"नित्य उपासना" और "हरिगुरु गुणसंकीर्तन" का अनन्यसाधारण महत्व - (The importance of "Daily Prayers" & "Hariguru Gunasankirtan") - Aniruddha Bapu Pitruvachanam 31st Dec 2015

नये साल का स्वागत करते समय, ३१ दिसंबर २०१५, गुरुवार के दिन सद्‌गुरु बापू ने अपने पितृवचन में, अगले साल याने २०१६ साल में "नित्य उपासना" (daily prayers) और "हरिगुरु गुणसंकीर्तन" के अनन्यसाधारण महत्व को विशद किया था। इस पितृवचन का महत्वपूर्ण भाग संक्षिप्त रूप में मेरे श्रद्धावान मित्रों के लिए इस पोस्ट के द्वारा मैं दे रहा हूँ।

Aniruddha Bapu

"अभी २०१६ साल चंद घण्टों में शुरु होनेवाला है । हर साल की एक अपनी अपनी खासियत होती है। साल का पहला दिन और आखरी दिन हम हमेशा बड़ी उत्सुकता के साथ, बड़े विचारमंथन के साथ, बहुत कॉशन (caution) के साथ जीना चाहते है। इन दोनों दिनों के बीच में साल में क्या होता है, क्या चलता है, कैसे चलता है, हमें कुछ भी पता नही होता, और हर साल यही होता हैं। कालप्रवाह में हम लोग बहते रहते है। Let us stop this once and for all. कभी न कभी इसे बंद कर देना चाहिए। हम प्रवाह पतीत नही होंगे।

श्रीशब्दध्यानयोग, श्रीश्वासम्, श्रीस्वस्तिक्षेम संवादम् और श्रीगुरुक्षेत्रम् मन्त्र। ये जो चार स्तंभ है हमारे पास, इस की सहायता से हम कुछ भी कर सकते है। कुछ भी बदल सकते है। लेकिन बात क्या है ना की हम "आरंभशूर" होते है। यानी कोई भी निर्णय करते है, तो हम लोग पहले दोन दिन, तीन दिन या तीन घण्टा, एक घण्टा, जो भी है, हम लोग पूरी ताकद लगा कर, अपने पास जितनी भी ताकद है उस से भी बढ़कर ताकद लगाकर आरंभ कर देते है। लेकिन आहिस्ता आहिस्ता गुब्बारे की तरह हमारी हवा हमेशा निकलती रहती है, और हम लोग आरोप किसी दूसरे पर करते है। ’इस चिज’ के कारण, ’इस आदमी’ के कारण, ’इस परिस्थिती’ के कारण, ’ऐसे ऐसे चीजों’ के कारण ये हवा निकल गयी ऐसा हमारा कहना होता हैं।

असल में हमारी हवा हम ही खुद निकाल देते है। लेकिन ऐसा क्यू होता है? क्योंकि हम लोगों के मन में एक बात फिक्स होती है - "हमारा पहला कदम।" लेकिन हम लोग ये नही जानते की हमारे इस पहले कदम के लिए, शुरुआत के लिए, आरंभ के लिए हम पूरी ताकद लगा देते है। But that is wrong। पूरी ताकद लगाना गलत हैं और हमारा पहला कदम भी गलत हैं। तो आप बोलेंगे "बापू, दूसरे कदम का क्या?"। पहला कदम लिए बीना दुसरा कदम कैसे ले सकते है? असल में हर कदम पहला कदम ही होता है। हर एक कदम जब हमारा पहला कदम होता है, तब ही हम लोग पूरी की पूरी जो दूरी है, जो फासला है वो पार कर सकते हैं। लेकिन हम हमारा पहला जो कदम है, सिर्फ उसे हम पहला कदम मानकर पूरी ताकद लगा देते है। तब हमारे पास आगे की दूरी या फासला पार करने के लिए बाकी की ताकद बचती ही नही ।

