पंचमुखहनुमत्कवचम् विवेचन - ११ (कहेऊं तात अस मोर प्रनामा।) Panchamukha-Hanumat-kavacham Explanation - 11 (Kahehu taat as mor pranaama) - Aniruddha Bapu
परमपूज्य सद्गुरु श्री अनिरुद्ध बापू ने १६ मार्च २०१७ के पितृवचनम् में पंचमुखहनुमत्कवचम् के विवेचन में ‘सुन्दरकाण्ड में हनुमानजी को ‘तात’ कहकर श्रीराम और जानकी ने संबोधित किया है’ इस बारे में बताया।
हम लोग जब सुंदरकांड पढते हैं, अभी तो बहुत लोगों ने छोड़ भी दिया है, मैंने कभी से बोला है ना, २००३ से कि सुंदरकांड पढ़िए, पढ़िए, पढ़िए, पढ़िए। पहले तो दो तीन साल बहुत जोर से पढ़ा बाद में तो भूल गए, कोई बात नहीं। अभी पंचमुखहनुमत्कवच का पाठ कर रहे हैं, अच्छी बात है। यह सुंदरकांड बहुत ही सुंदर है, कभी ना कभी, कम से कम साल में एक बार तो पढिए, उतना तो हम कर सकते हैं, right! वहां हम क्या सीख पाते हैं कि प्रभु श्री रामचंद्रजी स्वयं और माता जानकीजी स्वयं उन्हें क्या पुकारते हैं? हे तात!
तात यानी पिता या पिता का पिता या मातामह या पितामह। यानी घर में, वंश में जो सर्वश्रेष्ठ व्यक्ति है, उसे तात कहते हैं। जो सब में श्रेष्ठ व्यक्ति है, उन्हें तात कहते है। हनुमानजी दास होने के बावजूद भी जानकी माता और प्रभु श्री रामचंद्र उन्हें क्या पुकारते हैं? हे तात।
कहेऊं तात अस मोर प्रनामा। सब प्रकार प्रभु पूरनकामा। दीन दयाल बिरिदु संभारि। हरहु नाथ मम संकट भारी।।हमें ये जानना चाहिए भाई कि परमात्मा है वह भी उसे तात कहता है, इतना वह विराट है।
पंचमुखहनुमत्कवचम् के विवेचन में ‘सुन्दरकाण्ड में हनुमानजी को ‘तात’ कहकर श्रीराम और जानकी ने संबोधित किया है’ इस बारे में सद्गुरु अनिरुद्ध बापू ने पितृवचनम् में जो बताया, वह आप इस व्हिडिओ में देख सकते हैं।
॥ हरि ॐ ॥ ॥ श्रीराम ॥ ॥ अंबज्ञ ॥