कहे साई वही हुआ धन्य धन्य| हुआ जो मेरे चरणों में अनन्य || (Sai the Guiding Spirit Saisatcharit)
पिछले ड़ेढ दो साल से सद्गुरु श्रीअनिरुद्धजी ‘श्रीसाईसच्चरित’ (Shree Saisatcharit) पर हिन्दी में प्रवचन कर रहे हैं। इससे पहले बापु ने श्रीसाईसच्चरित पर आधारित ‘पंचशील परीक्षा’ (Panchshil Exam) की शुरुआत की और उन परीक्षाओं के प्रॅक्टिकल्स के लेक्चर्स भी लिये। उस समय हम सब को श्रीसाईसच्चरित नये से समझ में आया। 11 फरवरी 1999 में बापु ने पंचशील परीक्षा क्यों देनी चाहिए, यह हमें समझाया।
बापु कहते हैं, ‘‘हम सबको चाह रहती है, अपने जीवन को अच्छा बनाने की, जो कुछ कम है उसे भरने की। लेकिन यह किस तरह करना चाहिए, यह हमारी समझ में नहीं आता। फिर हम किसी न किसी गलत राह पर भटक जाते हैं और इसीलिए हेमाडपंत जैसे श्रेष्ठ भक्त ने साईनाथजी (Sainath) की उपस्थिति में यह श्रीसाईसच्चरित (Shree Saisatcharit) लिखा, हमें मार्ग दिखाने के लिए।’’
बापु कहते हैं, ‘‘श्रीसाईसच्चरित का पाठ करते समय हमें उसे पढ़कर पूरा करने की जल्दी रहती है और जितना ध्यान देना आवश्यक है उतना ध्यान हम कथा की तरफ़ नहीं देते और इसीलिए अर्थ का भी आकलन हमें नहीं होता। हम तो बस साईनाथजी ने क्या चमत्कार किया है, यही देखते हैं और बाकी के शब्द हम भूल जाते हैं। इसीलिए हमारे जीवन में चमत्कार नहीं होते। क्योंकि हमें इस बात पर पहले ग़ौर करना चाहिए कि चमत्कार कैसे हुआ है, कब हुआ है और किसके लिए हुआ है। साईनाथजी की करुणा यदि मैं प्राप्त करना चाहता हूँ, मुझे यदि उस करुणा का ग्रहण करने के लिए सक्षम बनना है, तो उसके लिए मेरा आचरण कैसा होना चाहिए इसकी जानकारी मुझे इन घटनाओं में से मिलती है। बाबा ने (साईनाथजी ने) जो चमत्कार किया, कराया; वह इस घटना का रिज़ल्ट है, इतिवृत्त है।’’ इन चमत्कारों का महत्त्व बताते हुए बापु आगे कहते हैं, ‘‘अत एव चमत्कार के पहले की कथा की जानकारी हमें होनी चाहिए और सब से महत्त्वपूर्ण बात यह है कि प्रत्येक कथा में हेमाडपंत ने महज़ चमत्कार के बारे में नहीं बताया है, बल्कि उस कथा में उस भक्त की स्थिति, उस भक्त की वृत्ति और उस भक्त की ‘कृति’ इन सबका बहुत ही सुन्दर विवेचन किया है। और इन सब बातों से मुझे महसूस होने लगता है कि ये मेरे प्यारे सद्गुरु मेरे जीवन में किस तरह संपूर्ण एवं समान रूप से व्याप्त हैं।’’ परसों के गुरुवार के प्रवचन में साईनाथजी के 11 वचनों पर विवेचन करते हुए बापु ने कहा कि श्रीसाईसच्चरित में सबसे महत्त्वपूर्ण बात क्या है, तो हेमाडपंत, जिन्होंने श्रीसाईसच्चरित लिखा, जिनके कारण हम साईनाथजी को आज जान सकते हैं, जिनके हाथ में साईनाथजी ने सारी चाबियाँ दी थीं, उन्हीं हेमाडपंत के घर साईनाथजी की बनी पहली मूर्ति आयी और किस तरह, तो साईनाथजी ने हेमाडपंत के सपने में जाकर कहा कि मैं तुम्हारे घर कल (होली पूर्णिमा 1911) भोजन करने आ रहा हूँ, दोपहर के भोजन के समय आ रहा हूँ और साईनाथ उसी तरह (हेमाडपंत के घर) पधारे। इस नये साल में हम हमारे इस साईनाथजी के, साईबाबा के, श्रीसाईसच्चरित के, साई के फोरम की शुरुआत हेमाडपंत से ही करेंगे। इस फोरम (Forum) के उपलक्ष्य में, हर पंद्रह दिन में मैं एक आर्टिकल पोस्ट करूँगा, जो कंटिन्यू होता रहेगा। हममें से प्रत्येक व्यक्ति, जो साईनाथजी से सच्चे दिल से प्रेम करता है, सद्गुरुतत्त्व से प्रेम करता है, वह प्रत्येक व्यक्ति इस फोरम में सम्मिलित हो, यही उचित होगा। परमपूज्य अनिरुद्धजी (बापु) ने अपने श्रीमद्पुरुषार्थ ग्रन्थराज द्वितीय खण्ड प्रेमप्रवास में श्रीसाईबाबा का बहुत ही प्रेमपूर्वक उल्लेख ‘मेरे अन्नमय कोश के स्वामी और मेरे दिग्दर्शक गुरु’ इसी तरह किया है। और इसीलिए उनके कार्य के दो मन्त्रजपों में से एक जप ‘ॐ कृपासिन्धु श्रीसाईनाथाय नम:’ यही है और यही जप श्रीहरिगुरुग्राम में हर गुरुवार को उपासना में किया जाता है। आज की इस पोस्ट से हमारे फोरम की हम पुन: शुरुआत कर रहे हैं।
श्रीराम- हरि ॐ- अंबज्ञ।