तो हमे क्या करना चाहिए? पहले ये ध्यान रखिए के ये ’पूरा जोर लगा के हैय्या’ जो है ना, वो एक गढ्ढा खोदने के लिए ठीक है। जिंदगी जिने के लिए, जिंदगी से प्यार करने के लिए सहजता होनी चाहिए। इस का मतलब बिना कुछ काम किए आलसीपन से बैठे रहना यह सहजता नही। ’हरि के मन में इच्छा होगी, उस के माँ के मन में इच्छा होगी तो मिलेगा...’ इस तरह से जी कर नही चलेगा। हर एक कदम के लिए हमारे पास ताकद होती है। जितनी ताकद एक कदम उठाने के लिए चाहिए, उतनी ही ताकद से पहला कदम उठाना। लेकिन हम लोग सोचते है की जोर से शुरुआत करेंगे तो अच्छा होगा। That is wrong। कभी ना कभी तो इसे हमेशा के लिए रोकना चाहिए।

Sadguru Bapu Thursday discourse

...और इस शतक का ये जो साल है, उस में हम लोग हमारी श्रद्धा को, हमारी आस्था को बढ़ाकर हमारे पूरे जीवन को बदलने की ताकद हासिल कर सकते है। लेकिन २०१६ साल ही क्यु? ये भी एक सायन्स है। इस के पीछे विज्ञान भी है और ज्ञान भी। हम जानते है की बारह नक्षत्र समूह है जिन्हे हम १२ राशी कहते है। तो ये सूर्य का जो भ्रमण होता है, उस से जो पृथ्वी की, वसुन्धरा की दूरी है, उस पर बहुत कुछ निर्भर करता है। वसुन्धरा का विद्युत चुंबकिय क्षेत्र जो है, उस में क्या क्या बदलाव आने वाले है, उस पर बहुत कुछ निर्भर करता है।

तो आज हम २०१६ साल की बात कर रहे है। याने २०१६ सालों पहले, इस समय कालगणना का आरंभ हुआ था जब भगवान ख्रिस्त आये थे। उस से पहले २०० साल (200 BC), "मत्स्यउपयुग" की शुरुआत हुई थी। यह कलीयुग का एक छोटासा हिस्सा होता है। अंग्रेजी में इसे "पिसीयन एज" (Piscean Age) कहते है। यहाँ जो मीन राशी है, उसका वर्चस्व है। मीन याने मत्स्य। और कुल साल कितने है? २०० बी.सी. से लेकर आगे २५९२ साल हैं। इतने सालों तक ये चलता रहनेवाला है, और इस युग में जो सब कुछ होता है, वो एक डेफिनेट वैश्विक गणिती माध्यम से होता है, वैदिक गणित के माध्यम से होता है।

इसका मतलब ये नही की हमारा जीवन गणित से बंधा हुआ है। गणित के साथ चल रहा है, बँधा हुआ नही है। यहाँ इस मत्स्य उपयुग में ये जो पूरा का पूरा कालखण्ड है, उस में सत्ता है वह "७" इस संख्या की। हम संस्कृत में "सप्ताह" बोलते है। मराठी में "आठवडा" बोलते है। इस में दिन कितने है? ७ दिन है। हमारे शरीर में धातू कितने है? ७ धातु हैं। रस, रक्त, मांस, मेद, अस्थि, मज्जा, शुक्र। सप्तर्षी कितने हैं? ७ सप्तर्षी हैं। चिरंजीव कितने हैं? ७ चिरंजीव हैं। ज्ञान की भूमिकाएँ कितनी हैं? ७ भूमिकाएँ हैं। हमारे शरीर के अ‍ॅक्टिव्ह चक्र कितने हैं? ७ चक्र हैं। इस का मतलब क्या है? इस युग के लिए ये "७" का जो अंक है, संख्या है, वह हम सब के लिए बहुत ही मायने रखती है।

अब देखिए, २५९२ इन अंकों की आप अ‍ॅडिशन कीजिए। कितना होता है? "१८" । और जो ये नक्षत्रसमूह है, उसका अँगल (angle) कितना है? "३६" डिग्रीज (36 degrees)। तो "७", "१८" और "३६" ये संख्याएँ बहुत महत्त्वपूर्ण है। इसलिए १८ हाथ उस चण्डिकाने धारण किये हुए है। हर एक युग के अनुसार माँ के हाथ अलग अलग हैं। इसलिए हम उसे "सहस्त्रहस्ता" भी कहते है। हम यहाँ इस युग में है इसलिए उसे १८ हातों वाली मान रहे है। हर एक युग के साथ साथ वो जो अपना रूप प्रगट करती है, वह रूप उतने हाथों का रहता है। हमे ये जानना चाहिए के १८ हातों का उस का रूप मूल रूप ही है। जो मीन है, मत्स्यावतार है, वह महाविष्णु का प्रथम अवतार है। इसलिए मॉं वही रूप में है जो उस का मूल रूप है, आदिरूप है।

