दुर्गा मंत्र यह Algorithm संबंधी बापू ने दिया हुआ प्रवचन - भाग २
बा पु ने पिछले गुरुवार को यानी २३-०१-२०१४ को ‘सर्वमंगलमांगल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके । शरण्ये त्र्यंबके गौरि नारायणि नमोऽस्तुते ।।’ इस ‘दुर्गा मंत्र’ के अल्गोरिदम पर प्रवचन किया । इस प्रवचन का हिन्दी अनुवाद ब्लॉग पर विस्तृत रूप में अपलोड किया गया है । इस प्रवचन के दो महत्त्वपूर्ण मुद्दें थे- १) यह अल्गोरिदम निश्चित रूप से क्या है और २) इस अल्गोरिदम के विरोध में महिषासुर किस तरह कार्य करता है । इन दो मुद्दों को एकत्रित रूप में इस नोट के साथ मैं अलग से दे रहा हूँ, जिससे कि इन मुद्दों को समझना आसान हो ।
बापूने प्रवचन में कहा की, "हमें जीवन में क्या प्राप्त करना होता है? हमें सुख की प्राप्ति करनी होती है| दुख हम नहीं चाहते। लेकिन दुख आता है किस मार्ग से? प्रारब्ध से, नसीब से, कर्म से, कलियुग में बुरे लोगों की वजह से, जो कुछ भी हो, लेकिन दुख यानी क्या? हमें तकलीफ़ होती है, वह दुख है| अपने किसी प्रिय व्यक्ति का बिछडना, विरह होता है, वह क्या है? वह भी दुख है| पैसों का नुकसान होना, यह भी दुख ही है| और भी जो कुछ भी प्रतिकूल होगा वह दुख है| बीमारी, रोग इ. फलाना-फलाना जो कुछ भी हो वह दुख है| अनेक प्रकार के दुख हैं| लेंकिन ये जो सब दुख हैं, उन्हें मात देने के लिए हम विभिन्न प्रयास करते रहते हैं| अडचनें, संकट, दुख जो कुछ हैं, उन्हें मात देने के लिए हर एक मनुष्य प्रयत्न करता रहता है, प्रयास करता रहता है और इस प्रयास करने की प्रक्रिया को क्या कहते हैं? पुरुषार्थ! हमारे जवीन में मुसीबतों को मात देने के लिए, हममें जो कमियॉं हैं उन्हें दूर करने के लिए, जो फालतू बढ़ा हुआ है, जो तकलीफदेह है उसे कम करने के लिए, यानी सब कुछ उचित करने के लिए, सब कुछ सुंदर करने के लिए, दुख को हटाकर सुख प्राप्त करने के लिए, अपने जीवन का विकास करने के लिए मनुष्य जो कुछ प्रयत्न करता है, प्रयास करता है, उसे ही पुरुषार्थ कहते हैं| यह पुरुषार्थ की सरल आसान व्याख्या और इस पुरुषार्थ के लिए मनुष्य के पास ताकद होनी आवश्यक है| शरीर में, मन में, बुद्धि में और प्राणों में भी| प्राण ही अगर क्षीण हो गये तो मनुष्य क्या करेगा? शरीर हाथी जैसा तंदुरुस्त, ताकतवर होगा, लेकिन मन कमजोर होगा तो क्या उपयोग? मन स्ट्रॉंग है, लेकिन शरीर विकलांग हुआ तो हम क्या कर सकते हैं? कुछ भी नही| सारांश, सायमल्टेनियसली हमारे प्राण, हमारा मन, हमारी बुद्धि, हमारा शरीर, यह सब कैसा होना चाहिए? अॅक्टिव्ह होना चाहिए और सक्षम होना चाहिए| तो ही हम पुरुषार्थ कर सकते हैं| आज जो अल्गोरिदम हमे देखना है आदिमाता का, उसका मूल नामही बहुत सुंदर है| जिसे कहते हैं, ‘दुर्गा मंत्र’!
