परमपूज्य सद्गुरु श्री अनिरुद्ध बापू ने २८ एप्रिल २०१६ के पितृवचनम् में 'मूलाधार चक्र के स्वामी एकदन्त गणेश हैं', इस बारे में बताया।

यह उच्चारण की क्लॅरिटी (clarity) देनेवाला शस्त्र क्या है? दन्त। दिखानेवाला दाँत है। यही क्लॅरिटी का बेसिक है। क्या हम जो मन में होता है, वही उच्चार करते हैं? नहीं, हमारे खाने के दाँत अलग, दिखाने के दाँत अलग। ये कहता है, दिखाने के दाँत भी एक ही होना चाहिये, दो नहीं।
आचार के, विचार के, उच्चार के। उच्चार भी क्या है? एक है आचार यानी आचरण, उसकी क्लॅरिटी देने के लिये।
हमारे मन में जब गुस्सा आता है, तो हम कुछ भी बक देते हैं। जरा मुडकर देखिये जिंदगी में कि आपकी सारी जिंदगी में किसने आपका ज्यादा नुकसान किया? तो आपकी जुबान ने, आपके खुद के मन ने। जो नहीं बोलना चाहिये, उसे बोल बैठे। बस! सोचा नहीं कि आगे क्या होगा। और एक बार बोलने के बाद हमारा इगो यानी अहंकार develop होता है कि नहीं मैंने जो बोला वही सही है, हटने को पीछे तैयार ही नहीं।
हमारे मन में जब क्लॅरिटी होगी, तब ही हमारे उच्चारण में, हमारे बोलने में क्लॅरिटी होगी, स्पष्टता होगी और शुद्धता होगी। हम गलत बोलेंगे ही नहीं। गलत बोलने से हम लोग जितना नुकसान खुद का करते हैं, उतना हमारे सौ शत्रु भी मिलकर नहीं कर सकते। पर यह सीखने के लिये भी क्लॅरिटी चाहिये।
क्लॅरिटी कहां से मिलेगी? मूलाधार चक्र से ही मिलेगी। और इसलिये इस मूलाधार चक्र में ही गणपति बैठे हुए हैं, ‘ एकदन्त ’ रूप में ही। गणपति के बहुत सारे रूपों में हाथ में दाँत नहीं होता, पाश, अंकुश, कमल और मोदक होता है। मूलाधार चक्र का गणेश है, हात में हमेशा एकदन्त होता ही है। क्योंकि ये दन्त उसने हाथ में इसी लिये लिया है।
मूलाधार चक्र के स्वामी एकदन्त गणेश हैं, इस बारे में हमारे सद्गुरु अनिरुद्ध बापू ने पितृवचनम् में बताया, जो आप इस व्हिडिओ में देख सकते हैं।
॥ हरि ॐ ॥ ॥ श्रीराम ॥ ॥ अंबज्ञ ॥