सप्तचक्र उपासना - अधिक सुलभतासे कैसे करे?
गुरुवार, दि. १५ अक्तूबर २०१५ को परमपूज्य सद्गुरु बापू ने "श्रीशब्दध्यानयोग" यह, श्रद्धावानों का अभ्युदय (सर्वांगीण विकास) करानेवाली सप्तचक्रों की उपासना श्रीहरिगुरुग्राम में शुरू की। उसके बाद, इस उपासना की जानकारी देनेवाली पुस्तिका भी संस्था की ओर से श्रद्धावानों के लिए उपलब्ध करायी गयी। पुस्तिका में दी गयी जानकारी के अनुसार, श्रद्धावान पुस्तिका में दी गयीं चक्रों की प्रतिमाओं की ओर देखते हुए उस संबंधित चक्र का गायत्री मंत्र और स्वस्तिवाक्य बोलते हुए घर में उपासना कर सकते हैं।
गुरुवार, दि. २१ जनवरी २०१६ को अपने पितृवचन में सद्गुरु बापू ने, अकारण करुणा का पुन: एक बार प्रत्यय देते हुए, श्रद्धावानों के लिए यह उपासना अधिक ही सुलभ की। ‘श्रीहरिगुरुग्राम में यह उपासना करते समय; वैसे ही, घर में भी सप्तचक्रों की प्रतिमाओं की ओर देखते देखते उपासना करते हुए, उस उस चक्र के केवल बीजमंत्र का ‘ॐ’ के साथ उच्चारण करने पर भी वह फलदायी साबित होगा’ ऐसा बापू ने कहा। हर एक चक्र की प्रतिमा के केंद्रस्थान में रहनेवाला जो अक्षर है, वह अक्षर यानी उस उस चक्र का बीजमंत्र है। उदाहरण के तौर पर, मूलाधार चक्र की प्रतिमा के केंद्रस्थान में "लं" यह अक्षर है। ‘घर में उपासना करते समय, सर्वप्रथम पुस्तिका में दी गयी मूलाधार चक्र की प्रतिमा की ओर देखते हुए, "ॐ लं", "ॐ लं" ऐसा केवल पाँच बार बोलकर; फिर गायत्री मंत्र तथा स्वस्तिवाक्य का उच्चारण करना अधिक फलदायी साबित होगा’ ऐसा बापू ने बताया। इस प्रकार, नीचे दिये गए तख़्ते के अनुसार, हर एक चक्र की प्रतिमा की ओर देखते हुए, प्रतिमा के केंद्रस्थान में रहनेवाले बीजमंत्र का "ॐ" के साथ पाँच बार उच्चारण करके, फिर उस चक्र के गायत्री मंत्र का एवं स्वस्तिवाक्य का उच्चारण करें।
१) मूलाधार चक्र - ५ बार "ॐ लं"
२) स्वाधिष्ठान चक्र - ५ बार "ॐ वं"
३) मणिपुर चक्र - ५ बार "ॐ रं"
४) अनाहत चक्र - ५ बार "ॐ यं"
५) विशुद्ध चक्र - ५ बार "ॐ हं"
६) आज्ञा चक्र - ५ बार "ॐ उं"
७) सहस्रार चक्र - ५ बार "ॐ"
इसी के साथ बापू ने कहा कि श्रीहरिगुरुग्राम में "श्रीशब्दध्यानयोग" उपासना के समय जब हर एक चक्र का मंत्रोच्चारण (सूक्त) चालू रहता है, तब भी उस उस चक्र का सूक्त शुरू होने से लेकर पूर्ण होने तक श्रद्धावान ऊपर बताये गयेनुसार संबंधित सप्तचक्र के बीजमंत्र का अखंड जाप कर सकते हैं।
ऊपर-उल्लेखित जानकारी के संदर्भ में सप्तचक्रों की प्रतिमाएँ, सप्तचक्र देवताओं के गायत्री मंत्र, सप्तचक्रों के स्वस्तिवाक्य और मातृवाक्य मैं श्रद्धावानों की सहूलियत के लिए नीचे दे रहा हूँ।
सप्त चक्र-प्रतिमा, सप्त चक्र-देवताओं के गायत्री मन्त्र, सप्त चक्रों के स्वस्तिवाक्य और मातृवाक्य
1) मूलाधार चक्र -
मूलाधार चक्र प्रतिमा :
मूलाधार चक्र गायत्री मन्त्र :
ॐ भू: भुव: स्व:।
ॐ एकदन्ताय विद्महे वक्रतुण्डाय धीमहि।
तन्नो दन्ति: प्रचोदयात्॥
मूलाधार चक्र स्वस्तिवाक्य :
मूलाधारगणेशाच्या कृपेमुळे मी संपूर्णपणे सुरक्षित आहे.
मूलाधारगणेश की कृपा से मैं संपूर्ण रूप से सुरक्षित हूँ।
By the grace of the MuladharGanesh, I am completely safe and secure.
