जिज्ञासा यह भक्ति का पहला स्वरूप है

सद्‍गुरु श्री अनिरुद्धजी ने ०७ अप्रैल २००५ के पितृवचनम् में ‘जिज्ञासा यह भक्ति का पहला स्वरूप है’ इस बारे में बताया।

जिज्ञासा यह भक्ति का पहला स्वरूप

यह जिज्ञासा जो है, यही भक्ति का पहला स्वरूप है। भक्ति का पहला स्वरूप यानी राधाजी का पहला स्वरूप हर मानव के पास जिज्ञासा के रूप में रहता है। जिज्ञासा, भगवान के प्रति जिज्ञासा नहीं, इस विश्व के प्रति जिज्ञासा। यह सूरज कैसा है? यह पृथ्वी इतनी बड़ी है, मैं इतना छोटा हूँ, यह सारा कारोबार कैसा चल रहा है? यह जिज्ञासा है। इसी जिज्ञासा में जान सकता हूँ कि ये सारे सूत्र को चलानेवाला कोई सूत्रधार जरूर होगा। यहाँ ही तो भक्ति उत्पन्न हुई है, यहाँ ही तपश्चर्या उत्पन्न हो गयी, यहाँ ही चिंतन शुरू हुआ। ये जिज्ञासा ही भक्ति का पहला स्वरूप है, हर इन्सान के पास। 

लेकिन कोई कहे कि भाई बापू, आप कह तो सही रहे हैं, लेकिन अगर मेरे मन में ऐसा विचार आये कि साईबाबा के दोषों को मैं खोजूँ, दोषों को देखूँ, वो ऐसी जिज्ञासा मेरे मन में हो जाए तो? तो उसे जिज्ञासा कहते ही नहीं, ये सुन लो भाई, उसे जिज्ञासा कहते ही नहीं।

जिज्ञासा शब्द हमें कैसा बनता है, ये पहले देखना चाहिए। जिज्ञासा में क्या है? ‘ग्य’ है, ‘ज्ञ’। ये ‘ज्ञ’ यानी ज्ञान, ग्यान। जो मुझे ग्यान की ओर खींचके लेके जाती है, वह जिज्ञासा है और सही ग्यान क्या है? भगवान है, यही सही ग्यान है। भगवान नहीं है, ये सही ग्यान नहीं है। वो नास्तिक की बात ग़लत है, जो ये नास्तिक के प्रति बात जो है, वो भी जिज्ञासा हो नहीं सकती। अब पाखंडी के पास जो है, वो क्या? वो भी ज्ञान नहीं है, वो अज्ञान है।

ये भगवान सिर्फ है नहीं, तो भगवान दयालु हैं, भगवान परम पवित्र हैं, भगवान ही एकमेव शाश्वत हैं यही सही ज्ञान है और ये इस ज्ञान के खिलाफ जो भी है वो ज्ञान कहलाया नहीं जा सकता। अब आप, हम लोग कहेंगे भाई ये आदमी जो है, ये तो गोरा भी है और काला भी है, क्या ये कभी हुआ है? एक ही आदमी गोरा भी है और काला भी है, हो नहीं सकता। हम कहे कि भाई, एक ही आदमी है जो मोटा भी है और लुकड़ा भी है, तो क्या ये सही हो सकता है? नहीं हो सकता। हम कहते हैं कि भाई, ये सोना है और ये सोना नहीं है तो क्या सही हो सकता है? नहीं है। ऐसा हो ही नहीं सकता।

तो जो ज्ञान है वो ज्ञान है, जो अज्ञान है वो अज्ञान है। जो ज्ञान के प्रति हमें खींच ले जाती है, वही जिज्ञासा है।

‘जिज्ञासा यह भक्ति का पहला स्वरूप है’ स बारे में हमारे सद्गुरु श्री अनिरुद्ध ने पितृवचनम्  में बताया, जो आप इस व्हिडिओ में देख सकते हैं।

ll हरि: ॐ ll ll श्रीराम ll ll अंबज्ञ ll ॥ नाथसंविध् ॥