सदगुरु श्री अनिरुद्ध बापूजी के रामरक्षा पर प्रथम प्रवचन की एक झलक

सदगुरु श्री अनिरुद्ध बापूजी के उपदेशों के दिव्य सागर में, श्रीराम का नाम एक शाश्वत, जीवनदायिनी धारा की तरह बहता है जो सदैव पवित्र, सदैव शक्तिशाली है। हमारे लिए, प्रभु श्री रामचंद्र केवल एक देवता नहीं हैं - वे आत्मा हैं, हमारे अस्तित्व का स्रोत हैं। चाहे वह बचपन में सुनी गई कहानियाँ हों या मंदिरों में की जाने वाली प्रार्थनाएँ, सही आचरण के मूल्यों से लेकर कर्तव्य की भावना तक, श्री राम हर भारतीय के दिल में बसे हुए हैं।
श्रीराम के प्रति हमारी भक्ति को और गहरा करने और रामरक्षा की शक्ति को पुनर्जीवित करने के लिए, सदगुरु अनिरुद्ध बापूजी द्वारा साल 2004 में दिए गए ज्ञानवर्धक रामरक्षा प्रवचन अब यूट्यूब पर अपलोड किए जा रहे हैं।
इस ब्लॉग श्रृंखला के माध्यम से, हमने सर्वकष इस मूल्यवान प्रवचन श्रृंखला के सारांश को प्रस्तुत करने का प्रयास किया है, जिसकी शुरुआत पहले प्रवचन से होती है। प्रत्येक सारांश यह, सदगुरु बापूजी के शब्दों की गहराई, प्रेम और आध्यात्मिक समृद्धि को दर्शाने का एक प्रयास है, ताकि प्रत्येक पाठक अपने अंतरात्मा में स्थित श्रीराम के और करीब आ सके।
प्रथम प्रवचन का सारांश
राम रक्षा – एक स्तोत्र और एक मंत्र
यह प्रवचन रामरक्षा स्तोत्र के गहन महत्व और दिव्य उत्पत्ति पर प्रकाश डालता है। यह राम नाम की शक्ति से उत्पन्न एक सर्वोच्च मंत्र है। ऐसा कोई पाप नहीं है जिसे राम का नाम नष्ट न कर सके, और ऐसा कोई पापी नहीं है जिसे राम का नाम उद्धार न कर सके। यह एक नाम हजारों—यहाँ तक कि अनंत दिव्य नामों के बराबर है।
रामरक्षा स्तोत्र की उत्पत्ति गहरी भक्ति, दिव्य अनुभूति, और जिस दुनिया ने राम नाम, जो एक बहुत ही सरल और केवल तीन-अक्षर/तीन-शब्दों का नाम है, को भूला दिया था, उसे वहां फिर से पुनः जागृत करने की लौकिक योजना में निहित है ।
रामरक्षा स्तोत्र केवल एक स्तोत्र नहीं है, बल्कि एक "स्तोत्र-मंत्र" है - एक ऐसी रचना जो एक स्तुति (स्तोत्र) और एक आध्यात्मिक रूप से शक्तिशाली मंत्र दोनों है।
संपूर्ण दिव्य परिवार राम नाम के शाश्वत स्मरण के लिए प्रार्थना करता है I
रामायण काल के बाद जब राम नाम मानव स्मृति से लुप्त हो गया था, तब ऋषि बुध कौशिकजी ने इसकी स्मृति को पुनर्जीवित करने के लिए हिमालय से रामेश्वरम की यात्रा की। काशी में, उन्होंने भगवान शिव से प्रार्थना की कि वे मनुष्यों के बीच राम नाम को शाश्वत बना दें। प्रत्येक व्यक्ति की स्वतंत्र इच्छा का सम्मान करते हुए, भगवान शिव सीधे यह वरदान नहीं दे सकते थे, इसलिए उन्होंने पार्वती, गणेश, कार्तिकेय, नंदी और बुध कौशिकजी के साथ घोर तपस्या की। जवाब में, भगवान राम एक साथ भगवान शिव और बुध कौशिकजी के सामने प्रकट हुए, जिसके परिणामस्वरूप एक दिव्य मिलन हुआ और शक्तिशाली रामरक्षा स्तोत्र का जन्म हुआ। दिव्य तेज को सहन करने में असमर्थ, बुध कौशिकजी बेहोश हो गए, लेकिन उन्होंने स्तोत्र को अपने हृदय में रख लिया।
देवी सरस्वती का हस्तक्षेप
जब बुधकौशिकजी उन्हे प्रकट हुए स्तोत्र को लिख रहे थे, तो देवी सरस्वती ने उनके अहंकार को बढने से रोकने के लिए हस्तक्षेप किया। उन्होंने यह सुनिश्चित किया कि स्तोत्र पूरा होने के बाद ही प्रकट होगा, ताकि उनका हृदय अहंकार से अछूता रहे।
राम रक्षा को पहले सुनने के लिए एक दिव्य संघर्ष
जब इस बात पर विवाद छिड़ गया कि रामरक्षा स्तोत्र को सबसे पहले सुनने का अधिकार किसे है, तो इससे एक अकल्पनीय विशाल वंश का उदय हुआ - वाल्मीकि से लेकर क्रौंच पक्षी, शिकारी, लोहार, उनके पूर्वज और अंततः भगवान ब्रह्मा और भगवान शिव तक।
तब भगवान राम ने प्रकट किया कि उनके नाम को सुनने की उत्सुकता से प्रेरित होकर, सृष्टि के प्रत्येक जीव की यह भीड़ ही वरदान की पूर्ति है । राम नाम ब्रह्मांड के प्रत्येक जीव तक पहुँच गया था। इस प्रकार, सभी प्राणियों की यह इच्छा कि वे राम नाम में रममाण हो, आज्ञा से नहीं, बल्कि दिव्य आकर्षण और लीला (दिव्य खेल) द्वारा पूरी हुई।
यह स्तोत्र एक अद्वितीय आध्यात्मिक खजाना है जो अशुद्धियों को दूर करता है, व्यक्ति के जीवन के सभी पहलुओं को परमात्मा से जोड़ता है, और परमात्मा के प्रति लालसा को बढ़ाकर दुखों पर विजय पाने का मार्ग दिखाता है। आपको इस मार्ग को खोजने या खुलवाने की आवश्यकता नहीं है। जिस क्षण आप इसे सच्चे प्रेम और स्नेह से बोलेंगे, यह आपकी रक्षा करने के लिए तैयार है।
संपूर्ण प्रवचन मराठी में :-
https://www.youtube.com/watch?v=SyP9BrJfqCI
संपूर्ण प्रवचन हिंदी में :-
https://www.youtube.com/watch?v=pqyXxpOAnI8