आक्रमक जापान - भाग १
जापान के हिरोशिमा एवं नागासाकी पर अमेरिका द्वारा अणुबॉम्ब डालने के पश्चात् जापानने शरणागति स्वीकार की और द्वितीय महायुद्ध का अंत हुआ। परन्तु जापान पर होनेवाले अणुबॉम्ब के हमले को मात्र कोई भी भूला न सका। अमेरिका एवं सोवियत रशिया ये द्वितीय महायुद्ध के (जेता) परस्पर देशों के बीच शीतयुद्ध भड़क उठा। दोनों ही महासत्ताओं के तड़ाखे में दुनिया को कितनी ही बार खाक कर सकनेवाले अणुबॉम्ब एवं इसके पश्चात् के समय में अणुवस्त्र भी आ गये। ब्रिटन, फ्रान्स और इनके पश्चात् चीन भी अणुअस्त्रों से सज्ज हो गया। परन्तु अणु हल्ला सहन करनेवाला दुनिया का एकमात्र देश होनेवाले जापान ने हमेशा से अणुअस्त्रमुक्त दुनिया का ही सम्मान किया। केवल अणुअस्त्रों के मामले में ही नहीं बल्कि जापान की संरक्षण विषयक नीति भी केवल बचावात्मक ही रही। परन्तु २०१४ की वास्तविकता कुछ और ही है।
द्वितीय युद्ध के पश्चात् का काफी लंबे समय तक शांतता का अवलंबन करनेवाला, अणुअस्त्रों का विरोध करनेवाला जापान पूर्णरूप से बदल चुका है। जापान में होनेवाला यह बदलाव चीन के समान बलाढ्य देश को भी, द्वितीय महायुद्ध से पहले होनेवाले आक्रमक जापान की याद दिला रहा है। यह कोई और नहीं, तो चीन के नेता ही कहने लगे हैं। जापान में होने वाले आक्रमक बदलाव ने काफी बातों को बदल डाला हैं। उनकी पहुँच तक पहुँचने के लिए आक्रमक बन चुके जापान की हलचल का अंदाजा हमें लगा लेना चाहिए। दुनिया भर का ध्यान अपनी ओर खींच लेनेवाले विशेष, विलक्षण एवं विक्षिप्त बदलाव हो रहे हैं। जापान की भूमिका में होनेवाला यह आक्रमक परिवर्तन इन सब में सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण हो सकता है।
‘वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम’ को संबोधित करते समय जापान के प्रधानमंत्री शिंजो ऍबे ने काफ़ी बड़ा मार्मिक विधान रचा था। ‘द्वितीय युद्ध से पहले जर्मनी एवं ब्रिटन इनके संबंधों में जैसे तनाव पैदा किया गया था, वैसा ही तनाव अब चीन एवं जापान के संबंधों में आ चुका हैं।’ ऐसा ऍबे ने स्पष्ट कर दिया है। द्वितीय विश्वयुद्ध का संदर्भ देकर ऍबे ने दुनियाभर को एक ही समय में अनेक सूचनायें एवं इशारे दे दिए हैं। हिटलर के नेतृत्त्व में आनेवाले जर्मनी ने द्वितीय महायुद्ध छेड़ दिया। आजकल चीन के बढ़ते हुए सामर्थ्य को देखकर दुनियाभर में पुन: इसी प्रकार के धोखे की संभावना हो रही है, यही बात पुन: ऍबे सूचित करना चाहते हैं।
इसके पश्चात् कुछ सप्ताह बीतते ही चीनने जापान के प्रधानमंत्री की तुलना हिटलर के साथ की। आज भी प्रधानमंत्री ऍबे चीन के सरकारी माध्यमों के तिरस्कार का विषय बन गए हैं। कुछ सप्ताह पूर्व बीजिंग में ‘ऍपेक’ की बैठक का काम पूरा हुआ। इस दौरान चीन के राष्ट्राध्यक्ष जिनपिंग एवं ऍबे इनकी मुलाकात हुई। इन दोनों ने एक-दूसरे के साथ हस्तांदोलन किया (हाथ मिलाया)। और उनके फोटोग्राफ प्रसिद्ध हो गए। ये फोटोग्राफ देखकर दोनों नेताओं में तथा उनके देशों में सामंजस्य नहीं सौहार्द नहीं, यह तो कोई भी कह सकता है। दोनों में किसी के भी चेहरे पर खुशी का भाव नाममात्र भी दिखाई नहीं दे रहा था। मानों इस बात की उन्होंने विशेष तौर पर सावधानी बरती थी।
इस तनाव के अनेक कारण हैं। शिंजो ऍबे २०१२ में होनेवाले चुनाव में विक्रमी बहुमत हासिल कर सत्ता में आये। जापान की सत्ता ऍबे के हाथों में सुरक्षित हो चुकी है यह समाचार सुनते ही चीन हुकुमत अस्वस्थ हो उठी (चीन का शासन डगमगा उठा)। कारण बिलकुल स्पष्ट था। पिछले छ: वर्षों में जापान में सात प्रधानमंत्री सत्ता में आ चुके थे। इनमें ऍबे का भी समावेश था। परन्तु जापान के ये नेता दूसरे अन्य नेताओं के समान नर्म दिल एवं उदार नहीं हैं बल्कि वे आक्रमक राष्ट्रवाद का समर्थन करनेवाले उग्र नेता हैं।
ऍबे की परराष्ट्र नीति, आर्थिक नीति सर्वथा भिन्न एवं आक्रमक है। इससे पहले के समय में जापान में होनेवाली राजनैतिक अस्थिरता चीन पर निर्भर करती थी। इसका लाभ उठाकर चीन २०१० में जापान को पछाड़कर दुनिया के दूसरे क्रमांक की अर्थव्यवस्था पर जा पहुँचा। ‘ईस्ट चायना सी’ क्षेत्र के ‘सेंकाकू’ टापू समूहों का कब्जा जापान के अधिकार क्षेत्र में हैं। ये टापू हमारे अधिकार में हैं ऐसा चीन का कहना है। इतना ही नहीं बल्कि इस क्षेत्र में बारंबार वह देख-रेख के हेतु से अपने जहाज एवं विमान भी भेजने लगा। जापान की जनता को यह मान्य नहीं था।
चीन एक समय जापान का एक गुलाम देश था। ऐसा देश आज जापान के समक्ष अपने सामर्थ्य का प्रदर्शन करता है, यह बात जापान की जनता में असंतोष निर्माण करनेवाली थी। इस असंतोष का प्रगटीकरण २०१२ के चुनाव में हुआ। शिंजो ऍबे के समान नेता ही चीन को खुलेआम चुनौति दे सकता है, इस बात का पूरा विश्वास जापान की जनता को था। अपनी जनता की अपेक्षा पूरी करने के लिए ऍबे ने कोई अधिक अवधि नहीं ली। बस् कुछ महीनों में ही ऍबे ने चीन के विरोध में उठनेवाली हलचल को गति प्रदान की। इनमें सबसे अधिक समर्थन महत्वपूर्ण साबित हुआ, जापान की अर्थव्यवस्था में आनेवाली तंगी को दूर करने की नीति का।
क्रमशः..