सर्वमंगलमांगल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके । शरण्ये त्र्यंबके गौरि नारायणि नमोऽस्तुते ॥
इस श्लोक में कहीं पर भी दुर्गा यह शब्द नहीं है । फिर भी मन्त्र क्या है - दुर्गामन्त्र । आ गया आपके ध्यान में । इसमें महिषासुरमर्दिनी यह नाम भी नहीं है । हम देखेंगे, यह अलगोरिदम है, हमारे जीवन के पुरुषार्थ का गणित, हमारा पुरुषार्थ हम क्यों हार जातें हैं, पुरुषार्थ करने में हम क्यों कम पड़ जाते हैं, यह स्पष्ट करनेवाला गणित आज हमें देखना है, सॉल्व करना है, स्वीकार करना है । ऋषि क्या कहते हैं - ‘सर्वमंगलमांगल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके’ । सारे मंगलों का मंगल करनेवाली यानी जो कुछ सर्वमंगल है, सुखकारक है, शुभ है, हितकारक है, दुखनाशक है और पवित्र है वह सब क्या है, तो मंगल है । मंगल शब्द का अर्थ देखिए इस तरह है । ये सभी सात शब्द मिलकर मंगल यह शब्द बनता है । आया ध्यान में ! इन सात शब्दों से, सात अर्थों से मिलकर मंगल यह शव्द बना है । शुभ, सुन्दर, मधुर, सुखकारक, हितकारक, दुखनाशक और पवित्र, यह ध्यान में रखना । मधुर का मतलब मीठा नहीं । मधुर इस शब्द का एक अर्थ मीठा यह ज़रूर है । लेकिन मधुर यानी क्या? जिन्होंने ग्रन्थ पढ़े हैं, उन्हें याद आ जायेगा कि हमने तीन व्यक्तिमत्त्वों का वर्णन किया है । उनमें से एक है ‘मधुर व्यक्तिमत्व’ । सब कुछ उचित होना यानी मधुर । हम जिसे हार्मनी कहते हैं ना, उस अँग्रेज़ी हार्मनी शब्द का अर्थ है मधुर । हार्मनी यानी माधुर्य । हम में इस हार्मनी का होना आवश्यक होता है, सब कुछ उचित, सुखकारक, ऍट इज़ होना आवश्यक होता है, और वही है हार्मनी । और उसे ही वैशिक ऋषियों ने ‘माधुर्य’ कहा है, मधुरता कहा है । तो शुभ, सुन्दर, माधुर्य, सुखकारक, हितकारक, दुखनाशक और पवित्र यह सब जिसके मूल में, जिस में है, वह मंगल है । और ऐसे मंगल को भी अधिक उच्च स्तर पर ले जानेवाली कला, उस मंगल का भी मंगल रहनेवाली है ‘सर्वमंगलमांगल्ये’ । और केवल मांगल्य रहनेवाली नहीं, बल्कि सर्वमांगलमांगल्ये यानी प्रत्येक प्रकार का मांगल्य केवल वही दे सकती है । सर्वमंगलमांगल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके । शिवे यानी पूर्ण शुद्ध रहनेवाली, पूर्ण शुद्ध थी, पूर्ण शु्द्ध है और पूर्ण शुद्ध रहेगी ऐसी वह शिवा । सर्वार्थसाधिके यानी सारे पुरुषार्थ सिद्ध करानेवाली । सिद्ध करनेवाली का अर्थ है सारे पुरुषार्थ की सिद्धि करानेवाली यानी आपमें प्रत्येक पुरुषार्थ समर्थ रूप से करने की ताकत निमार्ण करनेवाली । पुरुषार्थ करने के लिए आवश्यक रहनेवाली ताकत आपको प्रदान करनेवाली । फिर चाहे वह मन का सामर्थ्य हो, शरीर का सामर्थ्य हो, बुद्धि का सामर्थ्य हो या प्राणों का सामर्थ्य हो या फिर नसीब का सामर्थ्य हो । नसीब इस शब्द को ही कुछ अर्थ नहीं है । मग़र फिर भी हम इसे मान लेते हैं । हम हमेशा ही गुडलक, बॅडलक, कहते रहते हैं । राइट ! तो हमारे प्रारब्ध से लेकर हर एक बात तक जो कुछ भी हम में कम है, वह बल, वह सामर्थ्य सिद्ध करानेवाली । वह सिर्फ़ प्रदान नहीं करती, प्रदान करती है और सिद्ध भी करती है ।
