रामरक्षा प्रवचन - 6 | आजानुबाहु श्रीराम का ध्यान कैसे करोगे? रामरक्षा की फलश्रुति क्या है?
‘रामरक्षा’ इस सर्वांगसुंदर स्तोत्रमंत्र की एक-एक अर्थगर्भ पंक्ति के भावार्थ को उतनी ही सुंदरता से उजागर करते-करते सद्गुरु बापू आगे-आगे जा रहे हैं।
‘श्रीमद्हनुमान कीलकम्।’ इस रामरक्षा की पंक्ति को बारिक़ी से समझाने के बाद, सद्गुरु अनिरुद्ध बापू ने ०२ दिसम्बर २००४ का अगला प्रवचन निम्न पंक्तियों पर किया :
‘श्रीरामचन्द्रप्रीत्यर्थे जपे विनियोग:।
अथ ध्यानम् ।
ध्यायेदाजानुबाहुं धृतशरधनुषं बद्धपद्मासनस्थं’
कोई भी स्तोत्र पढ़ते समय इन्सान के मन में विचार उठता है - ‘मुझे इसका विनियोग कैसे करना चाहिए? इससे मुझे क्या फ़ायदा है?’ - फिर चाहे वह फ़ायदा आध्यात्मिक हो या व्यावहारिक। लेकिन इस दिव्य ऐसे रामरक्षा स्तोत्रमंत्र के बारे में बात करते समय बापू ने, उसका ‘विनियोग’ कितना अनोखा है और उस भाव से अगर यह स्तोत्रमंत्र पढ़ा जायें, तो पठनकर्ता को कितने श्रेष्ठ दर्जे का फ़ायदा हो सकता है, यह हमें यहाँ बताया है।
साथ ही, कोई भी पवित्र स्तोत्र सुफलित होने के लिए उसके आराध्यदेवता का ध्यान सुचारु रूप से करना महत्त्वपूर्ण होता है। रामरक्षा के आराध्यदेवता, ज़ाहिर है कि ‘प्रभु श्रीरामचंद्र’ ही हैं। तो इस स्तोत्रमंत्र से सर्वाधिक लाभ प्राप्त करने के लिए ‘धृतशरधनुष’ ‘बद्धपद्मासनस्थ’ ऐसे भगवान श्रीराम का ध्यान कैसे करना चाहिए, इस बारे में विवेचन बापू यहाँ करते हैं।
इसी ध्यान के अनुषंग से एक और शब्द आता है - ‘आजानुबाहु’। हमारे सुनने में आता है कि प्रभु श्रीराम ‘आजानुबाहु’ थे। कइयों के मन में सवाल उठता है कि यह कैसे संभव है? यहाँ पर बापू हमें - ‘आजानुबाहु’ मतलब क्या यह स्पष्ट करते हुए, इस संकल्पना का पहले सादा, सरल अर्थ ‘शरीररचना विज्ञान’ के - ‘ऍनॅटॉमी’ के आधार पर समझाकर बताते हैं और फिर, उसका वास्तविक गहरा आध्यात्मिक अर्थ क्या है, इसको भी उजागर करते हैं।
अन्त में एक मज़ेदार, लेकिन समर्पक उदाहरण बापू देते हैं, वह है महाराष्ट्र के बहुत ही लोकप्रिय ऐसे ‘श्रीखंड’ इस मीठे पक़वान का। अब इस सारे भक्तिप्रवास का, भला ‘श्रीखंड’ से क्या ताल्लुक हो सकता है? लेकिन प्रवचन के अन्त में सद्गुरु बापू श्रीखंड के इस उदाहरण के ज़रिये मानवी जीवन के एक बड़े रहस्य को हमें समझाक्रर बताते हैं।