नवरात्रिपूजन करने की शुद्ध, सात्त्विक, सरल परन्तु तब भी श्रेष्ठतम पवित्र पद्धति - भाग २
१. इस आश्विन नवरात्रि उत्सव से परमपूज्य सद्गुरु अनिरुद्ध बापू के द्वारा दी गयी नवरात्रि-पूजन की विशेष पद्धति में, परात की मृत्तिका (मिट्टी) में गेहूँ (गोधूम) बोने की विधि का समावेश है। इस विधि के अनुसार बोये जाने वाले गेहूँ अंबज्ञ इष्टिका के मुख के सामने न बोते हुए, उन्हें अन्य सभी तरफ से बोयें, जिससे कि नवरात्रि की अवधि में गेहूँ के तृणांकूरोंसे से आदिमाता का मुख ढँक न जाये। संदर्भ के लिए साथ में दी गयी तसबीर देखें।
२. परमपूज्य सद्गुरु के द्वारा विशेष रूपसे बतायी गयी और उसके अनुसार मेरे द्वारा ब्लॉग पर पोस्ट की गयी नवरात्रि पूजन करने की शुद्ध, सात्त्विक, सरल परन्तु तब भी श्रेष्ठतम पवित्र पद्धति सभी श्रद्धावानों के लिए इस वर्ष की आश्विन नवरात्रि से उपलब्ध करायी गयी है। उसके अन्तर्गत विधिविधान कैसा होगा, इसकी सारी जानकारी मेरे ब्लॉग पर पहले ही दी गयी है। इस विधिविधान के अन्तिम (क्रमांक ३६) मुद्दे के अनुसार श्रद्धावानों को पुरानी पद्धति के अनुसार पूजन करने में कोई हर्ज नहीं है; लेकिन शुद्ध, सात्त्विक, सरल परन्तु तब भी श्रेष्ठतम रहने वाली पवित्र पद्धति से पूजन करने से नवरात्रि पूजन की त्रुटियां, गलतियां या व्यक्तिगत दोष इनका परिणाम नहीं होता।
कुछ श्रद्धावान इससे पहले अलग अलग पद्धति से पूजन करते आये हैं; परन्तु तब भी सद्गुरु के शब्द के अनुसार पूजन करें या अन्य पद्धति से पूजन करें, इसका निर्णय श्रद्धावान व्यक्तिगत रूप से ले सकते हैं।
३. आज से आरंभ हुए आश्विन नवरात्रि-उत्सव में परमपूज्य सद्गुरु द्वारा दी गयी नवरात्रि पूजन की विशेष पद्धति का लाभ अनेक श्रद्धावान उठा रहे है. इस नवरात्रि पूजन के विधि-विधान में अंबज्ञ इष्टिका पर देवी की आँखें, नाक और होंठ काजल से रेखांकित करने के एक उपचार का समावेश है. देवी की आँखें, नाक और होंठ रेखांकित करने के लिए काजल के अलावा अबीर का भी इस्तेमाल किया जा सकता है, इस बात पर श्रद्धावान गौर करें.
४. विद्यमान आश्विन नवरात्रोत्सव में, परमपूज्य सद्गुरु ने दी हुई विशेष पूजन पद्धति के तहत, पहले दिन सुबह किये जानेवाले प्रतिष्ठापना पूजन के क्र. १९ के उपचार के अनुसार गेंदे (झंडु) के फूलों की माला परात के चारों ओर (अंबज्ञ इष्टिका की रचना के चारों ओर) से अर्पण करनी है। दूसरे दिन से, शाम के नित्य पूजन में नयी माला अर्पण करते समय, पिछले दिन की माला / मालाएँ पूजनरचना में रखें या न रखें, यह हर श्रद्धावान अपनी पसंद तथा सहूलियत के अनुसार तय कर सकता है।
५. प्रतिष्ठापना पूजन तथा नित्य पूजन के उपचारों के अनुसार, आदिमाता को हररोज़ क्रमानुसार सुबह और शाम दूध-शक्कर का नैवेद्य अर्पण करना आवश्यक है।
६. साथ ही, दूसरे दिन से हररोज़ शाम को किये जानेवाले नित्य पूजन के दौरान पुरण-वरण का और अन्य भोजनपदार्थों का नैवेद्य अपनी इच्छानुसार अर्पण कर सकते हैं। लेकिन यह करते समय, पूजनविधि के उपचार क्र. २० में बतायेनुसार नैवेद्य अर्पण करें।
वैसे ही, पुनर्मिलाप पूजन के क्र. ३२ के उपचार के अनुसार, सुबह दूध-शक्कर तथा केवल "पुरण" इतना ही नैवेद्य अर्पण करें।
७. पूजनविधीमें अर्पण करने के लिए यदि चुनरी उपलब्ध न हो, अथवा यदि अपनी इच्छा हो तो भी चोलीखण अथवा ब्लाउजपीस अर्पण कर सकते है.