव करते हैं, उसके संदर्भ में एक सबसे बड़ा वास्तव भी वे उजागर करते हैं।

 

‘मुखं सौमित्रिवत्सल:’ का यह विचारप्रवर्तक प्रवास अगले भाग में भी ऐसे ही जारी रहनेवाला है....