पंचमुखहनुमत्कवचम् विवेचन - ०४ (पंचमुखी माता गायत्री) [(Panchamukha-Hanumat-kavacham Explanation - 04 (Panchamukhi Mata Gayatri)] - Aniruddha Bapu
परमपूज्य सद्गुरु श्री अनिरुद्ध बापू ने ०९ मार्च २०१७ के पितृवचनम् में, पंचमुखहनुमत्कवचम् विवेचन करते समय ‘पंचमुखी माता गायत्री’ के बारे में बताया।
तो माता गायत्री भी पंचमुखी ही हैं और उनके मुखों के पाँच मुखों के रंग भी पंचमुख-हनुमत् जैसे ही हैं। और गय गायत्री। गायत्री शब्द का अर्थ हम लोग ने जाना है, गायत्री मंत्र का भी जाना है। गय यानी प्राण। जो प्राणों का त्राण यानी तारण करती है, संरक्षण करती है, वो गायत्री है।
अब समझे, ये महाप्राण हनुमानजी हैं। इनके पाँच मुख यानी पंचप्राण हैं तो उनका रिश्ता गायत्री से होगा ही। इसलिये ये गायत्री छंद है, यहा छंद का मतलब हमें पहले जानना चाहिये कि छंद यानी प्रवाह, लय, rhythm. इसका रिदम जो है, वह गायत्री मंत्र के अनुसार है। व्याकरण के नियम नहीं लागू होंगे वहां।
यानी गायत्री मंत्र के जो स्पंदन हैं, वे ही स्पंदन हमें इस पंचमुख-हनुमत् कवच से मिलेंगे। गायत्री मंत्र का त्रिकाल पठण करना हर रोज, ये कोई साधारण बात नही है। उसके लिये ब्रह्मचार्य का पालन करना पडता है, प्याज नहीं, लशून नहीं, नॉन वेज नहीं, शराब नहीं सारे के सारे नियम करने पडते हैं। तो उसके बदले हमें यहां सिर्फ ब्रह्मा ऋषि:, गायत्री छंद: कहकर पंचमुखहनुमत् कवच कहने के बाद हमें हर रोज बारा बार गायत्री मंत्र, जो ओरिजिनल गायत्री मंत्र है,
त्रिपदा गायत्री
ॐ भू: भुव: स्वः
ॐ तत् सवितुर्वरेण्यम् भर्गो देवस्य धीमहि
धियो यो नः प्रचोदयात ॐ॥
ये जो त्रिपदा गायत्री है, इसके सारे के सारे स्पंदन हमें किससे मिल सकते हैं? सिर्फ इस पंचमुख हनुमत कवच के एक बार पठन से वो भी कितने, तो बार बार गायत्री मंत्र का पठन करने के। इसलिये यहा ब्रह्मा ऋषि कहा है, इसका छंद क्या है? गायत्री छंद है।
यानी ये एक साथ आपको हनुमानजी के साथ, प्रजापति ब्रह्मा के साथ और माता गायत्री के साथ जो महामाता का ओरिजिनल स्वरुप है। उन तीनों रुपों के साथ जोड देता है। इसलिये इतना महान कवच हम लोग इतने सालों से यहां पढते आये हैं, इस बारे में हमारे सद्गुरु अनिरुद्ध बापू ने पितृवचनम् में बताया, जो आप इस व्हिडिओ में देख सकते हैं।
॥ हरि ॐ ॥ ॥ श्रीराम ॥ ॥ अंबज्ञ ॥