स्वस्तिक्षेम संवादम् (Swastikshem Sanwad)
कल परमपूज्य बापूजी ने प्रवचन में स्वस्तिक्षेम संवादम् की संकल्पना सारे श्रद्धावानों के समक्ष रखी; सभी श्रद्धावानों के हित के लिए।
इस में प्रत्येक श्रद्धावान को चण्डिकाकुल के किसी भी सदस्य के साथ संवाद करना है। श्रद्धावान के मन की भावना, विचार या वो जो कुछ कहना चाहता है वो उस सदस्य के समक्ष कह सकता है। पहले बापू श्रीहरिगुरुग्राम में प्रवचन से पूर्व,
"सर्वमंगलमांगल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके। शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोस्तु ते।।'
यह श्लोक पढेंगे / उच्चारेंगे, तत्पश्चात कम से कम ५ मिनटों का समय होगा जिस में प्रत्येक श्रद्धावान को आंखें मूंदकर, हम साक्षात चण्डिकाकुल के समक्ष बैठे हैं ऐसा मानकर, जानकर, चण्डिकाकुल में से किसी भी सदस्य से या सभी से एकसाथ भी, वह जैसे चाहे वैसे संवाद कर सकता है। इस दौर के पश्चात बापू मातृवात्सल्य उपनिषद में से, यह श्लोक पढेंगे / उच्चारेंगे.
"नम: सर्वशुभंकरे। नम: ब्रह्मत्रिपुरसुन्दरि। शरण्ये चण्डिके दुर्गे। प्रसीद परमेश्वरि।।'
बापूजी का विश्वास और यकीन है कि इस प्रकार से स्वस्तिक्षेम संवादम के माध्यम द्वारा चण्डिका कुल से या चण्डिकाकुल में से किसी भी सदस्य से किया हुआ संवाद उन तक किसी भी अन्य माध्यम के बिना / एजंट के बिना आसानी से निश्चितरूप से पहुंचेगा।
प्रत्येक अधिकृत उपासन केंद्र पर भी इसी तरह से स्वस्तिक्षेम संवादम् शुरु करने की व्यवस्था की जाएगी तथा उस संवादम के दौरान वह उपासना केंद्र भी हरिगुरुग्राम ही हो चुका होगा, यह बापूजी का संकल्प है।
बापूजी के संकल्पानुसार स्वस्तिक्षेम संवादम श्रीहरिगुरुग्राम पर एवं उपासना केंद्र पर ही साधा / किया जा सकता है।