Why the Human Birth - Hemadpant
पिछले हफ्ते की दारा सिंहजी के मृत्युकी खबर सभीकों दु:ख देकर गई। हर एक भारतीय खेद व्यक्त कर रहा था। लेकिन मौत यह जीवन की अपरिहार्यता (कडवा सच) हैं। साईसत्च्चरित कें ४३ वे अध्याय में हेमाडपंतजीं हमें यही बताते हैं।जन्म के साथ मृत्य आवश्य आती है l इन्हें एक-दूसरे से अलग नहीं किया जा सकता l मरण जीव की प्रकृति का लक्षण है l लेकिन जीव का जीवन विकृति है l
- अध्याय ४३ ओवी ५२
मरण (मॄत्यु) देह की प्रकॄति है, मॄत्यु ही देह की सुखकारी स्थिति है l जीवन ही देह की अस्वाभाविक स्थिति है l ऐसा विचारांत लोगों का कहना है l
- अध्याय ४३ ओवी ५६
फिर अगर ऐसाही है तो जन्म लेकर क्या करना हैं। यह प्रश्न हरएक को पड सकता है और पडताही हैं। जब हिसाब किताब, लेखाजोखा करने की बारी आती हैं। तब, "मैने क्या हासील किया? यह सवाल आता ही है। यह नरजन्म किसलिये इस बारेमें हेमाडपंतजी लिखते है।मैं कहाँ से आया हूँ मैं कौन हूँ मुझे मानव-जन्म क्यों मिला हैं? जिसे इन सब के मूल सिध्दान्तों का ज्ञान है, वह ही कुशल और प्रवीण व्यक्ति है l बिना इअस ज्ञान के सब कुछ बेकार हैं l
- अध्याय ८ ओवी १६
परन्तु जब मन में शाश्वत सुख और शांन्ति को ध्येय बनाकर, हर वस्तु में ईश्वर-दर्शन करके उसकी उपासना की जाती है तो मोक्ष की परम प्राप्ति स्वत: हो जाती हैं l
अगर केवल स्थूल शरीर का पालन-पोषण करना और मैथुन करना ही मानव अस्थित्व के सबसे ऊँचे और अंतिम उद्देश्य की पूर्ति के साधन हैं, तो यह मानव जन्म यथार्थ में अर्थहीन है!
- अध्याय ८ ओवी ३१
और इसिलिए हेमाडपंत समझाकर कहते है की, यह नरदेह किस तरह इस्तमाल नही करना हैं और किस प्रकार करना है।
- अध्याय ८ ओवी १२
जब तक इस शरीर का पतन नहीं होता, तब तक आत्म-ज्ञान को प्राप्त करने का यत्न करो l इस नर-जन्म का एक क्षण भी व्यर्थ मत गँवाओ l
इसे केवल अपना सेवक मानो l बेकार में इसकी प्रशंसा मत करो l हर समय इससे लाड़ करके, इसे नर्क के द्वार की तरफ मत धकेलो l
- अध्याय ८ ओवी ३३
आगे जाकर बडी आस्थासे कहतें हैं,
इसलिए इश्वर मानव की रचना करके प्रसन्न था l इश्वर का सोचना था कि मानव अपनी बुध्दि और विवेक का उपयोग करेगा; वह वैराग्य धारण कर उसका भजन करेगा l
- अध्याय ८ ओवी ५२
इस सृष्टि में अन्य कोई भी प्राणी मोक्ष प्राप्त करने के साधनों से संपन्न नहीं है l इसके लिए केवल नरदेह ही साधन संपन्न है l इश्वर का विचार था कि मानव इस शरीर का साधना में उपयोग करके स्वयं अविनाशी नारायण की प्राप्ति करेगा l
- अध्याय ८ ओवी ५३
और इसलिए आगे जाकर हर भक्त को बिनती करते हैं।
- अध्याय ८ ओवी ७८
हेमाडपंतजीने "नरजन्मका एकभी क्षण" छुट न जाये इसलिए क्या किया? हेमाडपंतजीने साईनाथजीको ही बिनती की।लेकिन मैं आपके चरणों का दास हूँ l मुझे निराश मत करना l जब तक इस शरीर में श्वास बाकी है; तब तक आप मुझे यंत्र बनाकर अपना उद्देश्य पूर्ण करवाते रहना l
- अध्याय ३ ओवी ४०
लेकीन इसतरह की उच्च कोटीं की बिनती हेमाडपंत क्यों कर सके ऐसा प्रश्न हम से सर्वसामान्य (मामुली) भक्त को पड सकते है। और उसका जवाबभी हेमाडपंतजीं हमे देते हैं साईसत्चरित के ४० वें अध्यायमें
चित्त में और हॄदय में निरंतर केवल साई का ध्यान था और ऎसा विचार लगातार चल रहा था l इन सात वर्षों में उनके सान्निध्य में न ही ऎसा विचार या आशा थी कि वे कभी भोजन के लिए मेरे यहाँ आएँगे l
- अध्याय ४० अवी ११९
यह हेमाडपंतजीकां "हमेशा की लगन है, धुन है, इस जन्मकी, इसके पहलेवाले जन्मकी और इसलिए हमेशाके लिए (forever) हर एक क्षण हेमाडपंतजीको इस साईंकाँही ध्यास था। साईनाथ खान खाने आए इसके प्रतिही उनकी इच्छा थी। और इसिलिए उनके लिए "स्वप्न" यह आभास नही था। इसिलिए हर एक साईभक्त कीं राह हेमाडपंतजीकें राह सें ही होती है, होकर जाती हैं।