Sai For Me - अंग्रेजी सुधारने के लिए नन्दाई द्वारा लिखित पुस्तकोंका प्रकाशन - 1

मुझे यकीन है, अब तक आप सबको यह ज्ञात हुआ होगा कि रविवार, दि. २५ अगस्त २०१३ को परमपूज्य बापू, नंदाई और सुचितदादा की उपस्थिति में, ’हॅपी इंग्लिश स्टोरीज’ इस सिरीज के अंतर्गत स्वयं नंदाई के द्वारा लिखे गये ’साई फॉर मी’ इन पुस्तकों के पहले सेट का प्रकाशन एक भव्य प्रकाशन समारोह में हुआ । नन्दाई की आत्मबल क्लास में वरिष्ठ अध्यापिका एवं कार्यकर्ता सेवक के रूप में काम करने वालीं श्रीमती दुर्गावीरा वाघ के हाथों इन पुस्तकों का प्रकाशन हुआ । इन पुस्तकों को प्रकाशित करने के पीछे, अंग्रेजी सीखना चाहने वालों के साथ साथ, अंग्रेजी पर अच्छा खासा प्रभुत्व होने वालों की भी बोलीभाषा एवं लिखित भाषा में सुधार लाने का हेतु है । 

इन पुस्तकों के प्रकाशन के जरिये ’बुक्शनरी पब्लिशिंग हाऊस’ ने प्रकाशन क्षेत्र में शानदार प्रवेश किया है । बुक्शनरी पब्लिशिंग हाऊस के द्वारा पुस्तकों के स्वरूप में अच्छे दर्जे का, विविधता भरा वाङमय उपलब्ध कराया जायेगा; साथ ही आने वाले समय में सी डी, डी व्ही डी, ई-बुक्स एवं अन्य आधुनिक सुविधाओं का उपयोग करके विभिन्न विषयों पर वाचकसमुदाय को उपयोगी साबित हो ऐसे स्वरूप में वाङमय उपलब्ध कराया जायेगा । 

’रामराज्य’ इस विषय पर नजर डालते हुए सद्‌गुरू बापुजी ने ६ मई २०१० को अपने प्रवचन में अनेक प्रापंचिक एवं आध्यात्मिक मुद्दे प्रस्तुत किये थे, जिनपर व्यक्तिगत, आप्त, सामाजिक, धार्मिक एवं जागतिक स्तर पर प्रत्यक्ष रूप में अमल करना है । इनमें से एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण मुद्दे की ओर बापु ने हम सबका ध्यान आकर्षित किया था । वह मुद्दा था- संपर्क स्थापित करने के लिए ’अच्छे से अंग्रेजी भाषा में बातचीत करना सीखना’। 

आज दुनिया के व्यवहार में अंग्रेजी यह संपर्कव्यवस्था में सबसे अधिक इस्तेमाल की जाने वाली भाषा है । आज के युग में किसी भी व्यवहार के लिए संपर्कव्यवस्था का अचूक होना अनिवार्य है । अत एव आज नहीं तो कल सबके लिए अंग्रेजी भाषा के अलावा दूसरा विकल्प ही नहीं रहने वाला है । आज अंग्रेजी यह जिन देशों की बोली भाषा नहीं है ऐसे देशों में भी बडे बडे बॅनर्स वालीं कंपनियां अंग्रेजी से दोस्ती करना कब का शुरू कर चुकी हैं । हमारी अंग्रेजी भाषा यदि प्रवाही (फ्लुएंट) नहीं होगी, तो दुनिया के व्यवहार में हमारा टिकना मुश्किल है, फ़िर हमारे पास चाहे कितनी भी बडी बडी डिग्रियां क्यों न हों । आज सॉफ्टवेअर प्रोग्रॅमिंग क्षेत्र में भारत चीन से बेहतर साबित हो रहा है इसकी वजह यही है कि भारतीय प्रोग्रॅमर्स का चिनी लोगों की अपेक्षा अंग्रेजी पर अधिक प्रभुत्व है । 

२००५ में दैनिक ’प्रत्यक्ष’ जब पहली बार प्रकाशित हुआ, तब बापु ने साफ़ साफ़ कहा था कि बदलते हालातों से अनजान रहना यह अंधेरे में जीने जैसा है और अंधेरा हमेशा ही घातक होता है । उससे हमारा जीवन ध्वस्त हो सकता है । अत एव सारे श्रद्धावानों के हित के लिए डॉ. (सौ.) नंदा अनिरुद्ध जोशी ने (हमारी प्रिय नंदाई ने) अंग्रेजी भाषा सीखने के लिए, उसमें सुधार लाने एवं प्रगति करने के लिए इन पुस्तकों का सेट प्रकाशित किया है । इन पुस्तकों की रचना इस तरह की गयी है कि अंग्रेजी सीखना चाहने वालों के लिए भी उसे समझना आसान हो और साथ ही प्रतिदिन के जीवन में उसका उपयोग करना भी सुलभ हो । अंग्रेजी भाषा पर प्रभुत्व रहने वालों के लिए भी ये पुस्तकें उपयोगी साबित होंगी । 

ये पुस्तकें श्रीअनिरुद्ध गुरुक्षेत्रम्‌ में बिक्री के लिए उपलब्ध हैं ही; साथ ही इच्छुक श्रद्धावान Aanjaneya eSHOP इस साईट पर भी इन पुस्तकों को ऑर्डर कर सकते हैं ।

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