'अभिसंवाहन’ शब्द का अर्थ
सद्गुरु श्री अनिरुद्धजी ने १५ अप्रैल २०१० के पितृवचनम् में ‘अभिसंवाहन’ शब्द का अर्थ’ इस बारे में बताया।
अभी चरणसंवाहन करना है, अभी क्या कहते हैं, मस्तक, ‘करावे मस्तके अभिवंदन। तैसेचि हस्तांही चरणसंवाहन।’ ‘तैसेचि - तैसेचि’ यानी ‘वैसे ही’।, तैसेचि का मतलब है वैसे ही। यानी जैसे अभिवंदन किया, तो यहाँ संवाहन कैसा होना चाहिए? अभिसंवाहन होना चाहिए। चरणों का संवाहन तो मस्तक का, एक उपचार तो हम जान गए, प्रणाम करना है, ये करना है, ‘हमारे मस्तक पर उनके चरणों को रखो’ ऐसे प्लीज कहना है, पूरे भाव के साथ। ये अभि, ये जो संवाहन है, तो ‘अभि’ शब्द जुड़ गया - तो अभिसंवाहन, तैसेचि यानी वैसे ही। ‘अभिसंवाहन’ यानी क्या? चरणों की निगरानी यानी क्या? चरणों की केअर यानी क्या? यानी मेरे भगवान जिस रास्ते पर चल रहे हैं, मेरे सद्गुरु जिस रास्ते पर चल रहे हैं, उस रास्ते उनके आगे भी मैं चलूँगा। हम डर जाते हैं भाई, सद्गुरु के आगे कैसे चलना है? भाई चलना है, उनके पीछे भी चलना है, उनके बाजूसे भी चलना है। आगे क्यों चलना है?
नानासाहेब चांदोरकर चलते थे। जब भी साईबाबा रास्ते में चलते थे तो राधाकृष्णामाई, नेवासकर और उनसे ज्यादा नानासाहेब चांदोरकर उनके आगे-आगे चलते थे। रास्ते में कोई काँटा ना हो, बाबा के पाँव को चुभे नहीं। कोई छोटा कंकड-पत्थर ना हो, जो बाबा को चुभे नहीं, कोई गाई का, भैंस का गोबर या कुछ ऐसा कुछ ना हो घोड़े का, तो उसे हटाना है, कोई पंछी आकर अपनी शीट वहाँ ना डाले आगे, बरसात के दिन हैं तो पैर फिसल सकता है। बाबा सब जानते हैं, बाबा का सामर्थ्य महान है, वो बाबा के लिए।
हमारा कर्तव्य क्या है? उनकी केअर करना। नानासाहेब चांदोरकर ने ऐसा नहीं सोचा कि बाबा तो सर्वसमर्थ हैं, हम जब उपर से नीचे गिरें तो भी हमें बचाते हैं तो यहाँ बरसात के दिन क्या उनके आगे जाकर रस्ते को ठीक करना? नहीं। उन्होंने ऐसे नहीं सोचा कि बाबा तो जीवन का सबसे बड़ा काँटा भी निकाल देते हैं, ये छोटे काँटों की उन्हें क्या परवाह? नहीं, ये उन्होंने नहीं सोचा। हमेशा उनके सामने चलते रहे बेचारे। बेचारे कहना ग़लत है। वो सबसे रईस थे, वो बेचारे नहीं थे, सबसे स्मार्ट थे। वो बाबा को भी नहीं देखते थे, तो किसे देखते थे? बाबा के चरणों को भी नहीं देखते थे, बाबा के चरण जहाँ पड़े हैं, जहाँ से गुजरे हैं उस रास्ते को नहीं देख रहे थे।
तो जहाँ बाबा के चरण पड़नेवाले हैं, रखनेवाले हैं बाबा उस रास्ते को देख रहे थे। यानी चरणों को, को भी नहीं देख रहे हैं, You Are getting it? समझ में आया? क्या भक्तिभाव है देखिए। बाबा के चरण देखने की भी चाहत नहीं है। वो चरण जहाँ रखनेवाला हैं, उस जगह पर उनके के लिए कुछ uncomfortable ना हो, उन्हें तकलीफ़ देनेवाला कुछ ना हो, ये देखते थे। पूरी जिंदगी नानासाहेब ने यही व्रत लिया था। इतना ही नहीं, बताता हूँ, जब साईबाबा की अंतिम यात्रा निकली थी, उस दिन भी नानासाहेब कितने दुख में होंगे आप जानते हैं, फिर भी नानासाहेब चांदोरकर उस दिन भी वही काम कर रहे थे, रोते-रोते, ‘जो लोग उठाके ले जा रहे थे उनके पैरों को कुछ ना लगे, उन्होंने मेरे बाबा को उठाया हुआ है।’ अपना पूरा दुख समेट कर नानासाहेब चांदोरकर यही काम कर रहे थे। क्या बात है देखो! ये हुआ ‘अभिसंवाहन’!
‘अभिसंवाहन’ शब्द का अर्थ इस बारे में हमारे सद्गुरु श्री अनिरुद्ध ने पितृवचनम् में बताया, जो आप इस व्हिडिओ में देख सकते हैं।
ll हरि: ॐ ll ll श्रीराम ll ll अंबज्ञ ll