सुंदरकांड पठण उत्सव - १७ मई से २१ मई २०१६
संतश्रेष्ठ श्री तुलसीदास जी विरचित ‘श्रीरामचरितमानस’ यह ग्रंथ भारत भर के श्रद्धावान-जगत् में बड़ी श्रद्धा के साथ पढ़ा जाता है। इस ग्रन्थ के ‘सुंदरकांड’ का श्रद्धावानों के जीवन में बहुत ही महत्त्वपूर्ण स्थान है। सद्गुरु श्री अनिरुद्ध जी को भी ‘सुंदरकांड’ अत्यधिक प्रिय है।
सीतामैया की खोज करने हनुमान जी के साथ निकला वानरसमूह सागरतट तक पहुँच जाता है, यहाँ से सुन्दरकांड का प्रारंभ होता है। उसके बाद हनुमान जी सागर पर से उडान भरकर लंका में प्रवेश करके जानकीमाता की खोज करते हैं और लंका को जलाकर फिर श्रीराम के पास लौटकर उन्हें सब कुछ बताते हैं। उसके बाद बिभीषण जी भी श्रीराम की शरण में आ जाते हैं और वानरसैनिकों के साथ प्रभु श्रीराम सेतुनिर्माण कार्य का आरंभ करते हैं। इस घटनाक्रम का वर्णन सुंदरकांड में किया गया है। ‘सुंदरकांड’ यह हमारे जीवन को सभी पहलुओं से सुंदर बनाता है, ऐसा सद्गुरु श्रीअनिरुद्ध बापु बार बार बताते हैं। दैनिक प्रत्यक्ष में सुंदरकांड पर आधारित ‘तुलसीपत्र’ यह अग्रलेखमाला बापु नारदजयंती 2007 से लिख रहे हैं और आज तक इसके बारह सौ से अधिक अग्रलेख प्रकाशित हुए हैं।
इनमें से पहले अग्रलेख में सुंदरकांड के बारे में बापु कहते हैं -
‘‘सुंदरकांड यह रामायण में रहनेवाला अत्यंत सुंदर, देदीप्यमान, तेजस्वी एवं शुभप्रद शिखर है। दत्तगुरुकृपा से इस सुंदरकांड के प्रति मेरे मन में अपरंपार प्रेम है। इस नारद जयंती से मैं सुंदरकांड की हर एक चौपाई और दोहे पर लगातार क्रमश: लिखनेवाला हूँ। यह मेरे मन के द्वारा सुंदरकांड की पवित्रता को किया गया लोटांगण होगा।’’
संतश्रेष्ठ तुलसीदास जी के बारे में अग्रलेख में बापु लिखते हैं -
सन्तश्रेष्ठ तुलसीदास जी ये सन्त रामदासस्वामी जी की तरह ही आम लोगों को अत्यधिक प्रेम के साथ रामभक्ति सिखानेवाले एक श्रेष्ठ सन्त थें। तुलसीदास जी की हर एक साँस रामनाम से जुड़ी हुई थी और जिस पल उनके हृदय का हर एक स्पन्दन रामनाम से जुड़ गया, उसी पल तुलसीदास जी को साक्षात् महाप्राण हनुमान जी के दर्शन हुए और तुलसीदास जी की आँखो के सामने हनुमानजी ने सम्पूर्ण रामकथा को प्रत्यक्षित कर दिया और उस रामकथा को प्रत्यक्ष देखते देखते तुलसीदास जी ने रामकथा को यानी ‘श्रीरामचरितमानस’ को लिखकर पूरा किया।
सुंदरकांड के महत्त्व के बारे में बापु लिखते हैं -
