नवरात्रि अंबज्ञ इष्टिका पूजन

 नवदुर्गा पूजन     मराठी     

सद्गुरु श्रीअनिरुद्धजी ने बताए अनुसार कई श्रद्धावान अपने घर पर नवरात्रोत्सव मेंअंबज्ञ इष्टिका पूजनकरते हैं। आगेनवरात्रिपूजनका विधिविधान निम्नलिखित है। हर श्रद्धावान अपने घर में इस प्रकार पूजन कर सकता है।

 

व्हिडिओ      

 

प्रतिष्ठापनाः 

१) आश्विन तथा चैत्र नवरात्रि के पहले दिन पूजा शुरू करने से पहले इष्टिका के चारों तरफ गेरू का लेप अच्छी तरह से लगाएँ। (यदि अंबज्ञ इष्टिका है, तो यह कार्रवाई करने की कोई आवश्यकता नहीं है।)

 

२) इसके बाद एक परात (बड़ी थाली) में आवश्यक प्रमाण में मृत्तिका लेकर उसपर थोड़ा सा जल सींचिए (छिड़किए)।

 

३) वह मिट्टी ठीक से गीली हो जाने के बाद उसमें गेहूँ के दाने बोइए और उसपर पुन: थोड़ा सा जल और मृत्तिका का सिंचन कीजिए (छिड़किए)। परात की मृत्तिका (मिट्टी) में गेहूँ (गोधूम) बोने की विधि का समावेश है। इस विधि के अनुसार बोये जाने वाले गेहूँ अंबज्ञ इष्टिका के मुख के सामने न बोते हुए, उन्हें अन्य सभी तरफ से बोयें, जिससे कि नवरात्रि की अवधि में गेहूँ के तृणांकूरोंसे से आदिमाता का मुख ढँक न जाये। (संदर्भ के लिए साथ में दी गयी तसबीर देखें।)

 

४) इसके बाद किसी पाट पर या मेज़ (टेबल) पर या पीढ़े पर पाटंबर/ मुटका या हरे रंग का खण (एक चोली के लिए पर्याप्त वस्त्र) बिछाइए। उस स्थान के नीचे और चारों ओर कम से कम रंगोली का होना आवश्यक है।

 

५) इसके बाद ‘जय जगदंब जय दुर्गे’ यह गजर करते हुए इस परात को उस पूजास्थान पर रख दीजिए। (पाट/पीढ़ा/मेज़)

 

६) इसके बाद उस सिंदूरचर्चित इष्टिका को, उसका समतल विभाग पूजक के सामने आ जाये, इस प्रकार से उस गोधूम (गेहूँ) मिश्रित मृत्तिका रहने वाली परात में रख दीजिए।

 

७) इसके बाद उस इष्टिका के समतल विभाग पर काजल या अबीर से देवी की आँखें, नाक और होंठ रेखांकित कीजिए।

 

८) फिर उस इष्टिका पर अपने पसंदीदा रंग की एक चुनरी, माथे पर के पल्लू की तरह अर्पण कीजिए।

 

(पूजनविधीमें अर्पण करने के लिए यदि चुनरी उपलब्ध न हो, अथवा यदि अपनी इच्छा हो तो भी चोलीखण अथवा ब्लाउजपीस अर्पण कर सकते है।)

 

पहले दिन पूजन में मोठी आई (अंबज्ञ इष्टिका) को चुनरी ही अर्पण करनी है।

 

९) इसके बाद एक तुलसीपत्र और एक बेलपत्र (बिल्वपत्र) उस इष्टिका के दोनों तरफ मिट्टी में रोपित कर दीजिए - अब यह ‘अंबज्ञ इष्टिका’ अर्थात् ‘मातृपाषाण’ अर्थात् ‘आदिमाता दुर्गा का पूजनप्रतीक’ तैयार हो गया है।

 

