रामरक्षा प्रवचन - 8 | श्रीराम का पीतांबर यानी क्या? भगवान से मेरी दूरी कैसे मिटेगी?
हमारे लिए पूज्य रहनेवाले परमात्मा के अवतार ‘श्रीराम’ तथा ‘श्रीकृष्ण’ ये दोनों भी ‘पीतांबर’ पहने हम देखते हैं। गुरु दत्तात्रेय भी पीतांबर ही धारण करते हैं। भगवान विठ्ठल की आरती में भी ‘पिवळा पीतांबर कैसा गगनीं झळकला’ यह पंक्ति हम सुनते हैं। वैसे ही, माता शिवगंगागौरी (माता वल्गा - माता बगलामुखी) ये भी पीले रंग के वस्त्र ही धारण करतीं हैं और उनका एक नाम भी ‘पीतांबरा’ ही है। ज़ाहिर है कि परमात्मा का और पीले रंग का कुछ तो गहरा रिश्ता होना चाहिए। वह क्या है, यह सद्गुरु अनिरुद्ध बापू २३ दिसम्बर २००४ के अपने रामरक्षा पर आधारित प्रवचन में, ‘पीतं वासो वसानं’ इस रामरक्षा की पंक्ति को समझाते हुए स्पष्ट करते हैं।
साथ ही, यह पीतांबर यानी केवल एक पीले रंग का वस्त्र न होकर, भक्तविश्व के साथ होनेवाले इस पीतांबर के आध्यात्मिक रिश्ते को बहुत ही गहराई से, लेकिन आसान शब्दों में बापू उजागर करते हैं और उसके लिए वे, श्रेष्ठ संत जनाबाई का - ‘नाचता नाचता हरीचा पीतांबर सुटला। सावर-सावर देवा ऐसे कबीर बोलला’ इस अभंग को और संत जनाबाई की ही एक कथा को संदर्भ के रूप में लेते हैं।
पीतांबर पर आधारित इस विवेचन के अनुषंग से सद्गुरु बापू - ‘परमेश्वर और हमारे बीच की दूरी को दूर कैसे करें? भक्ति करते समय किस लक्ष्य को आँखों के सामने रखें? हमारे मन में श्रीराम का उदय होता है यानी क्या?’ ऐसे कई मुद्दों को स्पर्श करते हैं; साथ ही, इस पीतांबर का ‘सगुण’ एवं ‘निर्गुण’ के साथ होनेवाला संबंध, श्रीराम का ध्यान करते समय इस पीतवस्त्र का महत्त्व, उसी प्रकार, हमारे लिंगदेह के साथ रहनेवाले इस पीतवर्ण के रिश्ते को भी स्पष्ट करते हैं।