मोद-क
नैवेद्य के रूप में मोदक अवश्य अर्पण करें और प्यार से स्वयं भी खायें, परन्तु मोद का अर्थ है आनंद, यह न भूलें। परमात्मा और अन्य लोगों को आनंद हो ऐसा व्यवहार करना ही सर्वश्रेष्ठ मोदक है।'
नैवेद्य के रूप में मोदक अवश्य अर्पण करें और प्यार से स्वयं भी खायें, परन्तु मोद का अर्थ है आनंद, यह न भूलें। परमात्मा और अन्य लोगों को आनंद हो ऐसा व्यवहार करना ही सर्वश्रेष्ठ मोदक है।'
मोदक नैवेद्य म्हणून जरूर अर्पण करा व आवडीने स्वतःही भक्षण करा परंतु मोद म्हणजे आनंद हे विसरू नका. परमात्म्यास व इतरांस आनंद होईल असे वागणे, हाच सर्वश्रेष्ठ मोदक होय.'
"Mangalmurti Morya" and "Sukhakarta Dukhaharta" are revered epithets of Shri Ganapati, well known to all. In fact, it is primarily because of his epithet “Sukhakarta Dukhaharta” (Giver of Joy, Remover of Sorrows) that we so readily prepare to bring Ganapati into our homes.
गणपतिजी के मंगलमूर्ति मोरया और सुखकर्ता दुखहर्ता इन दो बिरदों के बारे में सभी जानते ही हैं। दरअसल गणपतिजी के ‘सुखकर्ता दुखहर्ता' इस बिरदावलि के कारण ही हम उन्हें घर ले आते हैं। लेकिन ‘मंगलमूर्ति' इस बिरद के बारे में क्या हम कभी सोचते हैं?
मंगलमूर्ती मोरया व सुखकर्ता दु:खहर्ता, ही ह्या श्रीगणपतीची बिरुदे प्रत्येकास माहीतच असतात. किंबहुना ह्या ‘सुखकर्ता दु:खहर्ता' बिरुदावळीमुळेच तर आम्ही गणपतीस घरी आणण्यास तयार होत असतो, पण ‘मंगलमूर्ती' ह्या बिरुदाचे काय?