सब श्रद्धावानों के लिये माँ जगदंबा का आशीर्वाद

सब श्रद्धावानों के लिये माँ जगदंबा का आशीर्वाद

मेरे श्रद्धावान मित्रों और बालकों! वर्तमान जागतिक परिस्थिति दिनबदिन अधिक ही बिकट बनती जा रही है।

इस साल भारतवर्ष के तथा भारतधर्म के शत्रु अधिक जोर लगाने की कोशिश कर रहे हैं।

भारतवर्ष सारे शत्रुओं का यशस्वी रूप से मुकाबला करेगा इस में संदेह ही नहीं है।

लेकिन इसके बाद का ढाई हजार वर्ष का समय सभी स्तरों पर विचित्र एवं विलक्षण मोड लेने वाला ही होगा।

श्रद्धावानों को इस दौर में अपना हित साध्य करके, भारतवर्ष का तथा भारतधर्म का हित साध्य करते हुए, जीवन की आपदाओं को दूर कर देने के लिए मेरे मन में जगदंबा की और दत्तगुरु की प्रार्थना के बाद चिन्तन करते समय अशुभनाशिनी स्तोत्र थोडे अलग स्वरूप में प्रकट हुआ।

विशेष बडा परिवर्तन (बदलाव) नहीं है - केवल एक पंक्ति नीचे, एक पंक्ति ऊपर।

मेरा विश्वास है कि अशुभनाशिनी स्तोत्र का यह बदलाव नाथसंविध् है।

कृपया प्रत्येक जन इस बदलाव को प्रेम से नाथसंविध् के रूप में स्वीकार करें।

- सद्गुरु श्री अनिरुद्धबापु

 

मूल स्तोत्र

प्रणवमाते गतित्राते गयःत्राते भर्गमालिनी।

पापनाशिनी चण्डिके श्रीगायत्रि नमोऽस्तु ते॥

त्रिमूर्तिमाते पतिव्रते प्रेमत्राते तपमालिनी।

दुःखनाशिनी चण्डिके अनसूये नमोऽस्तु ते॥

भावस्था त्वं नामाधारा नादस्था मन्त्रमालिनी।

अशुभनाशिनी चण्डिके महिषासुरमर्दिनि नमोऽस्तु ते॥

सर्वबाधाप्रशमनं त्रैलोक्यस्य अखिलेश्वरी।

एवमेव त्वया कार्यं अस्मद्वैरीविनाशनम्॥

पिशाचदैत्यदुर्मान्त्रिकादि-सर्वशत्रुविनाशिनि।

ॐ नमश्चण्डिकायै नमश्चण्डिकायै नमश्चण्डिकायै

रक्ष रक्ष परमेश्वरी॥

रोगानशेषान् अपहंसि तुष्टा रुष्टा तु कामान् सकलान् अभीष्टान्।

ॐ नमश्चण्डिकायै नमश्चण्डिकायै नमश्चण्डिकायै

क्षमस्व मे परमेश्वरी॥

त्वां आश्रितानां न विपन्नराणां त्वां आश्रिता ह्याश्रेयतां प्रयान्ति।

ॐ नमश्चण्डिकायै नमश्चण्डिकायै नमश्चण्डिकायै

प्रसीद मे परमेश्वरी॥

अष्टादशभुजे त्रिधे श्रीदुर्गे सिंहवाहिनी।

भयेभ्यस्त्राहि नो देवि शुभंकरे नमोस्तु ते॥

बिभीषण उवाच

पापोऽहं पापकर्माऽहं पापात्मा पापसंभवः।

त्राहि मां आदिमाते सर्वपापहरा भव॥

बापु के द्वारा किया गया बदलाव प्रणवमाते गतित्राते गयःत्राते भर्गमालिनी। पापनाशिनी चण्डिके श्रीगायत्रि नमोऽस्तु ते॥   त्रिमूर्तिमाते पतिव्रते प्रेमत्राते तपमालिनी। दुःखनाशिनी चण्डिके अनसूये नमोऽस्तु ते॥   भावस्था त्वं नामाधारा नादस्था मन्त्रमालिनी। अशुभनाशिनी चण्डिके महिषासुरमर्दिनि नमोऽस्तु ते॥   सर्वबाधाप्रशमनं त्रैलोक्यस्य अखिलेश्वरी। एवमेव त्वया कार्यं अस्मद्वैरीविनाशनम्॥   पिशाचदैत्यदुर्मान्त्रिकादि-सर्वशत्रुविनाशिनि। ॐ नमश्चण्डिकायै नमश्चण्डिकायै नमश्चण्डिकायै रक्ष रक्ष परमेश्वरि॥
रोगानशेषान् अपहंसि तुष्टा रुष्टा तु कामान् सकलान् अभीष्टान्। त्वां आश्रितानां न विपन्नराणां त्वां आश्रिता ह्याश्रेयतां प्रयान्ति॥   ॐ नमश्चण्डिकायै नमश्चण्डिकायै नमश्चण्डिकायै क्षमस्व मे परमेश्वरि॥ ॐ नमश्चण्डिकायै नमश्चण्डिकायै नमश्चण्डिकायै प्रसीद मे परमेश्वरि॥
अष्टादशभुजे त्रिधे श्रीदुर्गे सिंहवाहिनी। भयेभ्यस्त्राहि नो देवि शुभंकरे नमोस्तु ते॥   बिभीषण उवाच पापोऽहं पापकर्माऽहं पापात्मा पापसंभवः। त्राहि मां आदिमाते सर्वपापहरा भव॥

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