रामरक्षा प्रवचन-१८ | कौसल्यापुत्र राम ही मेरी दृष्टि की रक्षा क्यों करते हैं?

रामरक्षा प्रवचन-१८ | कौसल्यापुत्र राम ही मेरी दृष्टि की रक्षा क्यों करते हैं?

 

दिनांक १७ मार्च २००५ को किये रामरक्षा पर आधारित प्रवचन में, सद्गुरु अनिरुद्ध बापूजी ‘कौसल्येयो दृशौ पातु’ इस पंक्ति पर विवेचन शुरू कर रहे हैं। लेकिन, ‘कौसल्या के पुत्र श्रीराम मेरी दृष्टि की रक्षा करें’ यह सरलार्थ बताते समय ही वे स्पष्ट करते हैं कि यहाँ पर ‘कौसल्या के पुत्र श्रीराम’ यह शब्दप्रयोग क्यों किया गया है यह समझने के लिए सर्वप्रथम ‘कौसल्या’ को ठीक से समझना आवश्यक है।

 

माता कौसल्या ने बचपन से की हुई उपासना के कारण, श्रीरामजन्म के समय तक वे ठेंठ ब्रह्मज्ञान प्राप्त होने के सर्वोच्च पड़ाव तक आ पहुँची थीं। लेकिन वहाँ पर वे स्वेच्छा से रुक जाती हैं और गुरु वसिष्ठ से, ‘मुझे यह ब्रह्मज्ञान नहीं चाहिए’ ऐसी प्रार्थना करती हैं। ब्रह्मज्ञानप्राप्ति जैसी सर्वोच्च बात को माता कौसल्या क्यों नकारती हैं, यह सद्गुरु बापूजी यहाँ हमें सुंदर रूप से समझाकर बताते हैं। कौसल्यामाता के इस सर्वोच्च त्याग की कृति में से हम क्या और कैसे सीख सकते हैं, इस बात को वे उजागर करते हैं। 

 

कौसल्या के पुत्र रहनेवाले श्रीराम ही हमारी दृष्टि की रक्षा करते होने के कारण हमारी दृष्टि भी माता कौसल्या की तरह होनी चाहिए, यानी कैसी, यह भी सद्गुरु अनिरुद्धजी यहाँ स्पष्ट करते हैं। लेकिन यह करते समय हमें ‘श्रीराम का भान’ सँभालना आवश्यक है। यह ‘श्रीराम का भान’ यानी क्या, यह भी सद्गुरु बापूजी हमें समझाकर बताते हैं।

 

अन्त में, ‘हम भगवान से कितने दूर आये हैं’ वह दूरी नापने के पाँच आसान परिमाण (Prognostic Index) भी सद्गुरु बापूजी यहाँ हमें बताते हैं और उसका ‘कौसल्येयो दृशौ पातु’ से क्या संबंध है, यह भी स्पष्ट करते हैं।