पूरे के पूरे २५९२ सालों के लिए, हम लोगों के उद्धार के लिए, हम लोगों की सहायता के लिए उस ने यह रूप धारण कर के रखा हुआ है। इसलिए उस १८ हाथों वाली की उपासना हमें हमेशा बहुत ताकद देनेवाली है। अब "७" संख्या देखिए। हमारे सात ग्रन्थ है। "श्रीमद्‌पुरुषार्थ ग्रन्थराज" के तीन खंड, मॉं दुर्गा के दो - "मातृवात्सल्य विन्दानम्" और "मातृवात्सल्य उपनिषद", बाद में रामरसायन। छे हो गए। और सातवाँ? सातवाँ आनेवाला है। श्रीमद्‌पुरुषार्थ ग्रन्थराज का चौथा खंड आनेवाला है।

Shraddhavans at Bapu discourse

उसी तरह "७" स्तंभ कौन से है? एक श्रीगुरुक्षेत्रम् मन्त्र, दूसरा श्रीस्वस्तिक्षेम संवादम्, तीसरा श्रीश्वासम्, चौथा श्रीशब्दध्यान योग। यह चार स्तंभ हुए। और तीन स्तंभ कौन से है? त्रिविक्रम! हमारा एक कदम याने उस के तीन कदम होते है। याने उस त्रिविक्रम के तीन कदम ही हमारे लिए तीन स्तंभ है, जो हम सब के पास होते है। याने आप कुछ करो या न करो, सात में से तीन चीजें हमारे पास है ही। आप अगर भगवान त्रिविक्रम को अपना पिता मानते है, तो आप के पास तीन स्तंभ है ही। अपने आप बिना कुछ किए ही है। सिर्फ एक विश्वास चाहिए - ये मेरा सबसे प्यारा पिता है, ये एकमेव पिता है, और ये मेरा सबसे प्यारा दोस्त है।

बस्स! इस विश्‍वास के साथ सात में से ये तीन स्तंभ आपके पास आ जाते है और उस की सहायता से हमें श्रद्धा, सबुरी और विश्‍वास हासिल होता रहेगा। हमें हर चीज के लिए कपॅसिटी (Capacity), कॉम्पीटन्सी (Competency) और पोटन्सी (Potency) मिलती रहेगी। तो उस त्रिविक्रम से हमे जो बल मिलता है, उस से हम श्रीगुरुक्षेत्रम् मन्त्र का पठण कर सकेंगे, हम श्रीस्वस्तिक्षेम संवादम् भी कर सकेंगे, हम श्रीश्वासम् भी कर सकेंगे और हम श्रीशब्दध्यान योग भी कर सकेंगे। इन सात स्तंभों की सहायता से, श्रीशब्दध्यान योग में हर चक्र की पूजा के साथ साथ जो स्वस्तिवाक्य हम लोग बोलते है, वैसा ही हमारा जीवन रहेगा; होगा नही, रहेगा।

"मैं सुखी हू।" "मै यशस्वी हूँ।" ये सिर्फ बोलने की बात नही रहनी चाहिए। ये रहेगा ऐसे ही, क्योंकि, just because; nothing else but just because he wants it this way! That's all! क्योंकि वो चाहता है की मेरे बच्चों के पास कुछ अपने आप हो। He should not start from the scratch! हम लोग बोलते है ना, "I have to start from the scratch yaar! मुझे शून्यता से शुरुआत करनी होगी। कुछ नही है मेरे पास।" नहीं! जो सही श्रद्धावान है, उस के लिए शून्यता से शुरुआत करने की आवश्यकता नही होती। उस के पास तीन स्तंभ पहले से है। ...और ये तीन स्तंभ भी कैसे है? हमारा अन्नमय देह याने स्थूल देह, हमारा प्राणमय देह और हमारा मनोमय देह; तीनों पर वो त्रिविक्रम अपने कदम डालते फिरता है। याने जहाँ भी कुछ कमी है, तो वो भरने के लिए वो तैय्यार है।

