सद्गुरु महिमा (Sadguru Mahima)
ll अवधूतचिंतन श्रीगुरुदेवदत्त ll
ll ॐ नमश्चण्डिकायै ll
Sadguru Mahima
अन्य सभी देवी-देवता तो भ्रमित करने वाले हैं; केवल गुरु ही ईश्वर हैं l एक बार अगर तुम उन पर अपना विश्वास स्थिर कर लोगे तो वे पूर्व निर्धारित विपदाओं का भी सामना करने में सहायता करेंगे l
- अध्याय १० ओवी ४
सद्गुरु की महती बयान करनेवाली अनेक ओवीयाँ श्रीसाईसच्चरित में आती रहती है। लेकिन मेरे मन में मात्र हमेशा यह ओवी छा गई है। इस एक ही ओवी में हेमाडपंत सद्गुरु कें चरणों का महत्त्व बया कर रहे है। भक्त ने सद्गुरु चरणों में विश्वास रखना, लेकिन यकिनन, निश्चित कहाँ? इस प्रश्न का उत्तर हमें यहाँ मिलता है । हेमाडपंतजी खुद का अनुभव बतातें है।
जिस क्षण से उनके चरणों का स्पर्श प्राप्त हुआ, जिस प्रेम भाव से उन्होंने मेरे बारे में पूछा, उसी क्षण से मेरे जीवन में एक नूतन आनन्द प्रवाहित प्रवाहित होने लगा एक नई उमंग आ गई l
- अध्याय २ ओवी १४०
यह अनुभव मैंने खुद भी लिया है। १९९७ की गुरुपौर्णिमा कें दिन मेरे सद्गुरु, परमपूज्य बापू का "पाद्यपूजन" मैंने किया । यह मेरे जीवन का "परमोत्कर्ष" और सच उस दिन से "नूतन जिंदगी शुरु हुई" । मेरे सद्गुरु ने मेरे दादा कें बाद मुझे इस पाद्यपूजन की संधी दी यह उसका अकारण कारुण्य । आज हम गुरुपौर्णिमा उत्सव मनातें समय मेरे मन में यह पहलें कीं यादें वैसेही ताजगींभरी है।
श्रीसाईसच्चरित कें ११ वें अध्याय से १५२ क्रमांक की ओवी बापूजीं नें मेरे पिताजीं से मुझे गुरुमंत्र स्वरुप दी ।
री सभी इच्छाएँ - यहाँ तक कि दुर्लभ से दुर्लभ - भी पूर्ण हो जाएँगीं, जिससे अंत मे तुम निष्काम बन जाओगे । तुम्हें दुर्लभ सायुज्य मुक्ति की अवस्था की प्राप्ति हो जाएगी । तुम्हारा चित्त परमशान्ति और संतोष का अनुभव करेगा ॥
- अध्याय ११ ओवी १५२
साईनाथजीं नें खुद निमवृक्षकें नीचे स्थित सुरंग कें बारे में कहाँ है ।
उसके बाद इसी जगह निमवृक्ष कें नीचे (गुरुस्थान) श्रीअक्कलकोट स्वामीजीं कें पादुकाओं कीं स्थापना करा ली ।
मेरी पसंदीदा सद्गुरु महिमा प्रगट करनेवाली ओवीयाँ नीचे दे रहा हूँ ।
श्रध्दा भाव से सद्गुरु के श्री चरणों में अपना तन, मन, सांसारिक धन व सर्वस्व न्यौछावर कर दो व अपना सारा जीवन गुरु की सेवा में ही अर्पित कर दो l
- अध्याय १ ओवी ५७
गुरु ही जननी हैं और गुरु ही पिता हैं l जब देवता क्रोधित होते हैं, तब गुरु ही रक्षा करते हैं, रक्षा करने वाला कोई नही होता l सदा यह याद रखो!
