पंचमुखहनुमत्कवचम् विवेचन - ०९ (हनुमानजी से दास्य भक्ति सीखें) Panchamukha-Hanumat-kavacham Explanation - 09 (Learn Dasya Bhakti from Hanumanji) - Aniruddha Bapu
और पहली दो चौपाई में क्या कहते हैं?
जय हनुमान ग्यान गुन सागर। जय कपीस तिहुं लोक उजागर।
ति्हुं लोक उजागर - स्थूल, सूक्ष्म और तरलो, तीनों जो विश्व हैं, तरल विश्व यानी ये विराट स्वरुप जिसे उजागर करनेवाला कौन है, प्रेरित करनेवाला, चलानेवाला, संचलन करनेवाली शक्ति है, वो विराट है।
यानी हमें यहां पर पहले ही पद में हम कवच के जान लेते हैं कि हनुमानजी जैसा हम सोचते हैं कि जब साढे साती आ जाए शनि की तो सिर्फ तभी दर्शन करने की देर है। बेचारे हात जोडके खडे हैं हमारे सामने। कितने लोगों ने देखा है हनुमान जी की ऐसी तसवीर, जो हाथ जोडके बैठे हुए हैं? बाकी लोगों ने नहीं देखा? गुरुक्षेत्रम् में नहीं हैं? तो गुरुक्षेत्रम में कैसे हैं ह्नुमान जी बैठे हुए? हाथ जोडके बैठे है ना, मणिद्वीप में। तो ये हाथ जोडकर बैठे हुए हैं, हमें खुद को लज्जित होना चाहिये, हर क्षण, हर समय।
इतना विराट स्वरूप जिनका है, वो साक्षात दत्तात्रेयजी हैं, फिर भी कैसे बैठे हुए हैं? हाथ जोडकर। हम ऐसा पागलपन करें पूरा हाथ जोडकर घूमते रहे, तो वो पागलपन होगा। ये हनुमानजी हमें ये सीख देने के लिये इस आसन पे बैठे हैं कि हमें हमेशा क्या होना चाहिये? हाथ जोडकर बैठने की कोई आवश्यकता नहीं है, पर हमेशा नतमस्तक होना चाहिये। हमेशा हमारी जिंदगी का हर पल भगवान का है, ये हमें हर रोज भगवान को बताना चाहिये। हर रोज रात को भी बताना चाहिये। दो बार तो कम से कम बताना चाहिये। मेरे जीवन का हर पल, मेरी हर साँस यानी साँस श्वास। मेरा हर श्वास भगवान सिर्फ तुम्हारा है।
‘पंचमुखहनुमत्कवचम्’ के विवेचन में ‘हनुमानजी से दास्य भक्ति सीखें’ इस बारे में हमारे सद्गुरु अनिरुद्ध बापू ने पितृवचनम् में बताया, जो आप इस व्हिडिओ में देख सकते हैं।
॥ हरि ॐ ॥ ॥ श्रीराम ॥ ॥ अंबज्ञ ॥