इस २०१६ साल से "मत्स्ययुग" जो है, उस का अंतिम चरण शुरू हो रहा है। ये जो अंतिम पर्व है, इस पर्व के हम लोग साक्षीदार है। इसीलिए हम लोग ऐसी मोड़ पर है, की पूरी की पूरी वसुन्धरा की स्थिती बदलने वाली है। उसका यह पहला साल है। इसीलिए हमें इस साल "कन्सेशन" (Concession) मिला है, जिस से इस साल में हम अपनी अध्यात्मिकता बढ़ाये, हमारी भक्ती बढ़ाये, हमारी उपासनाएँ बढ़ायें। ये सातों स्तंभ जो हमारे पास है, वो इस श्रीशब्दध्यान योग को सही रिती से, सही ढंग से हमारे जीवन के हर पहलू में हमेशा के लिए लाकर रख देंगे।

Aniruddha Bapu

 

...क्योंकी इस साल आप लोग जो भी उपासना प्रेम के साथ करेंगे, जितनी नियमीतता से करेंगे, उस से सामान्यतः जो फायदा होता है, जो सामर्थ्य मिलता है, जो सहुलते मिलती है, उस से सात गुना ज्यादा सहुलते, सात गुना ज्यादा फल आपको माँ जगदम्बा की कृपा से त्रिविक्रम दे ये मेरी प्रार्थना है और वो जरूर देगा...वो भी कम से कम सात गुना! जितनी आप की नियमितता अच्छी, जितना आप का प्यार अच्छा, आप का विश्‍वास अच्छा बढ़ता रहेगा, उस से सात सौ गुना फल भी हो सकता है, सात हजार गुना भी हो सकता है, सात लाख गुना भी हो सकता है और सात करोड़ गुना भी हो सकता है। इसलिए don't waste this year. ये बड़ा महत्वपूर्ण वर्ष है हमारे सब के जिंदगी का। खाना खाईये, मजा किजीये, पिक्चर देखिये, टूर के लिए जाईये, सब कुछ कीजीये। नो प्रॉब्लेम। लेकिन उस के साथ साथ जितनी हो सके भक्ती करते रहीए। हम भक्ती बढ़ाते रहेंगे। भक्ती ज्यादा से ज्यादा करते रहेंगे। हमारे घर में छोटे छोटे बच्चे है, हमारी माँ है, पिता है, पती है, पत्नी है, भाई है, बहन है; जितना हो सके वो लोग भी करे, इसलिए हम कोशिश करे। लेकिन किसी को फोर्स नही करना है। Don't force anybody |

उसी तरह मैने बार बार बताया है और साईचरित्र में भी बार बार बताया है की कलियुग का सब से बड़ा भक्ती का साधन क्या है? "श्रीहरिगुरु गुणसंकीर्तन"! हेमाडपंतजी क्या कहते है? ‘कोरड्या चरणे भवतरू।’ भव याने भवसागर। एक बूँद जल भी पैर को छुए बिना अगर भवसागर पार करना है, तो हम लोग वो पार कर के जायेंगे; वो भी चल के। किसके कारण? "श्रीगुरु नामसंकीर्तन" के साथ, "श्रीगुरुकथा श्रवण" के साथ। ये "हरिगुरुकथा श्रवण और संकीर्तन" अपने मन में भी करते रहो तो अच्छा है। दुसरों के साथ करो, अच्छा है। दूसरें से सुनिए, श्रवण कीजिए, वो भी बेहतर है।