‘‘मानव के जीवनविकास के लिए, गृहस्थी और परमार्थ के लिए आवश्यक सम्पूर्ण मार्गदर्शन इस सुन्दरकाण्ड में भरा हुआ है। इस मार्गदर्शन का लाभ उठाकर अपने जन्म को सुसमृद्ध बनाने के लिए, सुख-शान्ति और तृप्ति की प्राप्ति करने के लिए जिस सामर्थ्य की आवश्यकता रहती है, वह सामर्थ्य प्रदान करने की ताकत भी इस सुन्दरकाण्ड में है।’’बापु ने अपने प्रवचनों में भी सुंदरकांड की महिमा का बखान बार बार किया है।
महावीर वज्रांग यानी बजरंगबली जी अपने मूल स्वरूप में कार्य करने के लिए सिद्ध हो जाते हैं, यहीं पर सुन्दरकाण्ड का प्रारंभ होता है। श्री हनुमान जी को बापु सदा ही ‘रक्षकगुरु’ कहकर संबोधित करते हैं और सुंदरकांड यह हनुमान जी का पुरुषार्थ है, ऐसा भी बापु बताते हैं।
मेरे रक्षकगुरु श्रीहनुमान जी स्वयं को प्रभु श्रीरामचन्द्र जी का दास कहलवाने में ही धन्यता मानते हैं और यह अनिरुद्ध उन हनुमान जी का दासानुदास कहलवाने में ही अपने जीवनकार्य की इतिकर्तव्यता मानता है, इन शब्दों में हनुमान जी के प्रति रहनेवाले अपने प्रेम को बापु अभिव्यक्त करते हैं।
प्रतिवर्ष मई के महीने में श्री अनिरुद्धगुरुक्षेत्रम् में ‘श्री हनुमानचलीसा’ इस स्तोत्र का, बापु के मार्गदर्शन के अनुसार श्रद्धावान प्रतिदिन 108 बार इस तरह साप्ताहिक पाठ करते हैं। साथ ही इस वर्ष जनवरी में ‘श्री अनिरुद्धगुरुक्षेत्रम्’ में ‘सुंदरकांड पाठ’ का भी आयोजन किया गया था। इस पठनकाल में सुंदरकांड के कुल ग्यारह सौ पाठ किये गये। बापु के घर के पूजाघर में स्थित श्रीरामपंचायतन की मूर्तियों का पुरोहितवृंद के द्वारा अर्चन करने के बाद इस पाठ का शुभारंभ हुआ। ‘रक्षकगुरु’ हनुमानजी की तसबीर के सामने पाठ का यह कार्यक्रम संपन्न हुआ। स्वयं बापु हर रोज़ इस पाठ में उपस्थित रहते थे। हज़ारों श्रद्धावानों ने भी इस पाठ का लाभ लिया।
अधिक से अधिक श्रद्धावान इसका लाभ ले सकें, इस उद्देश्य से सद्गुरु श्रीअनिरुद्ध बापु के मार्गदर्शन के अनुसार श्रीहरिगुरुग्राम, न्यू इंग्लिश स्कूल, बांद्रा (पूर्व) यहाँ पर 17 मई से 21 मई 2016 तक सुंदरकांड पाठ कार्यक्रम का आयोजन किया गया है। इस उत्सव की एक और विशेषता यह है कि बापु के घर के पूजाघर में स्थित श्रीरामपंचायतन की मूर्तियों के साथ साथ स्वयं बापु के द्वारा तराशी गयी हनुमान-शिला भी पूजनस्थल पर विराजमान रहेगी। इस कार्यक्रम के महत्त्व के बारे में बताते हुए बापु ने कहा -
सुंदरकांड पाठ के इस कार्यक्रम के रूप में सद्गुरु बापु ने सभी श्रद्धावानों को अपना जीवन सुंदर बनाने के लिए स्वर्णिम अवसर ही दिया है। तो आइए, इस पाठ में प्रेम से सम्मिलित होकर हम सब श्रद्धावान इसका अधिक से अधिक लाभ उठाते हैं।
॥ हरि ॐ ॥ ॥ श्रीराम ॥ ॥ अंबज्ञ ॥