जिनकी इच्छा हो, वे अपनी कुलदेवता की तसबीर, टाक (धातु पर मुद्रित कुलदेवता की प्रतिमा) अथवा मूर्ति इस पवित्र परात के पीछे या आगे सुविधा के अनुसार रख सकते हैं। बड़ी तसबीर हो तो उसे संभवत: पीछे रखिए और टाक या छोटी मूर्ति हो तो उसे परात के सामने एक छोटे ताम्हन (पूजापात्र) में कुंकुममिश्रित अक्षताओं पर रख दीजिए।

 

१०) इसके बाद अपनी सुविधा और इच्छा के अनुसार दंपती अथवा अकेला व्यक्ति श्रद्धावान पहनावे में सामने बैठें या खड़ा रहें।

 

अगले दिन से पूजन घर का अन्य कोई भी सदस्य कर सकता है। घर का अलग अलग सदस्य भी पूजन कर सकता है। १४ वर्ष से अधिक आयु वाला कोई भी व्यक्ति यह पूजन कर सकता है।

 

११) इसके बाद उस आदिमाता-स्वरूप ‘अंबज्ञ इष्टिका’ को ‘ॐ नमश्चण्डिकायै’ यह कहते हुए हलदी और कुंकुम लगाइए।

 

१२) फिर हाथ जोड़कर ‘ॐ गं गणपतये नमः’ यह जप पाँच बार कीजिए।

 

१३) अब नवदुर्गाओं की ‘नाममंत्रमाला’ एक बार या तीन बार या पाँच बार अथवा नौ बार कहते हुए उस आदिमाता को कुंकुम-अक्षता, हरिद्रा (हलदी)-अक्षता, बिल्वपत्र, तुलसीपत्र और पुष्प अर्पण कीजिए। (नवदुर्गा-नाममंत्रमाला कहने से, पूजन करते समय यदि अनजाने में कुछ गलतियाँ हो गयी हों तो उनका निराकरण हो जाता है।)

 

नवदुर्गा नाममंत्रमाला -

 

१) ॐ श्रीशैलपुत्र्यै नम:।        २) ॐ श्री ब्रह्मचारिण्यै नम:।     ३) ॐ श्री चन्द्रघण्टायै नम:।      ४) ॐ श्री कूष्माण्डायै नम:।      ५) ॐ श्री स्कन्दमात्रे नम:।         

 

६) ॐ श्री कात्यायन्यै नम:।      ७) ॐ श्री कालरात्र्यै नम:।      ८) ॐ श्री महागौर्यै नम:।      ९) ॐ श्री सिद्धिदात्र्यै नम:।

 

 

१४) आदिमाता को वेणी (एक विशिष्ट गजरा) अथवा गजरा प्रतिदिन अर्पण कर सकते हैं।

 

१५) फिर झंडु के फूलों की एक माला उस परात के चारों तरफ फेर दीजिए। (दूसरे दिन से, शाम के नित्य पूजन में नयी माला अर्पण करते समय, पिछले दिन की माला / मालाएँ पूजनरचना में रखें या न रखें, यह हर श्रद्धावान अपनी पसंद तथा सहूलियत के अनुसार तय कर सकता है।)

 

१६) इसके बाद पुरण (पूरन) (पुरण = उबाले जाने के बाद गुड़ मिलाकर पीसी हुई चने की दाल) - वरण (पकाई हुई दाल) का नैवेद्य अर्पण कीजिए। वरण-भात और पुरण के अलावा अपनी इच्छा एवं पसंद के कोई भी भोजनपदार्थ अवश्य अर्पण कीजिए।

नैवेद्य अर्पण करते समय पुरण पर ही तुलसीपत्र रखिए।

 

प्रतिष्ठापना पूजन तथा नित्य पूजन के उपचारों के अनुसार, आदिमाता को हररोज़ क्रमानुसार सुबह और शाम दूध-शक्कर का नैवेद्य अर्पण करना आवश्यक है।

 