तो ये साल कौन सा है? "श्रीहरिगुरु गुणसंकीर्तन" साल है। भक्ती सिर्फ "श्रीहरिगुरु गुणसंकीर्तन" से ही बढ़ती है। हरिगुणसंकीर्तन से, हरिनाम कीर्तन से ही बढ़ती है। हमारे पास त्रिविक्रम के तीन स्तंभ है ही। अगर हम त्रिविक्रम को अपना पिता, बाप, डॅड जो भी हो मानते है, तो वो आप के साथ है ही...और पूरे का पूरा है...कुछ आधा टक्का कम वगैरह ऐसी बात नहीं होती। हम साईचरित्र पढ़ेंगे। स्वामी समर्थ की बखर पढ़ेंगे। अपना पुरुषार्थ ग्रन्थराज पढ़ेंगे। मातृवात्सल्यविन्दानम् पढ़ेंगे। माता का उपनिषद पढ़ेंगे। रामरसायन पढ़ेंगे। हम अपने अनुभवों को जो हैं, वो एक दूसरे से शेअर करेंगे। उन्हे सुनेंगे। अपने मन को बार बार बताते रहेंगे, ’अरे, साईचरित्र में भीमाजी पाटील की कथा क्या थी?’ अपने मन में ही संकीर्तन करना। पहले शुरुआत करो। ये पहला कदम उठाओ। इस साल हर रोज कम से कम एक बार अपने खुद के मन में उस साई का, उस समर्थ साई का, उस गुरुतत्त्व का संकीर्तन करना शुरु करो। सचमुच मेरे बच्चों, मेरे दोस्तों, ये साल बहुत महत्त्वपूर्ण है हर एक के लिए।

Shraddhavans at thursday discourse

तो हम लोगों ने आज "७" इस संख्या का महत्त्व देखा। "१८" इस संख्या का महत्त्व हम लोग जानते है। अब "३६" का महत्व क्या है? जो १०८ बार नाम कहने से, या मन्त्र कहने से, या पठन करने से फल मिलता है, वो इस साल सिर्फ ३६ बार करने के बाद तीन गुना मिलेगा ये मेरा विश्वास है। याने अन्य समय पर १०८ बार पठन करने के बाद जो फल मिलता है, उस से तीन गुना ज्यादा फल इस साल सिर्फ ३६ बार पठन करने से त्रिविक्रम जरूर देगा। याने इस साल १०८ बार पठन करने से मिलने वाला फल मॉं जगदंबा की कृपा से कुल नौ गुना ज्यादा होगा।

 "३६" का महत्व क्या है? "३६" यह एक ऐसी संख्या है, जो माता शिवगंगा गौरी, माँ रेणूका की सबसे प्रिय संख्या है। इस से क्या होता है? इस संख्या के कम्पन जो है, वो बहुत काम के है। हमारे पास जो भी खामियाँ होगी, बुराई होगी, अगर हम उस का खातमा करना चाहते है, या उसे कम करना चाहते है, तो इस साल मन में एक संकल्प कीजीए। कुछ तो एक आध्यात्मिक चीज मैं ३६ बार हर रोज कहुंगा ही। सिर्फ ‘ॐ कृपासिंधु श्रीसाईनाथाय नमः’ बोलूंगा तो भी काफी है। आप और ज्यादा करना चाहते है, कुछ मन्त्र लेना चाहते है, कोई स्तोत्र लेना चाहते है, कीजीए। नो प्रॉब्लेम। हम जितने जीवन में दूसरे काम में व्यस्त है, उस हिसाब से जितना टाईम मिल सकता है, कीजीए।

 

Aniruddha-Bapu-31---1

 

संकल्प करते समय त्रिविक्रम को बोलकर अपने अपने मन में संकल्प कीजीए..."हे त्रिविक्रम, मैने ये संकल्प किया है । तू जो जिसे देना चाहता है, जैसे करवाना चाहता है, लेकिन करवा ले प्लीज।" हनुमानजी को कहना, "हनुमानजी, मेरी ऊँगली पकड़कर चल रहे हो आप, तो छोड़ना नही। जरूरत हो तो एक थप्पड भी मार देना। चलेगा।" वैसे भी हनुमानजी कभी मारेंगे नही। वो सिर्फ दानवों को मारते है, असुरों को मारते है, इन्सानों को नही। जो बात मैने आज कही है, वो समीरदादा के ब्लॉग से एक हफ्तें के अंदर अंदर आयेगी। ये पहले सात दिन जो है, वो सात दिन आप जरूर ले लिजीये सोचने के लिए। लेकिन आठवे दिन से कम से कम ३६ बार वाली उपासना शुरू हो जानी चाहिए। कल से शुरू हो जाये तो बहुत ही अच्छा है। लेकिन देर से देर आठवें दिन तक याने ८ तारीख तक शुरू हो जानी चाहिए।"

॥हरि ॐ॥ ॥श्रीराम॥ ॥अंबज्ञ॥

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