श्रीशब्दध्यानयोग के साथ स्वयं को जोड लो (Connect yourself with Shree Shabd Dhyanyog) - Aniruddha Bapu
परमपूज्य सद्गुरु श्री अनिरुद्ध बापू ने १५ अक्तूबर २०१५ के पितृवचनम् में ‘श्रीशब्दध्यानयोग के साथ स्वयं को जोड लो’ इस बारे में बताया। स्वस्तिवाक्य जो होंगे, ये वाक्य हमारे उस उस चक्र को स्ट्रेन्थ देते हैं, पॉवर देते हैं, शक्ति देनेवाले वाक्य हैं। हमारे उस मूलाधार चक्र का स्वस्तिवाक्यम्, जो हम बोलेंगे, सिर्फ उच्चार से यहॉं आपके उस चक्र की ताकद बढ जाएगी, जो दुर्बलता होगी वह दूर हो जाएगी, जो बाधा है वह भी कम हो जाएगी। स्वस्तिवाक्यम् में इतनी ताकद है, लेकिन क्रम से जाना है। पहिले वेदसूक्त, उसके बाद उस देवता का गायत्री मंत्र, उसके बाद ये स्वस्तिवाक्यम्। और सबसे अंत में ‘मातृवाक्यम्’- ‘ माझ्या बालका मी तुझ्यावर निरंतर प्रेम करीत राहते’. ‘I love you my child always'. यही वाक्य मराठी, हिंदी और संस्कृत में हम लोग कहेंगे और हमारा उपासना ध्यानयोग पूरा हो जायेगा। फिर बापू ने बताया कि ‘अभी आप कहेंगे कि श्रीशब्द तो हमने जान लिया कि यह वैदिक शब्द है और ये सात ब्रह्मर्षि ऐसे हैं जो भगवत्-निष्ठ हैं यानी श्रीशब्दयोगी हैं। गायत्री मंत्र तो श्रीशब्द ही है, लेकिन ये हम लोग ध्यान कहॉं से करें? किसका करें? क्या हम उस चक्र पर ध्यान करें? यस! ध्यान करो यानी बाकी कुछ भी न करो, सिर्फ देखते रहो उस चक्र को । यहॉं जो बडी प्रतिमा होगी, उस प्रतिमा को देखते रहना। जितना हो सके जो कहा जा रहा है वो सुनिए, अवश्य सुनिये और आपके हाथ में पुस्तिका होगी तो आप पढो। आप बोलेंगे कि बापू, हम पढते रहे तो चक्र कैसे दिखेगा? नही, उस पुस्तिका में उपासना के साथ साथ उस चक्र की तसवीर भी होगॊ, छोटीसी पुस्तिका होगी।’ तो आप को उस चक्र को देखना है। समझो आप ऐसी जगह में बैठे हैं कि चक्र नहीं दिख रहा है और हाथ मे पुस्तिका भी नहीं है, तो प्रॉब्लेम क्या है, कान से शब्द तो सुन रहे हो। प्रॉब्लेम नहीं। ऐसे सोचो घर के कारण या तकलीफ के कारण आपका मन यहॉं उपसना में मन नहीं लग रहा है, कहीं भटक रहा है, लेकिन आप स्थूल रूप से भी यहॉं बैठे हैं, तब भी इन मंत्रों का परिणाम होनेवाला है। वैसे भी चाहो या ना चाहो, दवा पिओगे तो दवा का अच्छा असर तो अवश्य होगा ही। ये तो क्या है? दैवी औषधि है। औषध कहना भी गलत है, ये औषध नहीं, ये मॉं का प्यार है। ये सात ब्रह्मर्षियों का प्यार है, कृपा है। हमे इसके लिए क्या देना है? कुछ भी नही देना है। कुछ दक्षिणा नही देनी है, कुछ हार नही अर्पण करना है, कुछ देना नही, छोडना नही, कुछ भी नही। सिर्फ ध्यान देना है। और योग यानी जोड लेना है स्वयं को। इस श्रीशब्दध्यानयोग के साथ खुद को जोड लो याने सारे चण्डिकाकुल के साथ जोडे जाओगे आप अपने आप। ‘श्रीशब्दध्यानयोग के साथ स्वयं को जोड लो’ इस बारे में हमारे सद्गुरु अनिरुद्ध बापू ने पितृवचनम् में बताया, जो आप इस व्हिडिओ में देख सकते हैं।