पंचमुखहनुमत्कवचम् विवेचन - ०६ (Panchamukha-Hanumat-kavacham Explanation - 06) - Aniruddha Bapu
परमपूज्य सद्गुरु श्री अनिरुद्ध बापू ने १६ मार्च २०१७ के पितृवचनम् में ‘जो पवित्र है, वही विराट हो सकता है’ इस बारे में बताया।
![Aniruddha Bapu told in his Pitruvachanam dated 14 Jan 2016 about, anchamukha-Hanumat-kavacham Explanation - 06 ’.](https://images.sadguruaniruddhabapu.com/wp-content/uploads/2017/05/Aniruddha-bapu-16-Mar-2017-Clip-no-1-300x169.webp)
विराट यानी ऐसी कोई चीज, ऐसी कोई शक्ति कि जो जितनी चाहे फैल सकती है। जितनी चाहे, खुद चाहे, दूसरे किसी की इच्छा से नहीं, तो खुद की स्वयं की इच्छा से जितना चाहे उतनी फैल सकती है और किस दिशा में बढे या किस दिशा में न बढे, यह भी उसकी स्वयं की मरजी के अनुसार होता है। और इसलिये विराट जो होता है, उसे दिशा का बंधन नही होता है, सीमाओं का बंधन नहीं रहता है। जिसे कोई भी सीमा नहीं, जिसकी सिर्फ खुद की अपनी सीमा है वो विराट होता है। और वो भी कैसे तो अगर ऐसी बुराई फैल गयी तो वो क्या विराट होगी? नहीं, हो ही नहीं सकता ऐसा।
बुराई कभी विराट नहीं हो सकती, क्योंकि कलियुग क्यों न हो, कलियुग का घोर अंधकारमय युग क्यों न हो, फिर भी राज तो माँ चण्डिका का ही चलेगा। तो यहां कोई भी बुराई बढ ही नहीं सकती। तो जानना चाहिये कि जो विराट है वो सिर्फ पवित्र ही हो सकता है। थोडा पवित्र है, थोडा अच्छा है, थोडा बुरा है तो वो विराट हो नहीं सकती। जो पूर्ण रूप से निष्कलंक रूप से पवित्र है, वही विराट हो सकता है, इस बारे में हमारे सद्गुरु अनिरुद्ध बापू ने पितृवचनम् में बताया, जो आप इस व्हिडिओ में देख सकते हैं।
॥ हरि ॐ ॥ ॥ श्रीराम ॥ ॥ अंबज्ञ ॥