साथ ही, दूसरे दिन से हररोज़ शाम को किये जानेवाले नित्य पूजन के दौरान पुरण-वरण का और अन्य भोजनपदार्थों का नैवेद्य अपनी इच्छानुसार अर्पण कर सकते हैं। लेकिन शाकाहारी और मांसाहारी दोनों प्रकार के व्यक्ति शाकाहारी नैवेद्य ही अर्पण करें तो वह श्रेयस्कर हैं। भोजन के अन्य पदार्थों में प्याज़-लहशुन का पथ्य नहीं है। मांसाहार संभवत: वर्ज्य करें।

 

१७)   फिर ‘माते गायत्री सिंहारूढ भगवती महिषासुरमर्दिनी....’ यह आरती दीप प्रज्वलित करके कीजिए।

 

इस समय अन्य कोई भी आरती न लें।

 

पहले दिन रात को भी यह आरती करना आवश्यक है। उसके बाद दूध-शक्कर का नैवेद्य अर्पण करके उसे प्रसाद के रूप में सभी ग्रहण करें।

 

१८)  इसके बाद ‘ॐ यज्ञेन यज्ञमयजन्त....’ यह मंत्रपुष्पांजलि कहकर उपस्थित सभी पुष्प, बिल्वपत्र और तुलसीपत्र अर्पण करें।

 

१९)  फिर आदिमाता को धूप अर्पण कीजिए।

 

२०)   इसके बाद लोटांगण कीजिए।

 

२१)  मिट्टी पर प्रतिदिन जल सींचिए।

 

व्हिडिओ      

 

नित्यपूजनः

१) पहले दिन यह पूजन सुबह के समय करें। उसके बाद ‘१३’ क्रमांक से लेकर सभी उपचार अर्पण करके प्रतिदिन शाम को पूजन करें।

 

नित्यपूजन स्नान करके श्रद्धावान पहनावे में करें।

 

२) परन्तु अगले दिन पूजन करते समय पहले अर्पण की गयी चुनरी को वैसे ही रखते हुए, उसपर प्रतिदिन एक एक अलग अलग रंग की चुनरी आरती करने से पहले अर्पण करें। (सभी चुनरियाँ एक ही रंग की हों तो भी कोई हर्ज़ नहीं है।)

 

कभी कभी नवरात्रि-तिथियाँ केवल आठ दिनों तक ही होती हैं, उस समय विजयादशमी के पूर्व दिन में दो चुनरियाँ अर्पण करनी चाहिए। किसी वर्ष नवरात्रि-तिथियाँ नौ के बजाय दस दिनों तक होती हैं, ऐसे समय पर बढ़ती संख्या में चुनरियाँ अर्पण करनी चाहिए। (ऐसे समय पर कुल १० चुनरियाँ अर्पण की जायेंगी।)

 

३) अन्य दिन जब शाम को पूजन करेंगे, तब प्रतिदिन सुबह दूध-शक्कर का नैवेद्य अवश्य अर्पण करें।

 

४) शाम के समय आरती करते हुए विभिन्न आरती करने में कोई हर्ज़ नहीं है। इस समय आरती किसी भी क्रम से की जा सकती हैं।

 

 

पुनर्मिलापः

 १) आश्विन नवरात्रि में विजयादशमी के दिन और चैत्र नवरात्रि में रामनवमी के दूसरे दिन प्रात: (सुबह) आदिमाता को हलदी और कुंकुम अर्पण करके दूध-शक्कर और पुरण इतना ही नैवेद्य अर्पण करें।

 

२) और फिर अक्षता और फूल अर्पण करके आदिमाता की अपने शब्दों में क्षमायाचना एवं कृपायाचना करें। और फिर दोनों हाथ जोड़कर निम्नलिखित मंत्र कहें।

 

आवाहनं न जानामि न जानामि तवार्चनम्। पूजां चैव न जानामि क्षमस्व परमेश्‍वरि॥

 

३) फिर स्वयं की परिक्रमा करते समय (स्वयं गोल गोल घूमते हुए) तीन प्रदक्षिणाएँ करते हुए निम्नलिखित मंत्र कहें।

