चरणसंवाहन - भाग ४ (Serving the Lord’s feet - Part 4)
सद्गुरु श्री अनिरुद्धजी ने १५ अप्रैल २०१० के पितृवचनम् में ‘चरणसंवाहन’ के बारे में बताया।
तो, ‘करावे मस्तकी अभिवंदन। तैसेचि हस्तांही चरणसंवाहन।’ दोनों साथ करने का भी एक मतलब है कि, भाई बिल्वपत्र जिसे हम कहते हैं, बेल का पान। किसने देखा है? किसने नहीं देखा है? सभी ने देखा है, राईट। वहाँ क्या होता है? तीन पत्ते होते हैं ना! एक बीच में और दो बाजू में। ये क्या है, थिस इज अ रिप्रेझेन्टशन ऑफ टू हॅण्डस् ऍन्ड युअर हेड। ये प्रतिकात्मकता है तुम्हारे दो हाथों की और एक मस्तक की। सद्गुरु को क्या चाहिए? दो हस्तक, एक मस्तक। हेमाडपंतजी आरंभ ही बिल्वपत्र से कर रहे हैं और उनका साई जो शिव है उनका, उसके लिए बिल्वपत्र कैसे अर्पण करना है वो सद्गुरु को, ये हमें सीखा रहे हैं। भाई वो बिल्वपत्र लाकर अर्पण करे, ये अच्छी बात है। मैं सद्गुरु दत्तात्रेय को हररोज यहाँ करता हूँ पूजन में बिल्वपत्र अर्पण। लेकिन उसके साथ हमें क्या करना चाहिए? सही बिल्वपत्र क्या है? जो हमारे पास है, हमें कहीं ढूंढ़ने नहीं पड़ता है, किसी पेड़ से जाकर ये नहीं करना पड़ता है, बाजार में जाकर खरीदना नहीं पड़ता है। हमारे पास भगवान का दिया हुआ है बिल्वपत्र, कौनसा? हमारे दो हस्तक यानी दो हाथ और एक मस्तक। तो इस बिल्वपत्र को सद्गुरु को अर्पण करना, सद्गुरु के चरणों में। ‘एक मस्तक और दो हाथों को’ - ये सर्वश्रेष्ठ बिल्वपत्र है।
एक हजार बार बिल्वपत्र खरीदकर हम लोग अर्पण करे, उससे ज्यादा ये है और उन दस लाख बिल्वपत्रों को अर्पण करने के बाद ये बिल्वपत्र अर्पण नहीं किया तो सब फोकट है। अपने दो हस्तक और एक मस्तक। क्या इसके लिए कितना कोई श्रीमंत है और कोई गरीब है, कोई धनिक है, कोई दरिद्री है इसका भगवान से, उससे कोई ताल्लुकात नहीं। भगवान क्या चाहता है? दो हाथ, जो एक गरीब के पास भी है और एक रईस के पास भी है, एक अशिक्षित के पास भी है, एक सुशिक्षित के पास भी है, यानी भगवान ने बिल्वपत्र किसे कहा है? तो - ‘दो हाथ और एक मस्तक’! ये बिल्वपत्र हररोज सद्गुरु के चरणों में चढ़ाना सीखो। ये पूरा ‘चरणसंवाहन’ हो गया। मस्तक भी रखा और दो हाथ भी चरणों में रखे और पूरे प्यार के साथ रखे कि ये दोनों हाथ किस काम आए? तुम्हारे काम आए। ये मस्तक किसका है? तुम्हारा है। ये मस्तक में विचार किस के आए? आपके आए। जो विचार आप चाहते हैं, वहीं आये। जो आप नहीं चाहते, ना आए। सिम्पल, इतना तो हम बता सकते हैं। दॅट इज ‘चरणसंवाहन’!
ये ‘विच्चे’ जो मैंने कहा ये सर्वश्रेष्ठ मंत्र का सर्वश्रेष्ठ हिस्सा है। ये ‘विच्चेकार’ अपनी जिंदगी में आने के लिए, यानी सर्वसमर्थता, सर्वांग समर्थता अपनी जिंदगी में आने के लिए, हमें क्या करना चाहिए? ‘करावे मस्तकी अभिवंदन। तैसेचि हस्तांही चरणसंवाहन।’ यानी दोन हस्त और एक मस्तक सद्गुरु के चरणों पर और हाथों से उन चरणों की सेवा, उसकी आज्ञापालन यानी ब्रेन का जो सबसे इम्पॉर्टन्ट पार्ट है - स्पीच रिलेटेड यानी लिखना, पढ़ना, सुनना, बोलना और कौशल्य यानी स्कील ये सारे के सारे हिस्से क्या होते हैं? शुद्ध भी होते हैं और समर्थ भी।
‘चरणसंवाहन’ के बारे में हमारे सद्गुरु श्री अनिरुद्ध ने पितृवचनम् में बताया, जो आप इस व्हिडिओ में देख सकते हैं।
ll हरि: ॐ ll ll श्रीराम ll ll अंबज्ञ ll