गुरुवार पितृवचनम् - १० डिसेंबर २०१५
गुरुवार, दि. १० दिसम्बर २०१५ को श्रीहरिगुरुग्राम में परमपूज्य बापू ने एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण विषय पर पितृवचन दिया। श्रद्धावानों के लिए बहुत ही श्रद्धा का स्थान रहनेवाला त्रिविक्रम "श्रीश्वासम" में निश्चित रूप में कैसे कार्य करता है और मानव का अभ्युदय करानेवालीं ‘कार्यक्षमता’, ‘कार्यशक्ति’ और ‘कार्यबल’ इन तीन मूलभूत ज़रूरतों की आपूर्ति कैसे करता है, इस बारे में बापू ने किया हुआ पितृवचन संक्षिप्त रूप में मेरे श्रद्धावान मित्रों के लिए इस पोस्ट के द्वारा मैं दे रहा हूँ।
‘‘त्रिविक्रम ये उस माँ का, उस आदिशक्ती के श्रीविद्यास्वरूप का एकमेव पुत्र है। जिस का ब्रेन (Brain) याने मन याने बुद्धी याने मगज़ ये दत्तात्रेय है, जिस का हार्ट (Heart) याने हृदय (अंत:करण) आदिमाता स्वयं है और जिस के कर्मेंद्रिय महाप्राण हनुमानजी है, ऐसा ये त्रिविक्रम है। लेकिन ये त्रिविक्रम श्रीश्वासम् में कैसे कार्य करता है? आज मैं सिर्फ इस विषय पर थोड़ा बोलने वाला हूँ। क्योंकि समझने के बाद हमें उस का लाभ और भी ज्यादा हो सकता हैं।
इस के लिए पहले हमे जानना चाहिए के जो दत्तात्रेय यानी अवधूत है...दत्तभगवान जिसे कहते है, वो दत्तात्रेय क्या है? ये आदिमाता श्रीविद्या क्या है? इसे श्रीविद्या कहो, महिषासुरमर्दिनी कहो, अनसूया कहो, जगदम्बा कहो, दुर्गा कहो, that does not make any difference.
इतना तो सीखा होगा की किसी भी चीज में, किसी भी वस्तु में अपनी अपनी खुद की एक क्षमता होती है। उसे हम ‘कार्यसामर्थ्य’ कहते है...याने कार्य करने का सामर्थ्य, जिसे हम अंग्रेजी में ‘पोटेंशियल एनर्जी’ (Potential Energy) कहते है। हम सभी के पास जो मूलभूत क्षमता है, कार्यसामर्थ्य है, पोटेंशियल एनर्जी है, वो उसी दत्तात्रेयजी का एक अंश है।
हम पेंडूलम (Pendulum) का उदाहरण लेते है। जब हम उसे एक तरफ ले के जाते है, और छोड़ देते है, तो वो अपने आप घुमने लगता है। ‘पोटेंशियल एनर्जी’ ‘कायनेटीक एनर्जी’ (Kinetic Energy) बनती है। यानी जो स्थिर शक्ती है, वो हलचल करनेवाली शक्ती बन जाती है। उसे कहते है ‘कार्यशक्ती’। ये अम्बा क्या हैं? ये अम्बा है कार्यशक्ती।
ये ‘पोटेंशियल एनर्जी’ जो है, क्षमता है, इसे हम लोग ‘कपॅसिटी’ (Capacity) भी कह सकते है। अंग्रेजी में अगर हम दत्तात्रेयजी को, यानी पोटेंशियल एनर्जी को कपॅसिटी कहते है, तो ये अम्बा, यानी ये कार्यशक्ती को ‘कॉम्पीटन्सी’ (Competency) कहते है। ये अम्बा का ‘श्रीविद्या’ स्वरूप है, जो ताकद भी देता है, उत्साह भी देता है, और कार्य करवाता भी है, सिखाता भी है। इसीलिए वो श्रीविद्या है...याने विश्व की, विश्व को निर्माण करनेवाली ये कॉम्पीटन्सी है। यानी अगर हम में कॉम्पीटन्सी या कार्यशक्ती या उत्साहशक्ती कम है, तो वो कहाँ से आयेगी? उस आदिमाता से आयेगी। अगर हम में कार्यसामर्थ्य या कार्यक्षमता कम है, तो वो कहाँ से आयेगी? उस अवधूत से, दत्तात्रेयजी से आयेगी।
कभी हम लोगों के पास ताकद होती है, लेकिन काम करने का उत्साह नही होता है। हम जितने स्फूर्ती से काम करना चाहते है, जितने तेज़ी से करना चाहते है, कर नही सकते, जितनी कुशलता के साथ करना चाहिए, कर नही सकते। ये कुशलता हम में आती है, जब कॉम्पीटन्सी यानी कार्यशक्ती होगी तभी। और इस कार्यशक्ती का स्त्रोत, महास्त्रोत कौन है? ये आदिमाता है, जगदम्बा है, अम्बा है, चण्डिका है, महिषासुरमर्दिनी है।
