Sadguru Aniruddha Bapu

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रामरक्षा ३० | निर्गुण भगवान की सगुण आराधना : रामप्रिय भरतजी की प्रेमोपासना अर्थात् वंदनभक्ति

रामरक्षा ३० | निर्गुण भगवान की सगुण आराधना : रामप्रिय भरतजी की प्रेमोपासना अर्थात् वंदनभक्ति

सद्गुरु अनिरुद्ध बापू - कण्ठ अर्थात् गर्दन यह जिस प्रकार सिर एवं बाक़ी का शरीर इन्हें जोड़नेवाली कड़ी है, वही काम भक्त और भगवान के मामले में भरतजी का है।

रामरक्षा प्रवचन २९ | भक्ति, प्रेम तथा समर्पण का मनोहारी संगम यानी श्रीरामभक्त भरत

रामरक्षा प्रवचन २९ | भक्ति, प्रेम तथा समर्पण का मनोहारी संगम यानी श्रीरामभक्त भरत

सद्गुरु अनिरुद्ध बापू यहाँ भरत जी ने किये हुए इस विश्व के पहले पादुकापूजन के सर्वोच्च महत्त्व को विशद करते हैं | वास्तविकता का भान कभी भी न छोड़नेवाले भरत जी ये अनुकरण के हिसाब से हमारी ‘पहुँच में आ सकनेवाले’ हैं |

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