श्रीशब्दध्यानयोग-विधि (Shreeshabdadhyanayoga procedure) - Aniruddha Bapu Pitruvachanam 15 Oct 2015
परमपूज्य सद्गुरु श्री अनिरुद्ध बापू ने अपने १५ अक्तूबर २०१५ के पितृवचनम् में ‘श्रीशब्दध्यानयोग-विधि’ के बारे में बताया।
अनिरुद्ध बापू ने पितृवचन में यह बताया कि पहले मूलाधार चक्र की उपासना होगी, पूजन होगा। उसके बाद स्वाधिष्ठान चक्र की प्रतिमा होगी। मूलाधार चक्र के बाद स्वाधिष्ठान चक्र इसी क्रम से सप्त चक्रों की उपासना एवं पूजा होगी।
स्वाधिष्ठान चक्र - इसके स्वामी है प्रजापति ब्रह्मा। यहाँ प्रजापतति हिरण्यगर्भ के जो मंत्र हैं, प्रजापतिब्रह्मा का ही दूसरा नाम हिरण्यगर्भ है, प्रजापति हिरण्यगर्भ के मंत्रों का पठन होगा और पूजन होगा। उसके बाद मणिपूर चक्र आता है - इसके स्वामी यज्ञस्वरूप महाविष्णु यानी श्रीराम हैं। इस उपासना की पुस्तिका भी आयेगी। ये जो मंत्र होंगे उनमें विष्णुसूक्त, अग्निसूक्त के मन्त्र होंगे। इसके बाद आता है अनाहत चक्र। अनाहत चक्र में व्यक्ति से समष्टि तक के स्वामी परमशिव हैं। इस चक्र का ध्यान करते समय शिव जी के याने रुद्र के वैदिक मंत्र कहे जायेंगे।
व्यक्ति से लेकर समष्टि तक का, सभी का प्रतिनिधित्व करने वाले चक्रों की प्रतिमाएँ यहाँ पर होंगी। फिर आता है विशुद्ध चक्र! यहाँ के निवासी बिभिषण जी हैं। यह राम-रावण युद्ध का स्थल है। राम-रावण युद्ध का origin इंद्र-वृत्र युद्ध में है। इन्द्र से संबंधित जो मंत्र है, वे विशुद्ध चक्र की उपासना में पढे जायेंगे। यहाँ विशुद्ध चक्र की उपासना होगी। पहले के चक्रों की तरह ही व्यष्टि से लेकर समष्टि तक सब का प्रतिनिधित्व उस प्रतिमा में होगा।
शब्दध्यानयोग-विधि के बारे में हमारे सद्गुरु अनिरुद्ध बापू ने प्रवचन में बताया, जो आप इस व्हिडिओ में देख सकते हैं।
॥ हरि ॐ ॥ ॥ श्रीराम ॥ ॥ अंबज्ञ ॥