सद्गुरु श्री अनिरुद्ध (बापु) की श्रद्धावानों के लिए नववर्ष २०१७ की शुभकामनाएँ और संदेश
हरि ॐ, श्रीराम, अंबज्ञ। जय जगदंब जय दुर्गे। श्रीराम।
मेरे सारे श्रद्धावान मित्रों को नूतन वर्ष की शुभकामनाएँ, अनंत शुभकामनाएँ। मेरे प्यारों, इस २०१७ से २०२४ तक के ७ से ८ वर्ष ..... ये इस समाजजीवन में...... भारतीय समाजजीवन में..... जागतिक समाजजीवन में..... राजनीति में..... अनेक प्रकार से, अनेकविध पद्धतियों से..... अनेकविध कारणों से.... निरंतर बदलते रहने वाले हैं। निरंतर बदलाव..... अनेक दिशाओं से परिवर्तन। ये बदलाव हम हर एक मानव के..... हर एक श्रद्धावान के जीवन में होने वाले हैं। कुछ अच्छे होंगे, कुछ तकलीफदेह हो सकते हैं। लेकिन श्रद्धावानों को डरने का कोई भी कारण नहीं है। क्योंकि..... क्योंकि तुम सब जानते हो..... तुम्हारा बाप तुम्हारे पीछे समर्थ रूप से खडा है, तुम्हारे साथ खडा है और तुम्हारे दुश्मनों का मुकाबला करते समय वह तुम्हारे आगे खडा है। इसलिए चिन्ता करने का कोई कारण नहीं है, यह एक सादी बात। मगर इससे भी परे सर्वोच्च बात है..... कि आने वाले इस संपूर्ण समय के लिए हमारे पास प्रथम पुरुषार्थधाम बन रहा है। हम सब को माँ महिषासुरमर्दिनी की भक्ति मन:पूर्वक करनी चाहिए..... और इस वर्ष के लिए..... मैं हर साल हमेशा तुम्हें बताता हूँ..... यह साल क्या है, क्या करना है? तो यह साल सारे बदलावों को अपनी तरफ मोड लेने के लिए..... हमें एक सुन्दर उपासना..... जैसे संभव हो वैसे.... जितनी करना संभव हो उस प्रमाण में..... कोई बन्धन नहीं..... लेकिन शुरू करनी है..... हमें ज्ञात रहने वाली..... हम जिससे परिचित हैं ऐसी..... श्रीहरिगुरुग्राम में अनेक बार, अनेक वर्ष हमने जिसका पठन किया है..... जिस कवच का पठन किया है, वह श्रीपंचमुख-हनुमत्-कवच, जिन जिन श्रद्धावानों को जैसा जैसा समय मिलेगा, वैसा वैसा वह जितनी बार कह सके उतनी बार उसे कहते रहना चाहिए। कोई भी संकल्प मत करना..... मैं इतनी बार कहूँगा...... उतनी बार कहूँगा..... हर रोज कहूँगा, ऐसा कुछ नहीं। मगर सच कहता हूँ, यदि दिल से हर रोज कहोगे तो बहुत ही फायदेमंद है, बहुत अच्छा है। सारे बदलाव ये तुम्हारे लिए सहायभूत साबित होंगे। वर्तमान समय में चल रहे अग्रलेखों में भी..... सुन्दरकाण्ड पर आधारित...... मैंने श्रीपंचमुख-हनुमत्-कवच का माहात्म्य बताना करना शुरू किया है। वह भी पढिए और सभी प्रकार की बुरी शक्तियों से, बुरे व्यक्तियों से, बुरे साधनों से अपनी सुरक्षा..... और उसमें से..... केवल सुरक्षा ही नहीं बल्कि अपनी उन्नति, विकास और अपने परिवार का उल्हास, आनन्द..... यह सब कुछ हम अधिक से अधिक प्राप्त कर सकते हैं। यह श्रीपंचमुख-हनुमत्-कवच..... वैसे देखा जाये तो मूलत: बहुत बडा है। लेकिन जो भाग हम श्रीहरिगुरुग्राम में लेते हैं, वह भाग कर्मकांड-विमुक्त है। शेष भाग यह कर्मकांडसहित है। यानी जो भाग हम लेते हैं, वही भाग हमें लेना है। समीरदादा के ब्लॉग पर से मैं पुन: एक बार वह प्रकाशित करने वाला हूँ, श्रीपंचमुख-हनुमत्-कवच..... लेकिन हम उन पंचमुखी हनुमानजी का चेहरा या एकमुखी हनुमानजी का चेहरा भी दिल से हमारी आँखों के सामने लायेंगे..... आँखें बंद करके, आँखें खुली रखकर, उनकी फोटो (तसबीर) की तरफ देखकर या श्रीचण्डिकाकुल की तसबीर की तरफ देखकर..... हमें श्रीपंचमुख-हनुमत्-कवच कहना है..... कहते रहना है। इस वर्ष के लिए सिर्फ इस एक ही बात को हमें आत्मसात करना है..... कि ये जो हनुमानजी ..... उनका यह पंचमुख स्वरूप तुम्हारे पंच ज्ञानेन्द्रियों