क्षीरसागर का मन्थन
सद्गुरु श्री अनिरुद्धजी ने २४ फरवरी २००५ के पितृवचनम् में ‘क्षीरसागर का मन्थन’ इस बारे में बताया।
ये विमलचित्त सबको मिला है भाई। उसी का मंथन करना यही हमारी जीवन की इतिकर्तव्यता है, प्रमुख ध्येय है। एम्स ऍण्ड ऑबजेक्टीव जिसे हम लोग कहते हैं तो मोस्ट इम्पॉर्टंट एम्स ऍज वेल ऍज ऑब्जेक्टीव इज ओनली धिस।
भाई, हमें अमृत पाना है यानी क्या पाना है? अमर नहीं होना है, कोई आदमी, इन्सान अमर नहीं हो सकता। तो हमें क्या पाना है? उससे ताकत पानी है, उसी क्षीरसागर में से, उसी मंथन से माता लक्ष्मी उत्पन्न हुई थीं, ऐरावत भी उत्पन्न हुआ था। यह ऐरावत हमें चाहिए, वो लक्ष्मी यानी ऐश्वर्य हमें चाहिए, वहाँ से ही आरोग्य के दाता धन्वन्तरि भी उत्पन्न हुए थे। हमें आरोग्य चाहिए, हमें धन्वन्तरि भी चाहिए, ये सारे जो चौदह रत्न हैं, हमें चाहिए। इसके लिए मंथन करना है, अमृत के लिए नहीं, अमृत तो देवों के लिए हैं। लेकिन हम इन्सान के लिए जो चौदह रत्न हैं ये हमें चाहिए और हम यह चौदह रत्न पाने की कोशिश तो करते रहते हैं, जानते नहीं कि कहाँ मिलेंगे। हम यहाँ घूमते हैं रास्ते में, किसी मार्ग में ढूँढ़ते हैं, किसी पुस्तक में ढूँढ़ते हैं, किसी ग्रंथ में ढूँढ़ते हैं, किसी मंदिर में नहीं। वो किधर भी नहीं, किसी के पास नहीं वो तुम्हारे खुद के पास हैं। तुम्हारे खुद के पास जो क्षीरसागर है यानी विमलचित्त है, उसी में सारे रत्न हैं। सारे के सारे रत्न, जो आदमी के, इन्सान के सुखी जीवन के लिए आवश्यक हैं, तुम्हारे खुद के क्षीरसागर में ही है, सिर्फ तुम्हें उसका मंथन करना है।
लेकिन, अगर आप असुरों की सहायता जितनी लेते हैं उतने ही परसेंटेज में आपके जीवन मे जहर उत्पन्न होता है और जब देव नहीं सहन कर सकते उसे, जब भगवान शिवजी का बदन जो है, उसमें वहाँ आग लगती है, जलन होने लगती है तो हमारे इन्सान के जिंदगी में क्या होगा भाई? और इतना ही नहीं, इतना ही नहीं भाई, तो जितना हम पाप करते जाते हैं, जितना हम हमारे चित्त को मलिन करते जाते हैं उतना ही ये क्षीरसागर हमारे जिंदगी में कम-कम-कम-कम ही होता जाता हैं।
‘क्षीरसागर का मन्थन’ इस बारे में हमारे सद्गुरु श्री अनिरुद्ध ने पितृवचनम् में बताया, जो आप इस व्हिडिओ में देख सकते हैं।
ll हरि: ॐ ll ll श्रीराम ll ll अंबज्ञ ll