"श्रीललिता पंचमी" - श्रीमातृवात्सल्यविंदानम कथा (Lalita Panchami)
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"श्रीललिता पंचमी" - श्रीमातृवात्सल्यविंदानम कथा (Lalita Panchami)
श्रीललिता पंचमी - बापूंजीके घर पर पूजी जानेवाली मोठेआई की मूरत |
आश्विन शुद्ध पंचमी अर्थात श्रीललिता पंचमी । आदिमाता महिषासुरमर्दिनी का श्री रामजी को दिया हुआ वरदान, अर्थात रावण के वध का कार्य पूरा करने के आड़े आने वाले दुर्गम का वध करने हेतु रामसेना में वह आश्विन शुद्ध पंचमी की रात को प्रगट हुई और उसने अपने परशु से उस काकरूपी असुर का अर्थात दुर्गम का वध किया । इस काकासुर का अर्थात दैत्यराज दुर्गम का वध होते ही आदिमाता महिषासुरमर्दिनी ने अपनी इस लीला की खबर श्रीराम को बताने और राम-रावण युद्ध की अगली खबर जानकी को समय पर ही बताने हेतु अपनी लाडली कन्या को - आल्हदिनी को "लीलाग्रही" अर्थात "ललिता" रूप में वहां भेजा ।
यह पूरी कथा श्रीमातृवात्सल्यविंदानम के सत्ताईसवें अध्याय में आती है । ललिता पंचमी का महत्त्व समझानेवाले इस अध्याय में श्रीआदिमता का अशुभनाशिनी स्तवन भी आता है । इस स्तवन में सारे श्रद्धावान भक्तों के लिए मार्गदर्शक साबित होनेवाली बिभीषण जी की प्रार्थना है ।
पापोऽहं पापकर्माऽहं पापात्मा पापसंभव:।
त्राहि मां आदिमाते सर्वपापहरा भव॥