को सुरक्षा देता है, उनका विकास करता है, इतना ही नहीं, तुम्हारे पंचप्राण हैं, उन पंचप्राणों का संवर्धन करता है। पंचमहाभूतों एवं पंचतन्मात्रों पर, इन पर भी, इन पंचमुखहनुमानजी का स्वामित्व एवं प्रभुत्व है..... और ऐसे ये पंचमुखी हनुमानजी श्रद्धावानों की सुरक्षा के लिए आज मध्यरात्रि के १२ बजे.... आज मध्यरात्रि के १२ बजे से सिद्ध होने वाले हैं, हर एक के आप्त बनकर, उसके घर में रहने के लिए, उसके साथ उसकी ऑफिस (कचहरी) में, दुकान में आने के लिए..... उसके साथ निरंतर विचरण करने के लिए। फिर हमें अभागापन नहीं करना चाहिए। हम स्वीकार करेंगे इन हनुमानजी का प्रेम। ये पंचमुखी हनुमानजी श्रेष्ठ या एकमुखी हनुमानजी श्रेष्ठ ऐसा कुछ भी नहीं है। हनुमानजी एक ही हैं। श्रीदत्तात्रेयजी यानी ही श्रीहनुमानजी, यह हमने पढा ही है, हम जानते ही हैं। मगर फिर भी इन हनुमानजी का जो स्वरूप है और उसमें भी पंचमुखी हनुमानजी का जो स्वरूप है, वह श्रद्धावानों के लिए अत्यन्त ममता से, प्रेम से उनका ध्यान रखने वाला है..... उनकी हर एक भावना पर ध्यान देने वाला है। उनकी किसी भी भावना को वे कुचलने नहीं देते। उनके मन की हर एक बात पंचमुखी हनुमानजी जानते हैं, जान लेते हैं और उसके अनुसार जो कुछ भी करना आवश्यक होता है, वह स्थूल, सूक्ष्म और तरल इस तरह तीनों स्तरों पर वे करते रहते हैं..... और आज रात १२ बजे से वे पूरी तरह सिद्ध हुए हैं..... इस चण्डिकाकुल के हर एक श्रद्धावान के लिए, कुछ भी यानी बिलकुल कुछ भी करने के लिए, यह उनका वचन है। मैं सिर्फ वह वचन तुम तक पहुंचा रहा हूँ। लेकिन दिल से कहता हूँ कि यह कवच बहुत ही अद्भुत है। इसका अनेक अनुभव कर भी चुके होंगे। लेकिन अब इस १२ बजे के बाद के अगले ७ वर्ष यह श्रीपंचमुख-हनुमत्-कवच और आदिमाता चण्डिका की उपासना ही तुम्हें तारने वाली है। लेकिन इस वर्ष श्रीपंचमुख-हनुमत्-कवच जितनी अधिक बार कह सकोगे, उतनी बार कहने की कोशिश करना। हनुमानजी का चेहरा हमेशा स्मरण में रहे इसके लिए प्रयत्नों की पराकाष्ठा करना। अनेक गलतियां होती हैं.... होंगी..... अनेक पाप भी होंगे, मायूस मत हो जाना। यह महिषासुरमर्दिनी, ये दुर्गा, हमें क्षमा नाम से क्षमा करने के लिए सदैव सिद्ध है, यह ध्यान में रखना। श्रीसाईसच्चरित की ओवी मैंने तुम्हें बार बार बतायी है। ‘मैं पापी अभागा दैवहीन, इस वृत्ति की खान अविद्या।’ इसलिए स्वयं को इस तरह दोष देने का..... मैं कोई फालतू हूँ, मैं गलत ही हूँ, मैं पापी ही हूँ, मैं बुरा ही हूँ, यह सब अब छोड दो। मैंने गलती की होगी, थक चुका रहूँगा, ऊब चुका रहूँगा, राह से भटक गया रहूँगा..... मगर फिर भी मैं इस चण्डिकाकुल के चरणों में आता हूँ, इसका अर्थ निश्चित रूप से मेरी दादी चण्डिका और मेरा बाप समर्थ रूप से मेरा खयाल रखने के लिए उत्सुक हैं..... और मैंने स्वयं भी ऑलरेडी पंचमुख-हनुमत्-कवच की उपासना पहले ही शुरू कर दी है..... मेरी माँ के आदेश के अनुसार..... और मेरे सारे बच्चे भी इसी तरह की शुरुआत करें और जो बल दूसरों को कभी भी मिल ही नहीं सकता, वह सारा बल, सब प्रकार का बल प्राप्त करते रहें..... और तुम ये ऐसा कर सकते हो इसका मुझे यकीन है और इसके लिए तुम्हारी हर बात की सहायता, मैं तुम्हारा बाप, जो मुझे पिता मानते हैं, बाप मानते हैं, डॅड कहते हैं, उस हर एक के लिए सर्वार्थ से, सब प्रकार से और सभी दिशाओं से करने के लिए मेरी माँ की ही कृपा से समर्थ हूँ।
हरि ॐ, श्रीराम, अंबज्ञ।
जय जगदंब, जय दुर्ग।
जय जगदंब, जय दुर्गे।
जय जगदंब, जय दुर्गे।
श्रीराम।