अभी इस के बाद तिसरे है आंजनेय। आदिमाता का एक नाम अंजना भी है और ये आंजनेय यानी हनुमानजी। वही दत्तात्रेय है। ये सिर्फ हमारे लिए विविध रूप धारण किये हुए है। अब इस आंजनेय का कार्य क्या है? तो हम लोग इन्सान है, हमारे पास लिमीटेशन्स (Limitations) है...किसी भी बात की सीमा होती है। उस सीमा के अंदर रहकर भी हम हमारा अभ्युदय, यानी विकास कर सकते है; सुख, आनंद, समाधान, तृप्ती, यश हासिल कर सकते है। ये हमारा अधिकार है। किसने दिया है? उस आदिमाता ने दिया है। उस के उस बेटे त्रिविक्रम ने दिया है। उस ने कर्मस्वातंत्र्य दिया है, तो आप को यशपूर्ण जीवन जीने का पूरा पूरा अधिकार भी दिया है, सुखी होने का पूरा पूरा अधिकार दिया है। इस के आड़े कोई भी नही आ सकता। सिर्फ हम और हमारा कर्म आड़े आ सकता है, बाकी कुछ भी नही।
लेकिन जीवन में हम सभी लोग ‘आरंभशूर’ होते है। बड़ा बड़ा ताशा, बेंजो लगा कर कार्य का आरंभ तो कर देते है। एक दिन, दो दिन, तीन दिन, चार दिन करते करते, आहिस्ते करते करते, पहले दिन जो समझो सौ ग्राम काम किया था, सौ दिनों के बाद एक ग्राम भी नही होता। सो अभी ‘फोर्स’ (Force) भी चाहिए। जैसे देखो नदी ऊपर से नीचे आती है, फिर एक लेव्हल (Level) पे बहती है। वो अपने आप नही बहती। उस में क्या होता है? उस की खुद की गती होती है, अपना ‘फोर्स’ होता है।
उसी तरह हमारा दिल देखिए। जनम से लेकर आज तक धडक रहा है। एक मिनीट भी बंद हो गया, तो क्या होगा? नही चलेगा। ये हार्ट की जो गति है, वो चलानेवाला हार्ट का पेसमेकर (Pacemaker) है। यह एक छोटा सा बिंदु होता है हमारे हार्ट में, हृदय में, जहाँ इलेक्ट्रीसीटी उत्पन्न होती है, और वो हार्ट में प्रसारित की जाती है। उस से हमारा हार्ट चलता है। सिर्फ हार्ट धडकना इतना ही काफी नही, तो जिस तरह से खून बहता है...पूरे शरीर के हर एक पेशी तक जाने के लिए, उस के पास क्या चाहिए? अपना खुद का फोर्स चाहिए। वो फोर्स कहाँ से आता है? उस हृदय के कॉन्टॅ्रक्शन (Contraction) से आता है, धडकने से आता है, आकुंचन प्रसरण की क्रिया से आता है। ये हो गया ‘कार्यबल’। ये आंजनेय याने क्या है? कार्यबल है, जिसे हम लोग अंग्रेजी में ‘पोटन्सी’ (Potency - forceful & fruiful activity) कहते है।
जो ‘कार्यक्षमता’ है, जो ‘कार्यशक्ती’ है, वो सही तरीके से उपयोग में लाने के लिए हमे ‘पोटन्सी’ चाहिए, ‘कार्यबल’ चाहिए, जिसका स्त्रोत है महाप्राण, हनुमानजी, आंजनेय। सो ये आंजनेय यानी हनुमानजी याने पोटन्सी। इन तीन (‘कार्यक्षमता’, ‘कार्यशक्ती’ और ‘कार्यबल’) चीजों का, इन तीन ताकदों का हमारे पास होना और उनका अभिव्यक्त होना, हमारे काम में आना, यह भी बहुत आवश्यक होता है।
हमारे दिल के धडकन से लेकर, हमारी एक सीधीसी हलचल से लेकर, हमारी पढाई से लेकर, हमारे प्रापंचिक जीवन से लेकर आध्यात्मिक जीवन तक हम जो भी कार्य करते है, जो भी सोचते है, वो सोचने के लिए भी इन तीनों की आवश्यकता है। क्योंकी सोचने के बाद हमे सही निर्णय लेना होता है। कितनी बार हम लोग गलत साबित होते है? जो पहले बहुत अच्छी लगी, वो एक साल के बाद जान लेते है के सब से खराब चीज निकली। इसीलिए सिर्फ कार्य के लिए ही नही, तो सोचने के लिए भी, रात को सोने के लिए भी इन तीनों का होना आवश्यक है।
