शून्यानां शून्यसाक्षिणी (Shoonyanam Shoonyasakshinii) - Aniruddha Bapu
परमपूज्य सद्गुरु श्री अनिरुद्ध बापू ने ०९ मार्च २०१७ के पितृवचनम् में ‘शून्यानां शून्यसाक्षिणी’ इसके बारे में बताया।
ये ब्रह्मा ऋषि हैं, इससे हम लोगों को यह जानना चाहिये कि हमें नवनिर्मिति के लिये यानी transformation. इस जग में कोई नवनिर्मित नहीं होता। Everything is Transformation. एक रूप से बदलकर हम दूसरे रूप में जाते हैं। वो देखनेवाली कौन है? मेरी माँ है। शून्यानां शून्यसाक्षिणी।
अब यहा भी देखिये, जो संस्कृत जानते हैं वो लोग देखेंगे, क्या कहा गया है? शून्यानां यानी शून्य शब्द के अनेक वचन का उपयोग किया गया है। अभी शून्य एक है या हजार हैं, क्या फरक पडता है? मुझे बोलिये उसके आगे पीछे कोई आंकडा नहीं होगा तो शून्य हजार है या दस हजार है या एक लाख है तो क्या फायदा। ऐसा क्यों कहा गया है? सिर्फ ऐसा बोलना चाहिये ना शून्यस्य शून्यसाक्षिणी। एक शून्य की शून्य साक्षिणी। ये कल्पांत के बाद यानी महाप्रलय के बाद जब निर्गुण निराकार अवस्था होती है, कुछ नहीं रहता, कुछ नहीं है यानी शून्य है, तो एक शून्य है या दस शून्य है, क्या फरक पडता है।
पर यहां क्या हुआ है? शून्यानां शून्यसाक्षिणी। यानी अनेक शून्य होते हैं क्या? हाँ। ये हमें जानना चाहिये क्योंकि हर मनुष्य अपने जीवन में बार बार शून्यता उत्पन्न करता रहता है। स्कूल में गया SSC पास नहीं हुआ, पढाई का मार्ग शून्य। खाना खाने गये और खिसे में पैसे नहीं है, तो होटल में जाने का मतलब शून्य। आपके खुद के बच्चे हैं, आप उनपे अच्छे संस्कार नहीं कर सके, उन्हें प्यार नहीं दे सके सबसे ज्यादा, तो क्या उपयोग है बच्चे पैदा करने का, शून्य।
इसलिये हम लोग हमारे जीवन में बहुत सारे शून्य उत्पन्न करते रहते हैं, वो सिर्फ जो महाशून्य है उसके पास छोड दो। इन सब शून्य को शून्य कैसे हैं, ये जाननेवाली कौन है? वो मेरी माँ है। हमारी दादी है। तो ये शून्यानां शून्यसाक्षिणी है। तो यहां क्या है, वो क्या करती है? शून्य को ही transfer करती है, इस बारे में हमारे सद्गुरु अनिरुद्ध बापू ने पितृवचनम् में बताया, जो आप इस व्हिडिओ में देख सकते हैं।
॥ हरि ॐ ॥ ॥ श्रीराम ॥ ॥ अंबज्ञ ॥