तेन त्यक्तेन भुञ्जीथा: (Ten Tyakten Bhunjeethah)
सद्गुरु श्री अनिरुद्धजी ने ०३ मार्च २००५ के प्रवचन में ‘तेन त्यक्तेन भुञ्जीथा:’ इस बारे में बताया।
जिसका भी सच्चा उपभोग लेना चाहते हो, जो मेरे हित के लिए हो, तो उसका उपभोग करने के पहले त्याग करना सिखो और ये सिखाने वाली, ये राधा हैं। क्योकिं वो त्याग करके ही उसने जनन किया है सारी सृष्टी का। इसी लिए अगर मैं उसे जननी मानता हूँ, मानता हूँ नहीं मानना ही चाहिए, कोई अल्टरनेटिव है ही नहीं, जो सत्य है, वो सत्य है। आप कहें कि सूरज होता ही नहीं है, तो आपके कहने से ऐसा नहीं होगा कि सूरज नहीं आयेगा। सूरज है? है सूरज, सूरज ही है। आप कहेंगे कि ये सूरज नहीं है भाई, ये चाँद है और रात को जो आता है, वो सूरज है। तो आपको लोग कहेंगे कि भाई, आप मूरख हैं। सूरज का कुछ बिग़ड़ेगा? कुछ भी नहीं, राईट।
अब बात ऐसी होती है, देखिए। मैं घर में बैठा हूँ, मेरे घर की खिड़कियाँ-दरवाजा सब कुछ बंद कर लिया मैंने और कहूंगा, भाई सुबह चलो, सूरज उगा ही नहीं अब तक। प्रॉब्लेम किसको है? मुझको है, किस दुनिया को, किसी को कोई फर्क पड़ रहा है? कोई नहीं।
तो जो सच है, जो सत्य है, उसे मैं मानूं या ना मानूं, वो सत्य ही है। मेरी जिंदगी का, खुद की जिंदगी का ये सत्य मान लो भाई, इस विश्व की उत्पत्ति जिस राधा ने, आह्लादिनी ने की है, वो त्याग पर ही निर्भर है। त्याग के सूत्र पर ही उसने इस विश्वसृष्टि का जनन किया है, उसे उत्पन्न किया है और मैं इसी विश्व का एक छोटा सा हिस्सा हूँ, तो मेरे जीवन का सूत्र भी त्याग का ही होना चाहिए, भोग का नहीं। भोग तो लेना ही है, कोई अच्छा खाना है, पीना है, कोई अच्छी चीज़ है, जरुर उपभोग करो, कोई बूरी बात नहीं। मैं नहीं कहता कि आप संन्यासी बन जाओ, लेकिन बुरे कर्म करो, वासनाओं के जाल में फँसते नीचे-नीचे-नीचे अधोगति करते रहो, ये बात नहीं होनी चाहिए।
इसी लिए मुझे राधाजी के मार्ग पर चलना चाहिए, ‘तेन त्यक्तेन भुञ्जीथा:’, उसी का मतलब है जननी और जननी का मतलब है, ‘राधा’।
‘तेन त्यक्तेन भुञ्जीथा:’ इस बारे में हमारे सद्गुरु श्री अनिरुद्ध ने पितृवचनम् में बताया, जो आप इस व्हिडिओ में देख सकते हैं।
|| हरि: ॐ || ||श्रीराम || || अंबज्ञ ||
॥ नाथसंविध् ॥