रामरक्षा प्रवचन २८ | सत्त्वगुण बढ़ानेवाली रामकृपा - सुखी जीवन की मास्टर-की

रामरक्षा प्रवचन २८ | सत्त्वगुण बढ़ानेवाली रामकृपा - सुखी जीवन की मास्टर-की

 

‘रामरक्षा’ यह अत्यंत प्रभावशाली मंत्रमय स्तोत्र है। इसका केवल पठन करने से भी मनुष्य को प्रचंड लाभ होता है, फिर इसका अर्थ एवं भाव समझकर पठन करें, तो कितना फ़ायदा होगा! हम जब इसका अर्थ ढूँढ़ने जाते हैं, तो २-४ वाक्यों के सरलार्थ के अलावा हमें और कुछ नहीं मिलता। इसलिए, रामरक्षा गहराई से समझाकर बतानेवाले सद्गुरु अनिरुद्ध बापू के ये प्रवचन यानी हमारा जीवन सर्वार्थ से समृद्ध करनेवाला अनमोल खज़ाना ही है।

 

रामरक्षा-कवच की ‘मुखं सौमित्रिवत्सल:’ पंक्ति के विभिन्न पहलुओं को हमारे सामने उजागर करने के बाद, सद्गुरु अनिरुद्ध बापू अब - ‘जिव्हां विद्यानिधि: पातु’ यानी ‘मेरी जीभ की रक्षा विद्या का भंडार होनेवाले श्रीराम करें’ इस अगली पंक्ति की ओर जाते समय, मुख के ही ‘जीभ’ इस अंग के बारे में विवेचन कर रहे हैं। यह ‘विद्या’ कौनसी है, उसका ‘मर्यादापुरुषोत्तम’ श्रीराम के साथ क्या संबंध है और जीभ को उस विद्या का कैसे फ़ायदा होता है, इस बारे में भी विवेचन वे करते हैं।

 

भौतिक दृष्टि से, किसी भी पदार्थ का स्वाद चखनेवाला अंग यानी ‘जीभ’। यही जीभ बोलने का काम भी करती है। जीभ इतनी महत्त्वपूर्ण क्यों है और बुधकौशिक ऋषि ने रक्षाकवच में मुख में ही रहनेवाले दाँतों का उल्लेख न करते हुए जीभ का उल्लेख क्यों किया है; साथ ही, जीभ यह मुख का ही भाग होने के बावजूद भी, जीभ का अगली पंक्ति में अलग से उल्लेख क्यों किया है, यह भी सद्गुरु बापू यहाँ समझाकर बताते हैं।

 

उसीके साथ, भक्तिमार्ग पर कई बार हम ‘उपवास’, ‘मौन’ ये शब्द सुनते हैं। दोनों में जीभ का कैसे संबंध होता है, यह सद्गुरु बापू यहाँ विभिन्न उदाहरणों के द्वारा समझाकर बताते हैं। अध्यात्म यह कोई कमज़ोरी नहीं है। असली अध्यात्म क्या है, वह प्रभु श्रीराम ने अपने आचरण द्वारा दिखा ही दिया है। ऐसा असली अध्यात्म केवल सत्त्वगुण की वृद्धि से ही संभव है और सत्त्वगुण की वृद्धि करने में जीभ कैसे महत्त्वपूर्ण योगदान देती है, यह सद्गुरु अनिरुद्ध यहाँ विभिन्न उदाहरणों के साथ प्रतिपादित करते हैं और इस अनुषंग से, ‘सुखी जीवन का रहस्य क्या है’ यह भी उजागर करते हैं।