और श्रीश्वासम् क्या करता है? श्रीश्वासम् में त्रिविक्रम की अरुला शक्ती कार्य करती है। अरुला शक्ती का दूसरा नाम है ‘अपरा अद्विता’। त्रिविक्रम की अरुला शक्ती यानी ‘हिलींग पॉवर इन द वर्ल्ड’ (Healing Power In The World) जो की हमारे पास खुद में भी होती है। हमारे सप्तचक्रों में इसी का ही झंकार चालू रहता है। लेकीन हम ही हमारे कार्य को न करने कारण उस को हमेशा ही कुछ प्रमाण में खंडीत करते है। इसीलिए ये ‘कार्यक्षमता’, ‘कार्यशक्ती’ और ‘कार्यबल’ इन तिनों का होना आवश्यक है।
आदिमाता ने, श्रीविद्या ने जब जाना के ये मानव इन तिनों चीजों का स्वीकार करने में असमर्थ हो जाता है, तो उसने श्रीविद्या स्वरूप धारण किया, जो हमारे सप्तचक्रों की स्वामिनी का स्वरूप है, और उसने अपने पुत्र का भी निर्माण किया जिसका नाम त्रिविक्रम है। ये त्रिविक्रम एक ही है, जिसे देवाधिदेव कहा जाता है। इस त्रिविक्रम में ‘त्रि’-विक्रम क्या है? तो ये अकेला ही आप को दत्तात्रेयजी से, अवधूतजी से ‘कार्यसामर्थ्य’, ‘कर्यक्षमता’, ‘कपॅसिटी’ लेकर प्रदान कर सकता है, आदिमाता जगदम्बा से ‘कार्यशक्ती’, ‘कायनॅटीक एनर्जी’, ‘कॉम्पीटन्सी’ लेकर प्रदान कर सकता है, और महाप्राण आंजनेय से, हनुमानजी से ‘कार्यबल’, ‘पोटन्सी’, ‘फोर्स’ लेकर प्रदान कर सकता है। क्योंकि उस के पास ये तिनों चीजें एक साथ मौजुद है।
और इसीलिए श्रीश्वासम् में हम ‘अवधूत अम्बे आंजनेया त्रिविक्रमा क्षमस्व, प्रसीद, अरुलय, अम्बज्ञ’ कहते है। आदिमाता का जो श्वास है, उस का स्विकार करने के लिए भी ये तिनों की आवश्यकता है।
आदिमाते तेरे श्वास मेरे देह में चल रहे हैं। माँ तुझ पे प्यार मेरा, और तेरा भी मुझ पे है।
उस के प्यार को स्विकारने के लिए भी (To accept her divine love, to accept her divine providence); जो आदिमाता हमे देना चाहती है, उसे स्विकारने के लिए भी हमारे पास ये तीन चीजें होनी चाहिए।
हम लोग जानते है की जो सप्तचक्र पूजा हम लोग यहाँ पर करते है, उसे सात ॠषियों ने बनाया। श्रीशब्दध्यानयोग को बनाया। उस में जो ‘आप्त वाक्य’ है, ‘स्वस्तिवाक्य’ है, उन में त्रिविक्रम के शब्द है। त्रिविक्रम की ताकद उस स्वस्तिवाक्य में है। इसीलिए जब इन यंत्रों (सप्तचक्र) को देख कर हम उन स्वस्तिवाक्यों का उच्चारण करते है, पठण करते है, तो इन त्रिविध शक्तियों का संचार हमारे पूरे देह में; स्थूल देह में, प्राणमय देह में और मनोमय देह में होने लगता है। और यह ही ‘हिलींग एनर्जी’ (Healing Energy) है, ‘हिलींग पॉवर’ (Healing Power) है। वही हमे तंदुरुस्त करनेवाली, निरोगीकरण करनेवाली, यानी हमारे रोगों को, व्याधीयों को दूर करनेवाली अरुला शक्ती है, अपरा अद्विता है। इन शब्दों को भूलना नही।
इसीलिए हम कहते है, ‘अवधूत अम्बे आंजनेया त्रिविक्रमा, क्षमस्व, प्रसीद, अरुलय, अम्बज्ञ’. ‘अरुलय’ यानी ‘मुझे ठीक कर, Please heal me O Lord’. और जब मैं प्रार्थना करता हुँ की ‘अरुलय’, तो मुझे विश्वास है की ये त्रिविक्रम मुझे ठीक करेगा ही। इसलिए अंत में क्या कहते है? ‘अम्बज्ञ’. यहाँ सिर्फ व्याधीयों की और शारीरिक बिमारियों की ही बात नही है। उस के साथ मानसिक बिमारियाँ भी है। जो भी सारी डिफिकल्टीज (Difficulties) है, ये भी सारी बिमारियाँ ही है। तो उस से बाहर निकलने के लिए हमारे जीवन में उस त्रिविक्रम का होना बहुत आवश्यक है।