जब तक भगवान हमारे मन के अनुकूल करता रहता है, वह भगवान अच्छा । लेकिन जहाँ उसने हमारी गलती दिखा दी, वह बुरा बन जाता है और इसी मार्ग का, इसी मार्ग पर का बहुत बड़ा भय हममें से हर एक को ग्रस्त करता रहता है । पुरुषार्थ प्राप्त करने की जो ताकत है, पुरुषार्थ मिलने का जो मार्ग है, जो पद्धति है, जो यन्त्रणा है, उसे ही हमसे काटा जाता है । यह कौन काटता है? हम उपनिषद् पढ़ते हैं, हम मातृवात्सल्यविन्दानम् पढ़ते हैं, तो हम यह जानते हैं कि महिषासुर और वृत्रासुर ये दो नाम उपनिषद् में बार बार आते हैं । मातृवात्सल्यविन्दानम् में, मातरैश्वर्यवेद में महिषासुर के बारे में पता चलता है, उसकी उत्पत्ति कैसे हुई यह समझ में आ जाता है । लेकिन हमें यह ध्यान में रखना चाहिए कि महिषासुर यह शब्द कैसे बना है । महिष + असुर यानि महिषासुर । बराबर है फिर महिष शब्द का अर्थ क्या है? म इति मंगलम्, पूर्ण मंगल यानी मंगलम् । ‘म’ यह बीज पूर्ण मांगल्य का बीज है । ‘ह’ कार जब र्हस्व इ से मिलता है, किसी भी अच्छी बात को जलाता है तब वह हिंसा है यानी जो कुछ भी मंगल है अर्थात सर्वमंगल है उस सर्वमंगल की हिंसा करनेवाला, जो सर्वमंगल है उसकी हिंसा करके ‘ष’ इति षण्ढत्व, षण्ढत्व प्रदान करनेवाला - वह महिषासुर । षण्ढत्व यानी क्या? तो फेल्युअर । जो काम मनुष्य के लिए आवश्यक है वह उसे न करने आना यानी षण्ढत्व । मनुष्य के अध्ययन, कर्तृत्व, व्यवसाय से लेकर मनुष्य जे कामजीवन के षण्ढत्व तक का प्रत्येक प्रकार का षंढत्व ही यह ‘षण्ढत्व’ है । इसका अर्थ क्या है? इस महिष शब्द का अर्थ क्या है? महिष यानी क्या? जो सर्वमंगल है उसकी हिंसा करके मानव को जो षंढत्व प्रदान करता है वह है महिष । और यह महिषत्व जो निर्माण करता है वह राक्षस है महिषासुर । तो महिष शब्द का अर्थ क्या है? सर्वमंगलों का जो मंगल है, मनुष्य जाति में जो कुछ भी अच्छा है, उसके लिए जो भी सुखकारक है, उसकी हिंसा करके उस मनुष्य को षंढत्व देनेवाला है महिषासुर । सारांश में, महिष शब्द का अर्थ है - जो कुछ भी अशुभ है और अनिष्ट है । अनिष्ट यानी हमारे लिए अहितकारक, बुरा, तकलीफ देनेवाला यानी अँग्रेज़ी में जिसे हम Evil कहते हैं, Devil नहीं, Evil; तो महिष शब्द का अर्थ है Evil, और महिषासुर शब्द का अर्थ है Devil ! Evil लानेवाला वह Devil है । आ गयी बात समझ में? तो यह महिषत्व देनेवाला वह महिषासुर । महिषासुर यानी क्या? तो सर्वमंगल की हिंसा करके षण्ढत्व देनेवाला । यानी क्या? पुरुषार्थ नष्ट ! षण्ढत्व शब्द का अर्थ क्या है? पुरुषार्थनष्ट । यानी धर्म पुरुषार्थ नहीं, अर्थ पुरुषार्थ नहीं, काम पुरुषार्थ नहीं, मोक्ष तो दूर ही रहा, भक्ति पुरुषार्थ नहीं, मर्यादा पुरुषार्थ नहीं । षंढत्व यानी पुरुषार्थ न होना, पुरुषार्थ की ताकत न होना । पुरुषार्थ करने की ताकत न होना, पुरुषार्थ की ताकत न होना । पुरुषार्थ करने की ताकत न होना ही षण्ढत्व है । यह महिषासुर यह करता है । हम किसकी भक्ति करते हैं? मंगल शब्द का अर्थ क्या है? जो जो