- अध्याय १८ ओवी २१
न ही साधन संपन्नता ज्ञान की आवश्यकता है, न ही छ. शास्त्रो में चातुर्य की जरुरत है l केवल यह दृढ़ विश्वास होना चाहिए कि गुरु ही कर्त्ता-हर्त्ता हैं l
- अध्याय १९ ओवी ७४
अब ध्यानपूर्वक सुनो कि तब काका ने चाकू गिराते हुए क्या कहा, "बाबा, आपके अमृत वचन, हमारे लिए धर्मशास्त्र हैं l
- अध्याय २३ ओवी १७०
"हम इसके अलावा कोई दूसरा धर्म नहीं जानते l इसकी हमें कोई लाज या शर्म नहीं है l गुरु के वचनो पालन ही असली चीज है; और वह हमारे लिए वेद-शास्त्र है l
- अध्याय २३ ओवी १७१
"गुरु की आज्ञा का पालन करने में ही शिष्य का कर्त्तव्य होता है l यही हमारा आभूषण है, और किसी भी तरह से इसकी अवज्ञा करना कलंक धब्बे के समान है l
- अध्याय २३ ओवी १७२
"चाहे उससे हमें सुख मिले या दु:ख-हमारी दृष्टि परिणाम की ओर केंन्द्रित नहीं होती l जो हमारे भाग्य में होगा, वह होकर रहेगा l वह हम ईश्वर पर छोडते हैं
- अध्याय २३ ओवी १७३
"जहाँ तक हमारी बात है, हम तो केवल एक चीज़ जानते हैं-हर समय आपका नाम लेना; आँखों में आपके दिव्य स्वरूप को बसाना और दिन-रात आपके शब्दों का पालन करता l
- अध्याय २३ ओवी १७४
"गुरु आज्ञा स्पष्ट होने पर भी, जब शिष्य उसके उपयुक्त या अनुपयुक्त, इष्ट या अनिष्ट के विषय में प्रश्न करता है, मेरे अनुसार तो वह सेवा से भ्रष्ट हो गया है l
- अध्याय २३ ओवी १७६
गुरु की आज्ञा का उल्लंघन तो अपने आप में ही जीव का अध: पतन है l गुरु की आज्ञा का परिपालन ही शास्त्रो के अनुसार मुख्य धर्माचरण है l
- अध्याय २३ ओवी १७७
"चित्त सदैव गुरु के चरणों में ही लीन होना चाहिए-चाहे प्राण रहें या जाएँ l गुरु की आज्ञा ही हमारे लिए सत्य प्रमाण है l परिणाम और निर्वाण तो केवल वे ही जानते हैं!
- अध्याय २३ ओवी १७८
"व्यक्तिगत लाभ या अनर्थ, हम नहीं जानते; न ही हम अपना या दूसरों के स्वार्थ के विषय मे जानते हैं l हम तो केवल गुरु के कार्य को करना ही जानते हैं l और हमारे लिए केवल वह ही हमारा आध्यात्मिक उत्थान है l
- अध्याय २३ ओवी १७९
’गुरु के वचनो के सामने विधी, निषेध, नियम व्यर्थ होते हैं l शिष्य का ध्यान तो केवल गुरु द्वारा बताए कर्तव्य की ओर ही केन्द्रित होना चाहिए l उसकी सभी मुश्किलों की जिम्मेवारी गुरु के उपर ही होंगी l
- अध्याय २३ ओवी १८०
’हम तो आपकी आज्ञा के दास हैं और क्या योग्य है या अयोग्य है, इसके विषय में हम प्रश्न नहीं करेंगे l जरूरत पड़ने पर हम अपने प्राणों का बलिदान तक दे देंगे किन्तु गुरु के वचनों का प्रतिपालन अवश्य करेंगे l"
- अध्याय २३ ओवी १८१
गुरु ही अनेक जन्मों से हमारे माता-पिता, पालवहार और रक्षक हैं l वे ही हरि (विष्णु), हर (शिव), और ब्रम्हा हैं l वे ही सभी कर्मों के कर्त्ता और उन्हें करवाने वाली शक्ति हैं l
- अध्याय २५ ओवी ६०
"जब आँखों के लिए केवल गुरु ही ध्यान क एक मात्र विषय हो और सभी कुछ स्वयं गुरु ही हों, ताकि उनसे अलग कुछ न हो, तब उसे एकनिष्ठ ध्यान कहते हैं l
- अध्याय ३२ ओवी ८१
उपर दिखाएँ मार्ग पर हम चलते रहे, तो हर भक्त की स्थिती "अखंड राम लाधाल(अखंड राम की प्राप्ती) ऐसे होगी। ऐसा मुझे भरोसा है ।