राधा सहस्त्रनाम की महती (Importance of Radha Sahastranam) - Aniruddha Bapu
सहस्र रामनामतुल्य राधा नाम (Sahastra Ramnaam-Tulya Radha Naam) - Aniruddha Bapu
परमपूज्य सद्गुरु श्री अनिरुद्ध बापू ने अपने ५ फरवरी २००४ के ‘राधासहस्रनाम’ हिंदी प्रवचन में ‘सहस्र-रामनाम-तुल्य राधा नाम’ इस बारे में बताया।
जब वेदव्यासजी ने गुरु नारदजी से यह पूछा कि मैं तो बस ‘राम’ नाम रटते ही आ रहा था, क्योंकि आपने ही मुझे बताया था कि एक राम नाम ही सहस्र नामों के बराबर है। तब नारदजी ने कहा कि इस कलियुग के लिए सहस्र राम नाम की ताकद एक राधा नाम में है। जिन्होंने सारे वेद, उपनिषद्, पुराण, महापुराण लिखे हैं, संपादित किये हैं ऐसे महर्षि वेदव्यास कहते हैं कि मैं अज्ञानी हूं। जब वेदव्यास स्वयं को अज्ञानी समझते हैं तो बाकी किसी के ज्ञानी होने की संभावना नहीं है। वेदव्यास कहते हैं, ‘‘गुरुवर, मैं तो अज्ञानी हूं, अब आप ही मुझे बताइए कि यह बात कैसे हो सकती है?’’ उन्हें कोई आशंका नहीं है वो जानना चाहते हैं। बडी विनम्रता से वे पूछते हैं।
तब नारद भगवान उन्हे बताते हैं, ‘राम नाम का रं यह अग्नि बीज और आ यह भानू (सूर्य) बीज जिसने धारण किया है, वही राधा है। रं और आ ये रामनाम के दोनों बीज राधा ने धारण किये हैं। और जो धारण करता है वह ज्यादा बलशाली होता है। इसीलिए ‘सहस्ररामनामतुल्यं राधानाम इति उच्यते’, ऐसा हमारे सद्गुरु अनिरुद्ध बापू ने प्रवचन में बताया, जो आप इस व्हिडिओ में देख सकते हैं।
कलियुग में रक्षा करनेवाला राधा नाम (Radha naam is the Savior in Kalyug) - Aniruddha Bapu
परमपूज्य सद्गुरु श्री अनिरुद्ध बापू ने अपने ५ फरवरी २००४ के ‘राधासहस्रनाम’ हिंदी प्रवचन में ‘कलियुग में रक्षा करनेवाला राधा नाम’ इस बारे में बताया।
सहस्र रामनाम तुल्य ‘राधा नाम’ अवश्य है, लेकिन उसके लिए एक शर्त है कि जो राम नाम नहीं लेता उसे राधा नाम से कोई फायदा नहीं है। राधाजी और विष्णुजी का संबध कैसा है? कहीं विष्णुजी शरीर हैं और राधाजी प्राणतत्व हैं, तो कहीं राधाजी शरीरतत्व हैं और विष्णुजी प्राणतत्व है। वे एकदूसरे के आत्मतत्व और देहतत्व होने के कारण एक के बिना दूसरे का अस्तित्व ही नहीं है। इसीलिए जो राधा नाम लेना चाहता है उसे रामनाम भी लेना ही पडेगा और जो राम नाम लेना चाहता है उसे राधा नाम भी लेना ही पडेगा।
राधा नाम लेकर सहस्र राम नाम का पुण्य चाहते हो तो आपको कम से कम एक बार तो राम नाम लेना ही पडेगा। क्योंकि उसी राम नाम में राधा आकर विराजमान हो सकती हैं। और जब राम नाम का जप करना चाहते हो तो राधा नाम का जप करना चाहिए। क्योंकि उस राधा नाम में ही राम आकर विराजमान होनेवाले हैं। देखिए कितनी गहन, जटील बात कितनी आसान करके देते है गुरुवर्य। तब नारदजी व्यासजी को आज्ञा देते हैं- ‘हे वत्स, हे शिष्य, अब तुम ने जो यह जाना है, वह कलियुग में सब भक्तों को बताने के लिए राधा सहस्रनाम की रचना करो। ‘राधा सहस्रनाम’ इस कलियुग की प्रथम रचना है। कलियुग के लिये की गयी सर्वश्रेष्ठ और पहली रचना ‘राधा सहस्रनाम’ है। ये राधाजी ही सच्चिदानंद है। ये ही हमें आनंद प्रदान करनेवाली हैं। इसीलिए हम भी राधा सहस्रनाम का पाठ शुरु करने वाले हैं, ऐसा हमारे सद्गुरु अनिरुद्ध बापू ने प्रवचन में बताया, जो आप इस व्हिडिओ में देख सकते हैं।
कृष्ण राधा से अभिन्न हैं (Krishna is inseparable from Radha) - Aniruddha Bapu
परमपूज्य सद्गुरु श्री अनिरुद्ध बापू ने अपने ५ फरवरी २००४ के ‘राधासहस्रनाम’ हिंदी प्रवचन में ‘कृष्ण राधा से अभिन्न हैं ’ इस बारे में बताया।
राधा! हम बहोत बार सुनते हैं कि राधा कृष्ण-भगवान की प्रेमिका है। मगर राधा यह किशन भगवान की प्रेमिका नहीं हैं। गोकुल में भी जब भी राधा का उल्लेख आता है तो उस समय राधा २३ साल की थी और कृष्ण की आयु थी ४ साल। यह रेफरन्स हरिवंश पुराण में मिलता है। उम्र के हिसाब से देखा तो ४ साल का बच्चा और २३ साल की स्त्री ये तो मॉं-बच्चे का रिश्ता हो सकता है। मगर यह तो मॉं-बच्चे का रिश्ता भी नहीं है। कृष्ण और राधा ये अभिन्न हैं। सभी तत्त्वों को आकर्षित करता है वह कृष्ण है। जैसे चुंबक मे आप नॉर्थ पोल और साऊथ पोल अलग नहीं कर सकते हो, वैसे ही राधा और कृष्ण भगवान को भी अलग नहीं कर सकते। एक के सिवा दूसरे का अस्तित्व नहीं है। कृष्ण भगवान के सिवा राधा का अस्तित्व नहीं और राधा के सिवा कृष्ण भगवान का अस्तित्व नहीं है। क्योंकि ये कोई पर नारी है ही नहीं उनके लिए, ये उनका ही स्वरूप है।
इसीलिए उनको ‘युगल सरकार’ कहते हैं। वे हमेशा साथ साथ ही रहते हैं। सरकार यानी सत्ता। राधा और कृष्ण दोनों एक साथ साथ हैं, यही उनकी सत्ता है। ये एक दूसरे से अलग रहते ही नहीं, क्योंकि ये एक दूसरे के हृदय में ही रहते हैं, ऐसा हमारे सद्गुरु अनिरुद्ध बापू ने प्रवचन में बताया, जो आप इस व्हिडिओ में देख सकते हैं।
॥ हरि ॐ ॥ ॥ श्रीराम ॥ ॥ अंबज्ञ ॥