शुभ है, सुन्दर है, मधुर है, सुखकारक है, हितकारक है, दुखनाशक है और पवित्र है, यानी जो भी पवित्र मार्गपर से चलना चाहते हैं उनका नाश करना यही इसका काम है । जो जो दुखनाशन करना चाहते हैं उनके जीवन में दुख लाना यह उसका काम है । जो जो हितकारक है, जो हित करना चाहते हैं, जो हित पर चलना चाहते हैं उनका अहित करना यह उसका काम है । जो सुख चाहते हैं, उनसे सुख दूर कैसे भागेंगे यह देखना उसका काम है । जिन्हें सुन्दरता चाहिए उन्हें बदसूरती देना, मैं सिर्फ शरीर की सुन्दरता की बात नहीं कर रहा हूँ यह ध्यान में रखना । सुन्दरता यह सुन्दरता होती है, भावनाओं की सुन्दरता होती है और जो शुभ है उसमें से अशुभ उत्पन्न करनेवाला, जो शुभ का ही अशुभ करनेवाला । समझ में आ रहा है, यानी महिष का अर्थ है - पूरी तरह जो अशुभ है, अनिष्ट है यानी Evil है । जो अशुभ एवं अनिष्ट करता है । Evil निर्माण करता है हमारे जीवन में, वह Devil है । आ गयी बात समझ में । तो Devil यानी महिषासुर इसकी जानकारी हमें होनी चाहिए । आज हमने खबर पढ़ी ना कि महिषासुर का मंदिर बना रहे हैं । अनेकों ने नेट पर से देखा । मुझे अच्छा लगा । सच कहता हूँ, अरे, नेट का उपयोग कीजिए । क्या चल रहा है दुनिया में यह खुली आँखों से देखिए । उनके पास मूर्ति भी बनकर तैयार है । इतनी बड़ी मूर्ति ! और इस भारत में रावण के पाँच मंदिर हैं । सोचिए ! भारत में भी और वहाँ पर मेला लगता है । कुछ लोग वहाँ मन्नत मानने जाते हैं । राम नहीं प्रसन्न हुए तो रावण को भजेंगे । हम जो माँगे उसे जो देगा वही देव, हम जो चाहें वह देगा वहीं देव । और इसी वजह से इस हिन्दुस्तान का हमेशा नुकसान होता आया है । यदि रावण का मेला हिन्दुस्तान में लग सकता है, तो महिषासुर के मंदिर का आवाहन करने में देर नहीं लगेगी यहाँ पर । ध्यान में रखना । इसलिए जिन्हें जितने मंदिर बनाने हैं महिषासुर के, रावण के, उन्हें बनाने दीजिए, सब जगह चाहे क्यों न बनाये, मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता । समझ गए ! और मेरे बच्चों को फर्क पड़ने नहीं दूँगा। तो ध्यान में रखना बच्चों ! महिष यानी क्या यह ठीक से समझना आवश्यक है । फिर आप कहेंगे, क्यों करते हैं महिषासुर का पूजन ये लोग? सिंपल सी बात है । अशुभ मार्ग से खुद को जो चाहिए वह सुख हासिल करने के लिए, खुद को जो सुन्दरता नहीं मिली उसे बदसूरत बनाने के लिए, जो सन्तुलन है, जो हार्मनी है, जो मधुरता है, वह मुझे मिल जाये तो अच्छा है, दूसरों को नहीं मिलना चाहिए इसलिए जो हित है वह मेरा हो, दूसरों का हित न हो इसलिए, दुखनाशक जो है वह मेरा हो, दूसरों को दुख मिले इसलिए और पवित्रता का भंग हो इसलिए । आयी बात समझ में । इसलिए महिषासुर का पूजन किया जाता है । खुद का भला करने की इच्छा से नहीं, बल्कि दूसरों का बुरा करके मुझे अच्छा मिलने के लिए । फिर उसे किसकी पूजा करनी होगी? महिषासुर को पूजना होगा, निश्चित रूप से यहाँ पर तुम्हें कदापि चण्डिकाकुल साथ नहीं देगा।"
"हरि ॐ"
"श्रीराम"
"अंबज्ञ"
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