और ये त्रिविक्रम कैसा होता है? हम लोगों ने देखा की वो हमेशा एक कदम कभी भी नही चलता। जब हम चलते है, तो एक कदम उठाते है, बाद मे दूसरा, बाद मे तिसरा। लेकिन त्रिविक्रम एक अकेला ऐसा है, जो एक साथ तीन कदम उठाता है। उसे है तो दो पैर ही, लेकिन दो पैरों के साथ ही जब उस का एक कदम चलता है, तो तीन कदमों का अंतर वो पार करता है।
इस त्रिविक्रम के तीन कदम कैसे है? एक कदम रखा...पृथ्वी कव्हर कर ली। दूसरा कदम रखा...पूरा आंतरिक्ष भर गया। तिसरा कदम रखा...तो पूरा स्वर्गलोक भर गया। उस के एक कदम के नीचे त्रैलोक्य आ सकता है, ऐसा ये त्रिविक्रम है। मैं कितना भी पापी क्यों न हूँ, मैं कितना भी पुण्यवान क्यों न हूँ, मेरे लिए इस त्रिविक्रम को आदिमाताने अपने ‘कम्पॅशन’ (Compassion) से बनाया...अपनी प्रेममयी करूणा से उत्पन्न किया है...और वो कुछ मापदण्ड लेकर नही बैठता है माँपने के लिए। मापदण्ड देता है जीवन सुधारने के लिए।
वो तोलता नही रहता हर मिनीट...इस का पाप इतना है, इस का पुण्य इतना है...नही नही नही नही। उस का प्रमुख शस्त्र क्या है? क्षमा. उसका प्रमुख अस्त्र क्या है? प्रेम. हमे जानना चाहिए की यह उस का ‘ग्रेस’ (Grace) है, और ग्रेस का मतलब क्या है? ‘अनमेरीटेड फेवर’ (Unmerited favour). मेरी हैसियत (लायकी) ना होते हुए भी, जो भगवान मुझ से प्यार करता है, जो ये आदिमाता चण्डिका मुझ से प्यार करती है, मुझे क्षमा करती है, मुझे सहाय्य करती है, वह ‘ग्रेस’ है। ‘ग्रेस’ का संस्कृत में ट्रान्सलेशन है ‘अरुला’. हमारे हर प्रॉब्लेम को भगवान का ग्रेस ही क्युअर (Cure) करता है।
सो आज से हम जब श्रीश्वासम् सुनेंगे, बड़े ध्यान से सुनो। बड़े प्यार से सुनिए। विश्वास से सुनिए। विश्वास यानी ‘फेथ’ (Faith)। मैंने बार बार कहां है के ‘You are not being judged by your performance, you are being judged by your faith’ (तुम्हारे कार्य-संपादन से नही, बल्कि तुम्हारे विश्वास से तुम्हारा मूल्यांकन किया जाता है।)
‘मेरा भगवान मुझे सहायता करेगा, मेरा भगवान मुझे जरूर सहायता करेगा’ इसे विश्वास नही कहते। ये आशा है।
‘मेरा भगवान मुझे सहाय्य कर ही रहा है, और बार बार करता रहेगा, और करता रहा है’, ये विश्वास है। तो इस विश्वास के साथ श्रीश्वासम्, श्रीस्वस्तिक्षेम संवादम्, श्रीशब्दध्यान योग और गुरुक्षेत्रम् मंत्र का पठन करना है; जो चार स्तंभ है हमारे अभ्युदय के।
श्रीगुरुक्षेत्रम् मंत्र आपको ईश्वरीय संयोग (Divine connection) प्रदान करता है। श्रीस्वस्तिक्षेमसंवादम् आपको ईश्वरीय सहायता (Divine help) एवं अधिक अच्छे अवसर (Better opportunities) प्रदान करता है। श्रीश्वासम् आपको ईश्वरीय निरोगीकरण (Divine healing) प्रदान करता है। श्रीशब्दध्यानयोग आपको ईश्वरीय सुरक्षा एवं आधार (Divine protection and support) प्रदान करता है।’’
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हरि ॐ। श्रीराम। अंबज्ञ। जय जगदंब । जय दुर्गे ।