 

यानि कानि च पापानि जन्मान्तरकृतानि च। तानि तानि विनश्यन्ति प्रदक्षिण्यां पदे पदे॥

 

४) स्वयं की तीन परिक्रमाएँ पूरी हो जाने के बाद, परात (बड़ी थाली) में अंकुरित हुए पौधों पर फूल से दूध का सिंचन करें (छिड़कें) और आदिमाता के मस्तक पर कुंकुम-अक्षता अर्पण करते हुए ‘गुरुक्षेत्रम् मंत्र’ कहें। फिर परात को उसके रखे हुए स्थान से थोड़ासा हिलाइए।

 

५) इसके पश्‍चात् स्व-इच्छा और अपनी सुविधा के अनुसार उस अंबज्ञ-इष्टिका का जल में पुनर्मिलाप करना चाहिए और उस परात में से थोड़ी सी मृत्तिका (मिट्टी) तुलसी के पौधे को अर्पण करनी चाहिए और परात में अंकुरित हुए पौधों में से एक पौधा तुलसी के गमले में लगाना चाहिए। बाकी सभी चीज़ों का विसर्जन करना चाहिए।

 

पुनर्मिलाप-पूजन के पश्‍चात् विजयादशमी अथवा उसके बाद अगले तीन दिनों में किसी भी समय अंबज्ञ-इष्टिका का जल में पुनर्मिलाप करना चाहिए। पुनर्मिलाप होने तक हर रोज़ सुबह-शाम दूध-शक्कर का नैवेद्य अर्पण करना चाहिए।

 

चुनरी चढ़ाने के संबंध में सूचना

सद्गुरु श्रीअनिरुद्धजी ने बताए अनुसार कई श्रद्धावान अपने घर पर नवरात्रोत्सव में ’अंबज्ञ इष्टिका पूजन’ करते हैं। इस दौरान श्रद्धावान नित्य पूजन में अंबज्ञ इष्टिका को अर्थात मोठी आई को चुनरी अर्पण करते हैं। अंबज्ञ इष्टिका के पुनर्मिलाप के दिन, अर्पण की गई चुनरियों का भी पुनर्मिलाप किया जाता है।

 

परंतु, हररोज अंबज्ञ इष्टिका पर अर्पण की जानेवाली चुनरियों का एकत्रित विसर्जन करना, कुछ स्थानिक प्रशासनों के नियमानुसार संभव नहीं हो पाता। इसलिए कई श्रद्धावानों ने चुनरी के बजाए मोठी आई को ब्लाऊज पीस अर्पण करने के बारे में पूछा था, ताकि यह ब्लाऊज पीस बाद में गुदड़ी बनाने के लिए अथवा व्यक्तिगत उपयोग के लिए इस्तेमाल किए जा सकें। इसके अनुसार अंबज्ञ इष्टिका पूजन में निम्नलिखित बदलाव किए गए हैं :-

 

१) पहले दिन पूजन में मोठी आई (अंबज्ञ इष्टिका) को चुनरी ही अर्पण करनी है।

 

२) दूसरे दिन से, नित्य पूजन में श्रद्धावान चुनरी अथवा ब्लाऊज पीस अर्पण कर सकते हैं। ब्लाऊज पीस अर्पन करने के बाद इसे अंबज्ञ इष्टिका पर न रखते हुए अंबज्ञ इष्टिका के एक तरफ रखे जाएं। अर्थात, पहले दिन अर्पण की गई चुनरी अंबज्ञ इष्टिका पर ही पूजन के सभी दिन रहेगी और अर्पण किए गए ब्लाऊज पीस, अर्पण करने के बाद उठाकर एक तरफ रखे जाएंगे।

 

३) यह अर्पण किए गए ब्लाऊज पीस श्रद्धावान ’मायेची ऊब’ योजना के अंतर्गत गुदडियां बनाने के लिए इस्तेमाल कर सकते हैं अथवा खुद के लिए भी इस्तेमाल कर सकते हैं।

