सोशल मीडिया

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जकल हम देख ही रहे हैं कि तंत्रज्ञान ने मानवी जीवन को किस तरह व्याप्त किया हुआ है। मोबाईल्स, कॉम्प्युटर्स, लॅपटॉप्स, टॅबलेट्स ऐसे अनगिनत गॅजेट्स के रूप मे यह तंत्रज्ञान कदम कदम पर हमारे संमुख आ जाता है। नयी पीढ़ी तो नये तंत्रज्ञान के साथ झट् से दोस्ती कर लेती है, लेकिन औरों का क्या? क्या वे आधुनिक तंत्रज्ञान के लाभों से वंचित ही रहें? ऐसे सवाल उठते हैं।

इन चीज़ों से जुड़ा और एक शब्द बार बार हम सुनते हैं - सोशल मीडिया। शुरू शुरू में केवल अपने पुराने दोस्तों के साथ, रिश्तेदारों के साथ संपर्क बनाये रखने के माध्यम के रूप में सामने आया यह सोशल मीडिया आज इतना आगे निकल चुका है कि एक तरफ़ मल्टिनॅशनल कंपनियाँ अभी मार्केटिंग के लिए सोशल मीडिया का इस्तेमाल कर रही हैं और दूसरी तरफ़ किसान भी अपने दैनंदिन जीवन में सोशल मीडिया का इस्तेमाल करते हुए दिखायी देते हैं। अर्थात् किसीकी इच्छा हो या न हो, दुनिया के साथ चलना है, तो इस सोशल मीडिया के साथ अपना मेल बिठा लेना ही पड़ेगा।

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आम आदमियों को रहनेवाली इस सोशल मीडिया की ज़रूरत को पहचानकर ‘दैनिक प्रत्यक्ष’ ने सन २०१४ का अपना नववर्षविशेषांक ‘सोशल मीडिया’ इस संकल्पना को लेकर ही बनाया था। इस विशेषांक में ब्लॉग, यूट्युब, फेसबुक, ट्वीटर, लिंक्डइन, व्हॉट्स्ऍप, व्हाईन जैसे सोशल मीडिया के इस्तेमाल की जानकारी बहुत ही सीधे-सरल शब्दों मे दी थी। इस विशेषांक के अपने अग्रलेख में सद्गुरु बापू ने, आम इन्सान के लिए रहनेवाला सोशल मीडिया का महत्त्व, ज़रूरत और औचित्य को सुस्पष्ट शब्दों मे समझाकर बताया था। ‘आनेवाले समय में कॉम्प्युटर चलाना न जाननेवाला मनुष्य ‘अनपढ़’ समझा जायेगा, फिर चाहे वह कितना भी उच्चशिक्षित क्यों न हों’ इस मुद्दे को दृढतापूर्वक अंकित करते हुए बापू सुस्पष्ट शब्दों में चेतावनी देते हैं - “गत काल में पोस्ट ऑफिस के बाहर अनपढ़ लोगों को पत्र लिखकर देनेवाले लोग टेबल बिछाकर बैठते थे। आनेवाले समय मे शायद पोस्टऑफिस के बाहर ऐसे लेखनिक न भी दिखायी दें; लेकिन उस समय शायद जगह जगह रहनेवालें इसी तरह के - (कॉम्प्युटर पर से पत्र, संदेश आदि सबकुछ भेजने की सुविधा रहनेवाले) ‘कॉम्प्युटर पोस्ट ऑफिस’ के बाहर, गोद में लॅपटॉप लेकर बैठे कुछ व्यावसायिक रहेंगे और उनके सामने बड़ी बड़ी ड़िग्रियाँ अर्जित किये हुए, लेकिन नयी टेक्नॉलॉजी के साथ मेल बिठा न सके हुए ‘सुशिक्षित अनपढ़’ लाईन लगाकर बैठे हुए दिखायी देंगे।”

बापू आगे कहते हैं - “अहम बात यह है कि जो युवा पीढ़ी नया नया तंत्रज्ञान या फिर विभिन्न गॅजेट्स सहजता से अपनाते हुए दिखायी देती है, वह भी उस अत्याधुनिक तंत्रज्ञान का केवल कुछ प्रतिशत हिस्सा ही, रुटिन बातों के लिये ही इस्तेमाल करती है।”

हर एक इन्सान समय के साथ चलें, समय के साथ रहें और उसके लिये उस समय की टेक्नॉलॉजी को आत्मसात करें, ऐसी सदगुरु बापू की निरन्तर इच्छा रही है। इसी उद्देश्य से ये सोशल मीडिया और गॅज़ेट्स के बारे में प्रकाशित हुए लेख मैं अपने ब्लॉग पर प्रकाशित करनेवाला हूँ, ताकि सोशल मीडिआ का परिपूर्ण एवं परिपक्व इस्तेमाल करने में लोगों को आसानी हो।

॥ हरि ॐ ॥   ॥ श्रीराम ॥   ॥ अंबज्ञ ॥