पंचमुखहनुमत्कवचम् विवेचन ०२ (Panchamukha-Hanumat-kavacham Explanation 02) - Aniruddha Bapu
परमपूज्य सद्गुरु श्री अनिरुद्ध बापू ने ०९ मार्च २०१७ के पितृवचनम् में ‘पंचमुखहनुमत्कवचम्’ के बारे में बताया।
सो, इसलिये ये हमें दिशादर्शन करने के लिये, सही रास्ते में, हमें रास्ते में प्रवास के लिये जो भी आवश्यक है, यानी पंचमुखहनुमत्कवच हो या और कोई कवच हो या कोई स्तोत्र हो, मान लो स्तोत्र हो, तो उस प्रवास के लिये आवश्यक जो भी चाहिये वो हमें पूरा करने के लिये कौन होता है, उसका ऋषि होता है। ब्रह्मा ऋषि:।
ये ऋषि शब्द का अर्थ एक है जो ऋत यानी इस विश्व के जो शाश्वत नियम हैं, उनके अनुसार ही हमेशा चलता है और चलाता है। किसी को भी चला सकता है वो ऋषि है। यानी हमारे प्रारब्ध के नियम कितने भी जटिल क्यों न हों, कितने भी खराब क्यों न हों, इस कवच का जो ऋषि होता है, तो उसके शब्द में इतनी ताकद होती है कि वो हमारे प्रारब्ध के सारे नियमों को सँभालकर भी हमें उसी प्रारब्ध की खाई से बाहर निकाल सकता है।
इसलिये उसका स्मरण करना बहुत आवश्यक है, कवच कहने के पहले, क्योंकि केवल एकमात्र नामस्मरण से भी, उसके एक बार किये हुए नामस्मरण से भी हम उसके साथ जुड जाते हैं। ये ताकद है। और इसी स्तोत्र में किसका नाम लेना, तो अपने सद्गुरु का नाम लीजिए। साई समर्थ बोलिये, स्वामी समर्थ बोलिए, तुलसीदासजी बोलिये, रामदासजी बोलिए, जो कहना चाहते हैं, बोलिए। आप अपने आप इस स्तोत्र के पूरे प्रवास में पूरे सशक्त रहते हैं। और यहा तो कौन है? प्रजापतिब्रह्मा ऋषि है।
प्रजापतिब्रह्मा क्या करता है? उसने सृष्टि की निर्मिती की हुई है यानी नवनिर्मिति ये जो क्षेत्र है, creativity ये जो हम कहते हैं, हम जो हमारे खुद में बदलाव लाना चाहते हैं, हम खुद को बदलना चाहते हैं, जो भी क्या है, हम खुद को change करना चाहते हैं यानी हमारा भी नवनिर्माण होता है ना। हमारे आगे की पीढियां हैं, बच्चे हैं हमारे, उन्हें हम shape देना चाहते हैं। उनका भविष्य अच्छा बनाना चाहते हैं। ये भी क्या है, नवनिर्मिति है। प्रजापतिब्रह्मा की पत्नी कौन है? सरस्वतीजी। ये जो विद्या की देवी है।
‘पंचमुखहनुमत्कवचम्’ के बारे में हमारे सद्गुरु अनिरुद्ध बापू ने पितृवचनम् में बताया, जो आप इस व्हिडिओ में देख सकते हैं।