मूलाधारगणेशस्य कृपया अहं संपूर्णत: सुरक्षित:।
२) स्वाधिष्ठान चक्र -
स्वाधिष्ठान चक्र प्रतिमा :
स्वाधिष्ठान चक्र गायत्री मन्त्र :
ॐ भू: भुव: स्व:।
ॐ हिरण्यगर्भाय विद्महे। विरंचये च धीमहि।
तन्नो प्रजापति: प्रचोदयात्॥
स्वाधिष्ठान चक्र स्वस्तिवाक्य:
प्रजापति-हिरण्यगर्भाच्या कृपेमुळे मी सक्षम आहे आणि मी सुखात आहे.
प्रजापति-हिरण्यगर्भ की कृपा से मैं सक्षम हूँ और मैं सुखी हूँ।
By the grace of Prajapati-Hiranyagarbha, I am capable and I am happy.
प्रजापति-हिरण्यगर्भस्य कृपया अहं सक्षम: सुखी च।
3) मणिपुर चक्र-
मणिपुर चक्र प्रतिमा :
मणिपुर चक्र गायत्री मन्त्र :
ॐ भू: भुव: स्व:।
ॐ राघवाय विद्महे। रामभद्राय धीमहि।
तन्नो श्रीराम: प्रचोदयात्॥
मणिपुर चक्र स्वस्तिवाक्य:
श्रीरामकृपेने मी यशस्वी आहे.
श्रीराम की कृपा से मैं यशस्वी हूँ।
By the grace of Shreeram I am successful.
श्रीरामकृपया अहं यशस्वी।
4) अनाहत चक्र -
अनाहत चक्र प्रतिमा :
अनाहत चक्र गायत्री मन्त्र :
ॐ भू: भुव: स्व:।
ॐ तत्पुरुषाय विद्महे। महादेवाय धीमहि।
तन्नो रुद्र: प्रचोदयात्॥
अनाहत चक्र स्वस्तिवाक्य:
माझा पिता त्रिविक्रम मला सदैव क्षमा करतो.
मेरे पिता त्रिविक्रम मुझे सदैव क्षमा करते हैं।
The Trivikram, my Father, always forgives me.
मत्पिता त्रिविक्रम: मां सदैव क्षमां करोति।
5) विशुद्ध चक्र-
विशुद्ध चक्र प्रतिमा :
विशुद्ध चक्र गायत्री मन्त्र :
ॐ भू: भुव: स्व:।
ॐ पुरंदराय विद्महे। वृत्रान्तकाय धीमहि।
तन्नो वेदेन्द्र: प्रचोदयात्॥
विशुद्ध चक्र स्वस्तिवाक्य :
युद्ध माझा राम करणार। समर्थ दत्तगुरु मूळ आधार।
मी सैनिक वानर साचार। रावण मरणार निश्चित॥
युद्ध करेंगे मेरे श्रीराम। समर्थ दत्तगुरु मूल आधार।
मैं सैनिक वानर साचार। रावण मरेगा निश्चित ही॥
My Ram will wage war;
Self-sufficient, Dattaguru is the Origin, the Basis;
A soldier, I am a vanar in word and in deed;
Ravan will die, yes he will.
युद्धकर्ता श्रीराम: मम। समर्थ: दत्तगुरु: मूलाधार:।
साचार: वानरसैनिकोऽहम्। रावणवध: निश्चित:॥
6) आज्ञा चक्र-
आज्ञा चक्र प्रतिमा:
आज्ञा चक्र गायत्री मन्त्र:
ॐ भू: भुव: स्व:।
ॐ महाप्राणाय विद्महे। आञ्जनेयाय धीमहि।
तन्नो हनुमान् प्रचोदयात्॥
आज्ञा चक्र स्वस्तिवाक्य:
साक्षात श्रीहनुमन्त माझा मार्गदर्शक आहे आणि माझे बोट धरून चालत आहे.
साक्षात् श्रीहनुमानजी मेरे मार्गदर्शक हैं और वे मेरी उँगली पकड़कर चल रहे हैं।
Shreehanumanta Himself is my guide and He walks holding me by the finger.
साक्षात् श्री हनुमान् मम मार्गदर्शक: तथा स: मम अंगुलं धृत्वा चलति।
7) सहस्रार चक्र -
सहस्रार चक्र प्रतिमा :
सहस्रार चक्र गायत्री मन्त्र :
ॐ भू: भुव: स्व:।
ॐ महालक्ष्म्यै च विद्महे। सर्वशक्त्यै च धीमहि।
तन्नो जगदम्ब प्रचोदयात्॥
सहस्रार चक्र स्वस्तिवाक्य:
मी परिपूर्ण आहे.
मी सुशान्तमन-दुर्गादास आहे.
मैं परिपूर्ण हूँ।
मैं सुशान्तमन-दुर्गादास हूँ।
I am complete and sufficient.
I am a calm, serene and peaceful server of the Mother Durga.
अहं परिपूर्ण:।
अहं सुशान्तमनोदुर्गादास:।
मातृवाक्य :
माझ्या बालका, मी तुझ्यावर निरंतर प्रेम करीत राहते.
मेरे बच्चे, मैं तुम से निरंतर प्रेम करती रहती हूँ।
My dear child, I love You always.
मम बालक, अहं त्वयि निरन्तरं स्निह्यामि।
॥ हरि ॐ॥ श्रीराम॥ अंबज्ञ॥