 

४) अर्पण की गई चुनरी हमेशा की तरह अंबज्ञ इष्टिका के साथ पुनर्मिलाप की जाए।

 

उपरोक्त पूजनविधि में किए गए बदलाव श्रद्धावानों के लिए ऐच्छिक हैं। श्रद्धावान अंबज्ञ इष्टिका पर हररोज चुनरी अर्पण कर सकते हैं और ऐसा करने पर सभी चुनरियों का पुनर्मिलाप किया जाना चाहिए।

 

 

अन्य सूचना

 

* घर में जन्म-मृत्यु-अशौच होने पर भी इस पूजन को कर सकते हैं।

 

* मासिक धर्म के दौरान महिलाएँ दर्शन कर सकती हैं तथा प्रणाम भी कर सकती हैं।

 

* नवरात्रि के दौरान आप यदि अपने घर के अलावा अन्य स्थान पर निवास कर रहे हों, उस समय भी आप यह पूजन कर सकते हैं।

 

* नवरात्रि के दौरान घर के किसी सदस्य या रिश्तेदार का स्वर्गवास हो जाने पर नवरात्रिपूजन को जारी रखना है अथवा नहीं, इस विषय में श्रद्धावान अपना निर्णय स्वयं लेने के लिए स्वतन्त्र हैं; लेकिन ऐसे समय यदि कोई बीच में ही पुनर्मिलाप करना चाहता है, तो उसे ‘आदिमाता शुभंकरा स्तवनम्’ ११ बार कहकर, फिर अक्षता अर्पण करके उसके बाद ही पुनर्मिलाप करना चाहिए।

 

* यदि कोई व्यक्ति अपने घर में पहली बार यह नवरात्रिपूजन करता है, तो यह अनिवार्य नहीं है कि उसे हर वर्ष यह पूजन करना ही चाहिए। परन्तु जिनके यहाँ पहले से वंशपरंपरा से नवरात्रिपूजन होता है, उनके लिए हर वर्ष यह पूजन करना आवश्यक है।

 

* यदि किसी के यहाँ पहले से ही प्रतिवर्ष नवरात्रिपूजन होता आ रहा हो तो उनकी अगली पीढ़ी के व्यक्तियों के लिए यह पूजन जारी रखना आवश्यक है।

 

* यदि कोई व्यक्ति पहली बार यह पूजन करना आरंभ करता है, तो पूजन आरंभ करने के समय वह यह संकल्प करें कि ‘इस पूजन को अगली पीढ़ी में आगे करते रहना है अथवा नहीं, इसका निर्णय अगली हर एक पीढ़ी ही करेगी।’

 

* घर के अन्य मंगल एवं शुभ प्रसंगों के समय भी एक दिन में इस पूजन को कर सकते हैं। इस एकदिवसीय पूजन के समय परात में गेहूँ रखकर उसपर अंबज्ञ-इष्टिका रखें और पूजन करें और पूजन के उपरान्त गेहूँ ज़रूरतमंद को दान करें।

 

* श्रद्धावान उनकी अपनी पुरानी पद्धति के अनुसार पूजन कर सकते हैं। परंतु ऊपरोक्त पद्धति से पूजन करने से नवरात्रि-पूजन करते समय की त्रुटियाँ और गलतियाँ अथवा व्यक्तिगत दोष इनका परिणाम नहीं होता।

 

* कुछ श्रद्धावान इससे पहले अलग अलग पद्धति से पूजन करते आये हैं; परन्तु तब भी सद्गुरु के शब्द के अनुसार पूजन करें या अन्य पद्धति से पूजन करें, इसका निर्णय श्रद्धावान व्यक्तिगत रूप से ले सकते हैं।

 

* २०१७ से आरंभ हुए आश्विन नवरात्रि-उत्सव में परमपूज्य सद्‍गुरु द्वारा दी गयी नवरात्रि पूजन की विशेष पद्धति का लाभ अनेक श्रद्धावान उठा रहे है।