रुद्र और भद्र ये शिव के दो रूप है (Rudra and Bhadra are the two forms of Lord Shiva) - Aniruddha Bapu

परमपूज्य सद्‍गुरु श्री अनिरुद्ध बापू ने ७ एप्रिल २०१६ के पितृवचनम् में ‘रुद्र और भद्र ये शिव के दो रूप है’ इस बारे में बताया।

Rudra and Bhadra are the two forms of Lord Shiva
रुद्र और भद्र ये शिव के दो रूप हैं (Rudra and Bhadra are the two forms of Lord Shiva) - Aniruddha Bapu

ये जो बीज है ‘शं’, पहला वाला ‘शं’ और सं, तो ये ‘शं’ बीज है, तो ये ‘शं’ कैसा है, मैंने बोहोत बार बोला है। ‘शं’ शमने, ‘शं’ शांति, श से शमन होता है। दमन नहीं होता है। शमन होता है। इसका मतलब क्या है? कि हमारे मन में शांती नहीं होती, हमारे मन में जो बेचैनी है वो शांत हो जाएगी यानी मन शांत नहीं होगा, बेचैनी शांत होगी। मन inactive नहीं होगा। शमनं याने पूरा दमन नहीं। zeroness नही, बॅलेंस जो भी है। संतुलित action। संतुलित विचार। उसके लिये जो है, ये ‘शं’ बीज है, इसीलिए शिव, ‘शं’, शिवेन शंकरः। तो ‘शं’ बीज जो है, ये पवित्रता से जुडा हुआ है।  

 

हम लोग जानते हैं, शिव नाम का अर्थ है सबसे पवित्रतम। कर्पूरगौरं, कर्पूर जैसा ही है, एक भी दाग नहीं है। ऐसा जो पवित्र है, वो शिव है। और क्या देता है हमें? हमेशा शांति प्रदान करता है। रुद्र स्वरुप होने के बावजूद भी उसका भद्र स्वरुप है, वही उसके भक्तों के लिए है। शिव के दो स्वरुप होते हैं। एक रुद्र स्वरुप और एक भद्र स्वरुप। उसका रुद्र स्वरुप किसके लिये है? तो श्रद्धाहीनों के लिये, असुरों के लिये, राक्षसों के लिये, दुराचरियों के लिये। तो उसीका भद्र स्वरुप किसके लिये है? श्रद्धावानों के लिये, जो अच्छा बनना चाहते हैं, उनके लिये, जो गलती करने के बाद महसूस करते हैं कि मैने गलती की है, मुझे सुधरना है, प्रायश्चित लेना चाहते हैं, पश्चाताप करना चाहते हैं, उनके लिये उसका भद्र स्वरुप है। कुछ लोग ऐसा सोचते हैं कि शिव महाराज ऐसे हाथ में त्रिशूल लेकर खडे होते हैं, बडे बडे आँख कर खडे हैं, क्रोधिष्ठ मुद्रा में, तो वो रुद्र स्वरुप है और शांति से बैठे हो तो भद्र स्वरुप है गलत! ये गलत है।

 

 हमे जानना चाहिये कि उ्नकी हर मूर्ति जो है, हर चित्र जो है, हर अवस्था है, ये रुद्र भी हैो और भद्र भी है, simultaneously, एक ही समय में, शिवजी रुद्र भी है और भद्र भी है। लेकिन हमे जानना चाहिये कि ये भद्रता, मंगलकारकता किसके लिये है, तो जो अच्छा बनना चाहता है, गलतियाँ कर रहा है, बहुत बडा पाप भी किया है, no problems। पर जो अच्छा बनना चाहता है, जो अच्छा करना चाहता है, जो अच्छा बनना चाहता है, जो अच्छा देना चाहता है, जो अच्छा लेना चाहता है, तो उसके लिये। आदि माँ का महाकाली स्वरुप हो, या महासरस्वती रुप हो, लेकिन उसके बच्चे के लिये तो वो क्या है, माँ ही है, भद्रस्वरुपिणी ही है। 

 

वैसे ही शिवजी जो है, उनकी मूर्ति देखकर calculate नहीं करना कि ये रुद्र स्वरुप है कि भद्र स्वरुप है। इससे नहीं होता, हम कैसे है इसपर निर्भर है कि ये स्वरुप रुद्र साबित होगा या भद्र साबित होगा। मै अगर पूछूँगा कि आपको कौनसा स्वरुप चाहिये, रुद्र स्वरुप या भद्र स्वरुप? दोनों रूप चाहिये हमें। खुद पर इतना भी भरोसा मत करो कि जो मैं करुँगा, अच्छा ही करुँगा.. मेरे हाथ से गलती हो ही नहीं सकती। शिवजी आप को harm करनेवाले हैं क्या? कुछ तकलीफ देनेवाले हैं क्या? नहीं। भगवान नहीं होता है ऐसा.. हमे जानना चाहिये कि दोनों रुप हमारे लिये आवश्यक है.. equally। 

‘रुद्र और भद्र ये शिव के दो रूप हैं’, इस बारे में हमारे सद्गुरु अनिरुद्ध बापू ने पितृवचनम् में बताया, जो आप इस व्हिडिओ में देख सकते हैं।  

॥ हरि ॐ ॥ ॥ श्रीराम ॥ ॥ अंबज्ञ ॥

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